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Written By भाषा
Last Modified: कोलकाता , रविवार, 18 अप्रैल 2010 (20:48 IST)

आर्मेनियाइयों के वंशजों की संख्‍या घटी

आर्मेनियाइयों के वंशजों की संख्‍या घटी -
आजादी के समय भारत में आर्मेनियाइयों के वंशजों की तादाद जहाँ 40 हजार के लगभग थी वहीं अब यह महज 200 रह गई है।

भारत में आर्मेनियाइयों के प्रबंधक और धर्मगुरु फादर खोरन होवहानीसयान ने बताया कि जो आर्मेनियाई मूल के लोग रह गए हैं, उनमें अधिकतर कोलकाता, मुंबई, नई दिल्ली और बेंगलुरु में हैं।

इस समुदाय के सबसे अधिक लोग कभी कोलकाता में रहते थे जिनकी तादात अब वहाँ केवल 152 रह गई है। समुदाय के लोग कभी शहर के व्यावसायिक तबके का अहम हिस्सा होते थे खासकर विनिर्माण क्षेत्र का। अब उनमें अधिकतर पेशेवर हैं।

आजादी के बाद समुदाय के लोगों ने अमेरिका इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का रुख किया और वहाँ बसे अपने रिश्तेदारों की मदद से व्यवसाय शुरू किया।

मशालों के व्यापार में लगे आर्मेनियाई व्यापारियों में अधिकतर उत्तरी ईरान में बसे थे, जहाँ से वे सूरत, चेन्नई, कोलकाता और मुर्शिदाबाद जैसे तटवर्ती शहर पहुँचे। बाद में वे भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक केन्द्र कोलकाता आए।

ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होंने जहाजरानी क्षेत्र कोयला खानों सम्पत्ति कारोबार तथा होटल व्यवसाय में हिस्सा लिया।

फादर होवहानीसयान के अनुसार भारतीय आर्मेनियाइयों को पर्सिया के शासक शाह अब्बास ने उनके उद्यमी रुझान के चलते प्रोत्साहित किया और वे 1604 में ईरान में बस गए। जब बाद के मुस्लिम शासकों ने ईसाई आर्मेनियाइयों के खिलाफ नफरत भरा रवैया अपनाया तो वे भारत जैसे सहिष्णु देश में मशालों, फलों और रत्नों का व्यापार करने लगे और बाद में वहाँ बस गए। उन्होंने भारत में सात गिरजाघर भी बनाए जिनमें तीन कोलकाता में और चेन्नई, मुंबई, चिनसुरा और मुर्शिदाबाद प्रत्येक में एक गिरजाघर है।

यहाँ आर्मेनियन क्लब के अध्यक्ष पीटर हायरापेट के अनुसार 1960 के दशक में देश के इस हिस्से से आर्मेनियाई मूल के लोगों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। उन्होंने बताया कि अधिकतर आर्मेनियाई वंशजों को आर्मेनिया जाने का मौका नहीं मिला हालाँकि वे एक बार वहाँ गए हैं।

फादर होवहानीसयान ने बताया कि भारत में आर्मेनियाई वंशज आर्मेनियाइयों के नरसंहार की 95वीं बरसी पर यहाँ 24 अप्रैल को एकत्रित होंगे। आर्मेनिया के राजदूत आरा हाकोबयान भी इस मौके पर उपस्थित होंगे।

उन्होंने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1915 में आटोमन साम्राज्य के तुर्कों ने जब आर्मेनियाइयों को पूर्वी अनातोलिया से सीरिया के रेगिस्तान में खदेड़ दिया तो 15 लाख के लगभग आर्मेनियाई मारे गए थे।

आर्मेनियाई 24 अप्रैल 1915 को नरसंहार के दिन के रूप में मनाते हैं जब आटोमन सरकार ने करीब 50 आर्मेनियाई बुद्धिजीवियों और सामुदायिक नेताओं को गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें फाँसी दे दी गई। (भाषा)