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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली (वार्ता) , शनिवार, 2 जून 2007 (04:18 IST)

जेपी के सपने को पूरा किया जाए

जेपी के सपने को पूरा किया जाए -
बिहार में जेपी आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को पेंशन देने के फैसले के विरोध की आवाज राज्य से बाहर देश की राजधानी दिल्ली में भी सुनाई पड़ रही है।

बिहार में नीतीश सरकार के इस फैसले का विरोध न केवल कांग्रेस बल्कि वामपंथी दलों ने भी किया है।

इमरजेंसी में जेल की सजा भुगतने वाले समाजवादियों, बुद्धिजीवियों और लेखकों का मानना है कि यह न केवल एक गलत परंपरा की शुरुआत है, बल्कि एक राजनीतिक स्टंट भी है।

प्रसिद्ध समाजवादी विचारक एवं जेपी के निकट सहयोगी सुरेंद्र मोहन, गाँधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र कुमार, प्रसिद्ध लेखक गिरधर राठी, वामपंथी आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह का कहना है कि जेपी आंदोलन में भाग लेने वालों को पेंशन देने से पहले नीतीश सरकार को जेपी के सपनों को पूरा करना चाहिए।

1977 में जनता पार्टी के महासचिव रहे सुरेंद्र मोहन का कहना है कि यह सही है कि जेपी आंदोलन देश की एक बड़ी राजनीतिक घटना थी और आजादी के बाद ऐसा आंदोलन नहीं हुआ था, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसके आंदोलनकारियों को आज पेंशन दी जाए। आज जरूरत है जेपी के सपनों को पूरा करने की।

मोहन का कहना है कि इंमरजेंसी के बाद दिल्ली सरकार ने जेपी आंदोलन के ऐसे आंदोलनकर्मियों को 25 हजार रुपए की एकमुश्त राशि प्रदान की थी जो जेल गए थे, पर पेंशन देना उचित नहीं है। यह एक गलत परंपरा की शुरुआत है।

इमरजेंसी में मुजफ्फरपुर जेल में सजा काट चुके सुरेंद्र कुमार ने कहा कि इंदिरा गाँधी ने अपना जनसमर्थन जुटाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों को पेंशन देना शुरू किया, उसी तरह नीतीश कुमार भी अपना राजनीतिक समर्थन बँटोरने के लिए इस तरह का राजनीतिक स्टंट कर रहे हैं।

इससे तो भविष्य में राजनीति, सामाजिक आंदोलन का आधार कमजोर होगा और उसका उद्देश्य ही संकुचित हो जाएगा। जिस तरह आजादी की लडाई में लोगों ने यह सोचकर भाग नहीं लिया था कि उन्हें एक दिन पेंशन मिलेगी।