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Written By भाषा

आतंकी बताए गए सात लोग कोर्ट से बरी

अदालत ने की दिल्ली पुलिस की खिंचाई

आतंकी बताए गए सात लोग कोर्ट से बरी -
दिल्ली पुलिस द्वारा आतंकवादी बताए गए सात लोगों को बुधवार को एक अदालत ने रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि इस संबंध में पुलिस की मुठभेड़ की कहानी बहुत सावधानीपूर्वक गढ़ी गई है।

अतिरिक्त सत्र जज वीरेंद्र भट ने साकिब रहमान, बशीर अहमद शाह, नजीर अहमद सोफी, हाजी गुलाम मोइनुद्दीन डार, अब्दुल मजीद बट, अब्दुल कयूम खान और वीरेन्द्र कुमार सिंह को बरी कर दिया। इन सातों को दिल्ली पुलिस ने 2005 में यहाँ एक कथित फर्जी मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया था।

अदालत ने कहा कि एक दो जुलाई 2005 की मध्य रात्रि को कथित तौर पर हुई मुठभेड़ वास्तव में नहीं हुई थी और पूरी तरह फर्जी मुठभेड़ को पेश किया गया।

अतिरिक्त सत्र जज ने हाल ही में कहा कि मुठभेड़ की कहानी बहुत सावधानीपूर्वक दिल्ली पुलिस के धौलाकुआँ कार्यालय में गढ़ी गई। यह कहानी उपनिरीक्षक रविन्दर त्यागी ने सहायक उपनिरीक्षकों नीराकर, चरणसिंह और महेंदरसिंह के साथ मिलकर तैयार की।

अभियोजन पक्ष ने कहा था कि आरोपी साकिब रहमान, नजीर अहमद सोफी, गुलाम मोइनुद्दीन डार और बशीर अहमद शाह को एक जुलाई 2005 को गुड़गाँव दिल्ली मार्ग के समीप गोलीबारी के बाद गिरफ्तार किया गया था।

दिल्ली पुलिस ने बताया कि ये चारों आरोपी कार में थे और रुकने के लिए कहने पर इन लोगों ने भागने का प्रयास किया। पुलिस दल ने पीछा कर इन लोगों को रोका। आरोपपत्र में पुलिस ने दावा किया कि आरोपियों ने बताया कि वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के निर्देशों पर काम कर रहे थे।

पुलिस ने यह भी दावा किया कि चारों से पूछताछ के बाद तीन अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनके पास से बड़ी संख्या में जाली नोट, एक एके-47 राइफल, कई मैगजीनें, कारतूस और हथगोले बरामद किए गए।

बहरहाल, सभी आरोपियों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में फँसाया गया है। आरोपी गुलाम मोइनुद्दीन डार ने अदालत में कहा कि वह कश्मीर घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियान में शामिल था और कई आतंकवादियों का आत्मसमर्पण कराने में उसकी अहम भूमिका थी, लेकिन उसे इस मामले में फँसाया गया है।

अदालत ने आरोपी व्यक्तियों की बेकसूर होने की दलीलें सुनने के बाद कहा कि यह साबित होता है कि पुलिस द्वारा बताई गई मुठभेड़ की कहानी पूरी तरह फर्जी और गढ़ी हुई थी। अदालत ने कहा कि आरोपियों ने अपने बचाव में कहा कि वे बेकसूर हैं और उन्हें इस मामले में फँसाया गया है। उनका यह तर्क विश्वसनीय है।

अदालत ने पुलिस आयुक्त से अपने अधिकार का दुरुपयोग करने वाले चारों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ समुचित जाँच करने और तीन माह में रिपोर्ट देने को कहा। अतिरिक्त सत्र जज ने दिल्ली पुलिस के जाँच के तरीके पर भी गहरी नाराजगी जाहिर की।

उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष कोई भी ऐसा सबूत पेश नहीं कर पाया जिससे पता चलता कि आरोपी व्यक्ति वास्तव में आतंकवादी हैं और उनका पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध है। दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में कोई जाँच नहीं की।

जज ने कहा कि दिल्ली पुलिस आरोपियों से और उनके बताए जाने के बाद बरामद हथियारों और गोला-बारूद तथा जाली नोटों के स्रोत का भी पता नहीं लगा पाई। अदालत ने यह भी कहा कि कुछ पुलिसकर्मियों की इस तरह की कार्रवाई से आम जनता का पूरी पुलिस व्यवस्था पर से विश्वास उठता जा रहा है।

जज ने कहा कि इन चारों पुलिस अधिकारियों ने पूरे दिल्ली पुलिस के लिए शर्मनाक और अपमानजनक स्थिति उत्पन्न की है। मेरी राय में एक पुलिस अधिकारी द्वारा बेकसूर नागरिक को आपराधिक मामले में फँसाने से अधिक गंभीर अपराध और कोई नहीं हो सकता। (भाषा)