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नज़्म : मज़हब-ए-शायराना
शायर--चकबस्तकहते हैं जिसे अब्र वो मैखाना है मेराजो फूल खिला बाग़ में पैमाना है मेराकैफ़ियत-ए-गुलशन मेरे नश्शे का आलम कोयल की सदा नारा-ए-मसताना है मेरापीता हूँ वो मय नश्शा उतरता नहीं जिसकाख़ाली नहीं होता है वो पैमाना है मेरादरिया मेरा आईना है लहरें मेरे गेसू और मौज-ए-नसीम-ए-सहरी शाना है मेराहर ज़र्रा-ए-ख़ाकी है मेरा मूनिस-ओ-हमदम दुनिया जिसे कहते हैं वो काशाना है मेराजिस जा हो ख़ुशी है वो मुझे मंज़िल-ए-राहत जिस घर में हो मातम वो अज़ाख़ाना है मेराजिस गोशा-ए-दुनिया में परिस्तिश हो जहाँ कीकाबा है वही और वही बुतख़ाना है मेरा मैं दोस्त भी अपना हूँ, अदू भी हूँ मैं अपना अपना है कोई और न बेगाना है मेरा आशिक़ भी हूँ, माशूक़ भी ये तुरफ़ा मज़ा है दीवाना हूँ मैं जिसका वो दीवाना है मेरा ख़ामोशी में याँ रहता है तक़रीर का आलम मेरे लब-ए-ख़ामोश पे अफ़साना है मेरा कहते हैं खुदी किसको ख़ुदा नाम है किसकादुनिया में फ़क़त जलवा-ए-जानाना है मेरामिलता नहीं हरएक को वो नूर है मुझमें जो साहिब-ए-बीनश हो वो परवाना है मेराशायर का सुख़न कम नहीं मजज़ूब की बड़ से हरएक न समझेगा वो अफ़साना है मेरा