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अहमद निसार
पेशकश : अज़ीज़ अंसारी 1.
हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे दोस्ती बाक़ी नहीं तो दुश्मनी बाक़ी रहेहो न जाऊँ मैं कहीं मग़रूर ए मेरे ख़ुदायूँ मुकम्मल कर मुझे के कुछ कमी बाक़ी रहेसबके हिस्से में बराबर के उजाले आएँगे घर के इन बूढ़े दियों में रोशनी बाक़ी रहेये तसव्वुर ख़ूबसूरत है मगर मुमकिन नहीं चाँद भी छत पर रहे और धूप भी बाक़ी रहे ख़ाक की पोशाक में हम मस्त हैं अहमद निसार है यही सरमाया अपना बस यही बाक़ी रहे 2.
मैं मसअला हूँ मुझको अभी हल नहीं मिला सूरज छुपाने वालों को बादल नहीं मिलातुम दोस्ती के गीत सुनाते तो हो मगर इस पेड़ में हमें तो कभी फल नहीं मिला दावा किया था जिसने ख़ुदाई का शहर में वो आदमी भी हमको मुकम्मल नहीं मिला काँधे पे सर का बोझ लिए ढूँढता हूँ मैंमेयार का मेरे कोई मक़तल नहीं मिला हाथों में चाँद लेके वो आया था एक दिन फिर उसके बाद मुझको वो पागल नहीं मिलारेहते हैं दूर दूर जो अहमद निसार सेवो ऐसे साँप हैं जिन्हें सन्दल नहीं मिला