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Written By वार्ता

अमिताभ ने पिता की पुस्तक संपादित की

Amitabh Bachchan | अमिताभ ने पिता की पुस्तक संपादित की
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बिग बी अमिताभ बच्चन को अपने पिता एवं हिन्दी के लोकप्रिय कवि डॉ.हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ इतनी पसंद है कि उन्होंने उनकी कविताओं का एक संचयन तैयार किया है।

भारतीय ज्ञानपीठ 'हरिवंश राय की कविताएँ....चयन अमिताभ बच्चन' प्रकाशित करने जा रहा है जो उनकी 102वीं जयंती के अवसर पर 27 नवम्बर को प्रकाशित होगा और मुंबई में खुद बिग बी इसका लोकार्पण करेंगे।
ज्ञानपीठ के निदेशक रवींद्र कालिया ने बताया कि बिग बी ने इस पुस्तक की एक भूमिका भी लिखी है और उनका अपने पिता पर एक संस्मरण भी है।

अमिताभ बच्चन ने भूमिका में लिखा है कि अब जब इस पुस्तक के लिए अपनी पसंदीदा कविताओं को चुनने बैठा तो बाबूजी के शब्दों में कहता हूँ कि क्या चुनूँ और क्या छोडूँ। फिर भी कोशिश की है कि अपनी सर्वाधिक प्रिय कविताएँ आप तक पहुँचा दूँ।

पुस्तक में बच्चन जी की तेराहार, मधुशाला़, मधुकलश, सप्तरंगिनी, निशानिमंत्रण आदि से संग्रहित 66 कविताएँ हैं। 1907 में उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे हरिवंश राय बच्चन का प्रथम काव्य संग्रह तेराहार 1932 में और मधुशाला 1935 में छपा था1 उनके कुल 24 कविता संग्रह छपे थे।

बिग बी ने भूमिका में यह भी लिखा है...'मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे उनकी सभी कविताएँ पूरी तरह समझ में आ जाती हैं, पर यह जरूर है कि उस वातावरण में रहते-रहते, उनकी कविताएँ बार-बार सुनते-सुनते उनकी जो धुनें हैं, उनके जो बोल है, वह अब जब पढ़ता हूँ तो बिना किसी कष्ट के ऐसा लगता है कि यह मैं सदियों से सुनता आ रहा हूँ। मैंने कभी बैठकर उनकी कविताएँ रटी नहीं हैं। वे तो ऑटोमेटिक मेरे अंदर से निकल पड़ती हैं।'

उन्होंने यह भी लिखा है...जीवन भर बाबूजी से जब तब कुछ न कुछ सीखता ही रहा हूँ, जो प्रत्यक्षतः साफ शब्दों में नहीं सीखा वह उनकी जीवनी पढ़कर और उनकी कविता पढ़कर सीखा और जाना। भूमिका में उन्होंने यह भी लिखा है कि वैसे तो हर पिता अपने पुत्र के जीवन का बहुत बड़ा आधार होता है, पर अनजाने ही मेरे बाबूजी मेरे संपूर्ण जीवन को संचालित करने वाली धुरी बन गए थे।

अमिताभ के अनुसार बाबूजी बडे़ अनुशासनप्रिय थे। बचपन में उनके प्रति बहुत आदर भरा डर मन में समाया रहता था। पर ज्यों-ज्यों जीवन को गंभीरता से जीना शुरू किया, यह धारणा मन में बैठती गई कि बाबूजी ही वह ताकत है जिनकी अँगुली थामकर किसी भी भवबाधा को पार किया जा सकता है।