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Written By WD

आरज़ू (सय्यद अनवर हुसैन) की ग़ज़लें

आरज़ू सय्यद अनवर हुसैन ग़ज़लें aarzoo anvar hussain Gazal
पेशकश : अज़ीजअंसार
1.
राह-ए-तलब से दिल को न रोको, जाए अगर तो जाने दो
गिर के संभलना बेहतर होगा, इक ठोकर खा जाने दो

शोला-ए-हुस्न पे बन के पतंगा, दिल जो जला है जाने दो
बे समझाए समझ जाएगा, कोई चरका खाने दो

फ़ानी ऎश का इस दुनिया के, मिलना न मिलना यकसाँ है
नक़्श-ए-फ़रेब है नक़्श-ए-हसरत, मिटता है मिट जाने दो

एहद-ए-जवानी आफ़त-ए-जानी बढ़ती उमंगें बेपरदा
वक़्त से बढ़ कर दिल नाज़ुक है नाज़ुक वक़्त तो आने दो

एक भयानक ख्वाब है गोया, जिस की ताबीर उलटी है
हम भी समझ लेंगे मतलब की, नासेह को समझाने दो

दिल की भड़ास न निकलेगी तो, जान ही पर बन जाएगी
ज़ेहर के क़तरे हैं ये आँसू, बेहते हैं बेह जाने दो

खिलते फूल फफकते पौदे, शम्म-ओ-चिराग़ सहर के हैं
रंग चमन का ये न रहेगा, दिन तो खिज़ाँ के आने दो

आरज़ू इस अंधेर नगर के शाम-ओ-सहर सब एक से हैं
दिल की आँखें रोशन रक्खो, शम्मा बुझे बुझ जाने दो
--------------
2. आ गई 'पीरी' जवानी खत्म है---------बुढ़ापा
सुबह होती है कहानी खत्म है

हसरतों का दिल से क़बज़ा उठ गया
'ग़ासिबों' की हुक्मरानी खत्म है-----------किसी का हक़ छीनने वालों

हो गया ज़ौक़-ए-नज़ारा खुद फ़ना
या 'बहार-ए-बोस्तानी' खत्म है-------- बाग़-बग़ीचे की बहार

'माजरा-ए-ग़म चिराग़-ए-सुबहा का'------ सुबह के दीपक के दुख की कहानी
खत्म और अपनी ज़ुबानी खत्म है

'सूरत-ए-यखबस्ता' है 'जोश-ए-गुदाज़'---------- जमे हुए बर्फ़ की तरह,----नर्म
बेहते दरिया की रवानी खत्म है

'ज़िक्र-ए-ग़म' में 'लज़्ज़त-ए-ग़म' फिर कहाँ-------- दुख के बखान, ------दुख का आनंद
अपने साथ अपनी कहानी खत्म है

आरज़ू था इक अँधेरे का चिराग़
उसकी भी अब 'ज़ूफ़शानी' खत्म है