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Written By भाषा
Last Modified: महाराजगंज , रविवार, 4 अप्रैल 2010 (14:47 IST)

सौ साल से सैनिकों का गाँव पर ‘सैनिक गाँव’ नहीं

Sainik's Gaon without Tag | सौ साल से सैनिकों का गाँव पर ‘सैनिक गाँव’ नहीं
प्रथम विश्व युद्ध से करगिल तक पिछले सौ साल में हुई हर जंग में अपनी जांबाजी दिखा चुके नेपाली टोला गाँव को आज तक ‘सैनिक गाँव’ कहलाने का सम्मान नहीं मिल पाया। यह गाँव उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में भारत नेपाल सीमा से करीब 55 किमी भीतर गोरखपुर-सोनौली मार्ग पर है।

सैनिक गाँव की विशेषता यह है कि यहाँ बेरोजगारों को प्रशिक्षण दिया जाता है, एंबुलेंस, अतिथिगृह, रियायती दर पर सामान के लिए कैंटीन तथा जलापूर्ति के लिए ‘वाटर टैंक’ आदि की व्यवस्था की जाती है और यहाँ सेना की भरती के लिए विशेष शिविर भी लगाए जाते हैं।

जैसा कि नाम से ही साफ है उदितपुर नेपाली टोला गाँव के सभी निवासी नेपाली मूल के गोरखे हैं। इसके अस्तित्व की कहानी दिलचस्प है। वर्ष 1910 की बात है। तब उत्तर प्रदेश नादर्न प्राविन्सेज (उत्तरी प्रान्त) का हिस्सा था और महाराजगंज जिला गोरखपुर जिले का। इस अंचल में सेना की भर्ती भारत नेपाल सीमा से लगे अब भी मौजूद आनन्द नगर रेलवे स्टेशन पर हुआ करती थी।

अंग्रेज हुकुमरान ने जब देखा कि सेना में भर्ती होने के लिए नेपाल से आने वाले जवानों और गोरखा रेजीमेन्ट में तैनात गोरखों को अपने गाँव को जाने के लिए दुर्गम पहाड़ियों से कई दिन की पैदल यात्रा करनी पड़ती है तो उन्होंने उन्हें आनन्द नगर रेलवे स्टेशन के पास ही बसा देने का फैसला किया।

राजस्व विभाग के सूत्रों के अनुसार, आज से सौ वर्ष पहले फरेन्दा तहसील के तत्कालीन लेहड़ा रियासत के जंगलों को कटवा कर उदितपुर गाँव में एक नया मजरा बना और शुरु में वहाँ तब गोरखा रेजीमेन्ट में तैनात रहे पाँच गोरखा जवान पदमसिंह थापा , छबिलाल गुरुंग , हीरा सिंह गुरुंग , बुद्धमान गुरुंग और रणजीत सिंह गुरुंग के परिवार बसाए गए।

बाद में सेना में भर्ती होने के लिए आए सात आठ और गोरखा परिवार वहाँ आकर बस गए। उदितपुर नेपाली टोला गाँव में इस समय नेपालियों के 55 घर आबाद हैं और गाँव की आबादी लगभग साढ़े चार सौ है जिनमें 27 पूर्व सैनिकों और सात पूर्व सैनिकों की विधवाओं के अलावा वर्तमान में गोरखा रेजीमेन्ट एवं अन्य रेजीमेन्टो में तैनात 30 सैनिक एवं अधिकारी तथा विभिन्न अर्धसैनिक बलों में तैनात सात जवान और अधिकारी शामिल हैं।

कोई घर ऐसा नही है जिसमें कोई सैनिक न हो। गाँव के मुखिया एवं पूर्व सैनिक रामसिंह गुरुंग ने बताया ‘मेरे पिता बुद्धमान गुरंग को अंग्रेजों ने 100 वर्ष पहले गोरखा रेजिमेन्ट में सैनिक रहे उनके चार साथियों के साथ यहाँ जंगल कटवाकर बसाया था।

स्वयं द्वितीय विश्व युद्ध में भाग ले चुके गुरुंग 92 वर्ष की आयु में भी बेहद चुस्त चौकन्ने हैं, बिना चश्मे के अखबार पढ़ सकते हैं और अपना सारा काम खुद करते हैं। वह गाँव के इतिहास और अपने पुरखों की बहादुरी और उपलब्धियों के किस्से इतनी तत्परता से सुनाते हैं मानो प्रथम विश्व युद्ध से लेकर करगिल तक का आँखों देखा विवरण बता रहे हों। उन्हें सौ साल के सैनिक इतिहास के बावजूद गाँव को अब तक ’ सैनिक गाँव ’ घोषित नहीं किए जाने का अफसोस है।

गुरुंग बताते है कि प्रथम विश्व युद्ध में पराक्रम के लिए उनके पुरखों बुद्धमान गुरुंग और लेफ्टीनेन्ट शमशेर को 1946 में सरदार बहादुर आर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

गुरंग का बेटा आरपीएफ में है और उनके तीन दामाद जो उसी गाँव के हैं, सेना में हैं । गुरुंग ने गर्व से बताया कि उनकी पीढी के नौजवानो ने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया और अगली पीढ़ी ने 1962 के चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध, 1988 में शांति सैनिक के रुप में जाफना श्रीलंका तथा छह लड़कों संदीप गुरुंग, सोनू गुरुंग, मोहित गुरुंग, सत्यम थापा, कमल गुरुंग और आनन्द गुरुंग ने करगिल युद्ध में पराक्रम दिखाया।

गाँव के सभी 30 मौजूदा और 27 पूर्व सैनिको का नाम क्रमवार गिनाने और उनके पराक्रम के किस्से सुनाते हुए गुरुंग ने कहा कि ईश्वर की कृपा से उनके परिवारों में शिक्षा, सम्पन्नता और समृद्धि की कमी नहीं है। सभी सुखी सम्पन्न है और गाँव की लड़कियाँ तक बीए पास है , मगर अफसोस सिर्फ इतना है कि उनके गाँव को अब तक ’ सैनिक गाँव ’ नहीं घोषित किया गया है।

गुरुंग ने बताया कि वर्ष 1999 में तत्कालीन रामप्रकाश गुप्ता सरकार ने सेना की सेवा में विशेष योगदान देने वाले गाँवों को ’ सैनिक गाँव ’ का विशेष दर्जा दिए जाने की नीति लागू की थी, जिसके बाद उनके गाँव के लोगों ने जिलाधिकारी को आवेदन भी किया था, मगर अब तक उस दिशा में बात आगे नही बढ़ी है।

छठवीं गोरखा रेजीमेन्ट में तैनात रामू गुरुंग को 1988 में शांति सेना के साथ जाफना श्रीलंका भेजा गया था जहाँ बारुदी सुरंग फटने से उनके दोनों पैर उड़ गए। उन्हें भारत सरकार ने जंगी इनाम से नवाजा था जो इस गाँव में मौजूद है।

उदितपुर ग्राम पंचायत के प्रधान भागीरथी ने बताया कि ग्राम पंचायत की तरफ से भी जिलाधिकारी को इस गाँव को 'सैनिक गाँव’ घोषित करने का प्रस्ताव भेजा जा चुका है।

जिलाधिकारी विनय कुमार श्रीवास्तव ने बताया है कि उदितपुर नेपाली टोला को ' सैनिक गाँव’ घोषित करने का ग्राम सभा से मिले प्रस्ताव को उत्तर प्रदेश शासन को भेजा गया है और आशा जताई कि शीघ्र ही इस दिशा में जरुरी औपचारिकताएँ पूरी हो जाएँगी। (भाषा)