ऎ मेरी जान मुझे हैरत-ओ-हसरत से न देख
ऎ मेरी जान मुझे हैरत-ओ-हसरत से न देख हम में कोई भी जहाँनूर-ओ-जहाँगीर नहींतू मुझे छोड़, के ठुकरा के भी जा सकती हैमेरे हाथों में तेरा हाथ है ज़ंजीर नहीं॥-
साहिर लुधयानवीअर्थ : जहाँनूर-ओ-जहाँगीर---बादशाह जहाँगीर और उसकी बेगम नूर जहाँ बादशाहों के ज़माने में कोई बेगम अपने महबूब को ठुकरा के नहीं जा सकती थी। लेकिन अब ज़माना बदल गया है।अब अगर महबूबा चाहे तो अपने महबूब को ठुकरा के कहीं भी जा सकती है। पुराने ज़माने में रिश्ते ज़ंजीर की तरह होते थे।आज के ज़माने में हाथ में हाथ होता है, जो कभी भी छुड़ाया जा सकता है।