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Written By भाषा

आर्थिक मंदी ने बढ़ाई वृद्धों की मुश्किलें

आर्थिक मंदी ने बढ़ाई वृद्धों की मुश्किलें -
समाज की बेरुखी का पहले से ही शिकार रहे वृद्धों की मुश्किलें वैश्विक आर्थिक मंदी ने और बढ़ा दी हैं। बदले आर्थिक परिदृश्य ने ऐसी स्थितियाँ पैदा कर दी हैं कि वृद्धों के लिए भोजन, ईंधन, दवा जैसी दैनिक जरूरतों की पूर्ति करना भी दूभर हो रहा है और इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए उन्हें अपनी सुविधाओं में कटौती करनी पड़ रही है।

इस बात का खुलासा एक गैर सरकारी संस्था एजवेल फाउन्डेशन द्वारा किए गए सर्वेक्षण में किया गया। संस्था के अनुसंधान अधिकारी नरेंद्र नेगी ने बताया कि यह सर्वेक्षण आर्थिक मंदी का बुजुर्गों पर पड़े असर का अध्ययन करने के लिए किया गया।

सर्वेक्षण का विचार कैसे आया इस बारे में पूछे जाने पर नेगी ने बताया कि साल 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। अर्थव्यवस्था के हरेक क्षेत्र में नकारात्मक रुझान पाया गया। इसका सबसे अधिक असर बुजुर्ग निवेशकों पर पड़ा है। आर्थिक मंदी और मूल्यवृद्धि की वजह से बुजुर्गों को अपने गाढ़े श्रम की कमाई से हाथ धोना पड़ा। इसने हमें यह जानने पर मजबूर किया कि समाज के इस वर्ग पर क्या असर पड़ा है ताकि कुछ उपचारात्मक उपाय किए जा सकें।

इस अध्ययन में पाया गया कि 55 से 60 वर्ष की उम्र के करीब आधे सरकारी एवं निजी कर्मचारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना का विकल्प अपनाने की योजना त्याग दी है।

सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब 60 फीसदी ने स्वयं या म्यूचुअल फंड के जरिये शेयर खरीद रखे हैं और 80 फीसदी से अधिक लोगों ने बताया कि उन्होंने साल 2008 में इन मदों में लगाए गए पैसे खो दिए हैं।

परिणामस्वरूप इनमें से 60 फीसदी निवेशकों ने अपनी निवेश रणनीति बदल दी है। अब वे अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले फिक्स्ड डिपाजिट, एनएससी, किसान विकास पत्र तथा सरकारी क्षेत्र की अन्य बचत सह निवेश योजनाओं में अपना पैसा लगा रहे हैं।

गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण का निष्कर्ष देशभर के करीब 1500 वृद्धों से किए गए साक्षात्कार पर आधारित है। साक्षात्कार में 55 से 70 की आयु वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। इसके लिए सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों, व्यापारियों और गैर पेंशनरों को चुना गया। सर्वेक्षण में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र की महिलाओं और पुरुषों को चुना गया।

दिसंबर 2008 में देश के 50 जिलों में कराए गए इस सर्वेक्षण में पाया गया कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए सबसे ज्यादा लोग अपनी मनोरंजन जरूरतों में कटौती कर रहे हैं।

करीब 61 फीसदी लोगों ने इस मद में कटौती करने की बात मानी है। वहीं 60 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने खरीदारी स्थगित कर दी है। 52 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्होंने यात्रा अथवा तीर्थांटन स्थगित कर दिया है। वहीं 48 फीसदी लोग अन्य तरह की सुविधाओं का लाभ लेने से बच रहे हैं, जबकि 45 फीसदी लोगों ने अपने भोजन और दवा व्यय में कटौती की है।