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Written By WD

भारतीय शेयर बाजार मंदी की चपेट में नहीं

भारतीय शेयर बाजार मंदी की चपेट में नहीं -
-कमल शर्म
जॉर्ज सोरास भारतीय उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एंटरटेनमेंट में तीन फीसदी हिस्‍सा दस करोड़ डॉलर में खरीदकर चर्चा में हैं। 12 अगस्‍त, 1930 को हंगरी के बुडापेस्‍ट में जन्‍मा और अब अमेरिका में स्‍थायी जॉर्ज सोरास संभवत: निवेश जगत के सबसे कुख्‍यात खिलाड़ी हैं।

उन्‍होंने कमाया खूब है लेकिन वे अपने बुरे कारनामों के लिए ज्‍यादा जाने जाते हैं। वे ऐसे खिलाड़ी हैं जो कंपनियों को नहीं, बड़ी-बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं को ठिकाने लगा देते हैं। सोरास का कहना है कि भारत मंदी की चपेट में नहीं है और यहाँ किए जाने वाले निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलता रहेगा।

सोरास ने पाउंड में शार्ट पोजीशन खड़ी करके 1992 में बैंक ऑफ इंग्‍लैंड को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया था और 1997 में पूर्वी एशियाई देशों की हालत खस्‍ता कर दी थी जिसने एशियन टाइगर कहलाने वाले देशों को चूहा बना दिया था। लेकिन सोरास बड़े दानी भी हैं, विभिन्‍न सामाजिक कार्यों के लिए वे चार अरब डॉलर यानी लगभग 16 हजार करोड़ रुपए दान दे चुके हैं।

यहाँ हम अमेरिकी और वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में जार्ज सोरास के दृष्टिकोण को रख रहे हैं। मार्क फैबर और जिम रोजर्स सहित दूसरे खिलाड़ियों की तरह सोरास भी मंदी में हैं। अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था की हाल की स्थिति को लेकर सोरास का कहना है कि मौजूदा वित्‍तीय संकट हाउसिंग मार्केट बबल के कारण उभरा है। दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद ऐसे वित्‍तीय संकट अमेरिका में चार से दस साल के अंतराल के बीच आते रहे हैं। लेकिन वर्तमान संकट की खास बात यह है कि यह 60 सालों से डॉलर को रिजर्व करेंसी मानकर किए जा रहे ऋण विस्‍तार के युग का अंत है। समय समय पर आने वाले वित्‍तीय संकट बूम बस्‍ट साइकिल के हिस्‍से थे। लेकिन मौजूदा संकट 60 साल के सुपर बूम की समाप्ति है।

सोरास का कहना है कि आसान ऋण से माँग उत्‍पन्‍न होती है, जो बाद में ऋण उपलब्‍धता बढ़ा देती है। जब भी ऋण विस्‍तार खतरे में होता है वित्‍तीय प्राधिकार तरलता बढ़ाकर या अन्‍य तरीकों से अर्थव्‍यवस्‍था को फिर से पटरी पर ले आते हैं, जिससे ऋण या क्रेडिट का विस्‍तार और तेज हो जाता है। लेकिन यह चक्र हमेशा नहीं चल सकता।

सोरास कहते हैं कि ग्‍लोबलाइजेशन ने अमेरिका को दुनिया भर की बचत को चट करने में मदद की और वह अपने उत्‍पादन से ज्‍यादा खपत करते चला गया। साल 2006 में अमेरिकी करेंट अकाउंट डेफेसिट, ग्रास नेशनल प्रोडक्‍ट (जीएनपी) के 6.2 गुने तक चला गया। वित्‍तीय संस्‍थानों ने नए नए इंस्‍ट्रुमेंट्स और आसान शर्तों के द्धारा ग्राहकों को और ऋण लेने के लिए प्रेरित किया और सरकार ने प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष (खतरे के समय सीमित हस्‍तक्षेप) रूप से इस प्रक्रिया को बढ़ावा दिया।

साल 1980 के बाद से नियमों का लगातार सरलीकरण होता रहा जब तक कि वे खत्‍म नहीं हो गए। स्थिति यहाँ तक आ गई कि सरकार जोखिम नापने के लिए बैंकों के जोखिम प्रबंधन तंत्र पर आश्रित हो गई। रेटिंग एजेंसी भी यहाँ-वहाँ मिलने वाली जानकारी से काम चलाने लगीं। इस तरह जिम्‍मेदारियों को नजरअंदाज करना चौंकाने वाला है। जो कुछ भी गलत हो सकता था, किया गया। नतीजा यह हुआ कि कोलेट्रल डेब्‍ट सहित वित्‍तीय व्‍यवस्‍था का हर हिस्‍सा अब संकट की गिरफ्त में है। ऋण विस्‍तार के बाद आवश्‍यक रुप से ऋण संकुचन (क्रेडिट कांट्रैक्‍शन) दौर आने चाहिए क्‍योंकि कुछ नए ऋण इंस्‍ट्रुमेंट्स या तरीके गलत हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सोरास की राय में निवेशक सोचते रहे कि हर बार की तरह इस बार भी अमेरिकी फैडरल रिजर्व मंदी को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगा लेकिन अब फैडरल रिजर्व ऐसी स्थिति में नहीं है। कच्‍चे तेल, खाद्यान्‍न और अन्‍य कमोडिटी के भाव आसमान छू रहे हैं ऐसे में फैडरल रिजर्व को मुद्रास्‍फीति को भी काबू में रखना है। यदि फैडरल फंड को एक निश्चित स्‍तर से नीचे लाया जाता है तो डॉलर पर दबाव बनेगा और लंबी अवधि के बांड की यील्‍ड बढ़ जाएगी। ऐसा स्‍तर कहाँ है, यह कहना मुश्किल है लेकिन जब यह स्‍तर आएगा तब अर्थव्‍यवस्‍था में जान डालने की फैड की क्षमता खत्‍म हो जाएगी। सोरास का कहना है कि हालाँकि विकसित देशों में मंदी लगभग तय है लेकिन चीन, भारत और कुछ तेल उत्‍पादक देशों की स्थिति बिलकुल विपरीत है इसलिए मौजूदा वित्‍तीय संकट वैश्विक मंदी में तब्‍दील नहीं हो पाएगा।

अपोलो टायर्स : डार्क हॉर्स
अपोलो टायर्स ने अक्‍टूबर से दिसंबर 2007 की तिमाही के जो नतीजे पेश किए हैं, वे बाजार की उम्‍मीद से कहीं बेहतर है। कंपनी के शानदार नतीजे और विस्‍तार योजनाओं से पता चलता है कि 32 साल की यात्रा में इस कंपनी ने टायर उद्योग में अपना मुकाम खुद बनाया है। कंपनी की शुद्ध बिक्री चालू वित्‍त वर्ष की तीसरी तिमाही में 974.1 करोड़ रुपए पहुँच गई, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 857.5 करोड़ रुपए थी। इसी तरह शुद्ध लाभ भी 35.1 करोड़ रुपए से बढ़कर 62.2 करोड़ रुपए पहुँच गया।

कंपनी की आय में यह बढ़ोतरी ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्‍युफैक्‍चरर्स (ओईएम) की माँग में सुस्‍ती के बावजूद देखने को मिली है। अपोलो टायर्स की बिक्री में रिप्‍लेसमेंट माँग की भूमिका 70 फीसदी रही जो पिछले साल समान तिमाही में 65 फीसदी थी। कच्‍चे माल की लागत में बढ़त के बावजूद कंपनी का ऑपरेटिंग लाभ मार्जिन सुधरा है।

अपोलो टायर्स 220 करोड़ रुपए के पूँजीगत खर्च से अपना विस्‍तार करने जा रही है। इस विस्‍तार के तहत चेन्‍नई के समीप एक ग्रीनफील्‍ड रेडियल सुविधाएँ खड़ी करना है। इस परियोजना के पहले चरण का कार्य अगले 18 महीनों में पूरा होने की संभावना है। इस राशि के अलावा सौ करोड़ रुपए लिमडा संयंत्र में एक दस टन दैनिक ऑफ द रोड यानी ओटीआर टायर सुविधा स्‍थापित करने में खर्च किए जाएँगे। नतीजन कंपनी की मौजूदा 740 टन दैनिक की क्षमता में अगले दो साल में सौ टन की और बढ़ोतरी हो जाएगी।

कंपनी गुजरात में 39 करोड़ रुपए की लागत से आठ मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना लगाएगी। अपोलो टायर्स 20 करोड़ यूरो के आसपास राशि हंगरी में एक संयंत्र स्‍थापित करने में खर्च किए जाएँगे ताकि यूरोप व उत्‍तरी अमेरिकन बाजारों की माँग को आसानी से पूरा किया जा सके।

अपोलो टायर्स की सब्सिडियरी डनलप साउथ अफ्रीका के कार्य प्रदर्शन में सुधार देखने को मिला है। इसकी कंसोलिडेटेड बिक्री 14 फीसदी बढ़कर 1240 करोड़ रुपए पहुँच गई है। सकल लाभ में भी इस तिमाही में 17 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है। अपोलो टायर्स की वित्‍त वर्ष 2007-08 में शुद्ध बिक्री 3620.1 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 217.6 करोड़ रुपए रहने की उम्‍मीद है। इसकी बुक वेल्‍यू 25.5 रुपए रहने की आस है। वित्‍त वर्ष 2008-09 में कंपनी की शुद्ध बिक्री 4084.4 करोड़ रुपए एवं शुद्ध मुनाफा 248.9 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। बुक वेल्‍यू भी 29.9 रुपए पहुँचने की आस है।

अपोलो टायर्स की शेयरधारिता को देखें तो प्रमोटरों की हिस्‍सेदारी 34 फीसदी है, जबकि विदेशी संस्‍थागत निवेशकों के पास 18 फीसदी और संस्‍थागत निवेशकों के पास 28 फीसदी शेयर हैं। जबकि, आम जनता और अन्‍य के पास 20 फीसदी शेयर हैं। पिछले 52 सप्‍ताह में इसका निचला भाव 25 रुपए और उच्‍चतम दाम 63 रुपए था। अपोलो टायर्स का बीएसई कोड 500877 और एनएसई कोड APOLLOTYRE है।

कंपनी का मौजूदा कार्य प्रदर्शन, बेहतर विकास संभावनाएँ और भावी विस्‍तार योजनाओं को देखते हुए इस समय 43 रुपए में मिल रहा अपोलो टायर्स का शेयर निकट भविष्‍य में 65 रुपए पर दिखाई देगा।

स्‍पष्‍टीकरण : अपोलो टायर्स में खरीद सलाह जारी करते समय मेरा अपना निवेश नहीं है।

*य‍ह लेखक की निजी राय है। किसी भी प्रकार की जोखिम की जवाबदारी वेबदुनिया की नहीं होगी।