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Written By ND

माया को प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं दलित

माया को प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं दलित -
नईदुनिया टीम
नई दिल्ली। जनता का बहुमत वरुण गाँधी के चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है। दलित मतदाताओं का बहुमत मायावती को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहता है। रामविलास पासवान का नंबर इसके बाद है जबकि कांग्रेसी नेता सुशील कुमार शिंदे तीसरे नंबर पर हैं। खास बात यह है कि हर वर्ग का बहुमत चाहता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ मिले।

मुस्लिम और दलित मतदाताओं का बहुमत कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की नीतियों से संतुष्ट है। लेकिन भाजपा के खिलाफ एकतरफा मतदान को लेकर मुसलमानों में भारी कशमकश है। उच्च शिक्षा में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की वजह से सवर्णों का बहुमत कांग्रेस से नाराज है लेकिन पिछड़ों का बहुमत इसे लेकर कांग्रेस से खुश है। यह नतीजे नईदुनिया-न्यूज एक्स के ताजा सर्वेक्षण के हैं।

हाल ही में नईदुनिया-न्यूज एक्स ने दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, प. बंगाल, जम्मू-कश्मीर, असम, महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में तैनात अपने करीब आठ सौ संवाददाताओं के जरिए कराए गए सर्वेक्षण में सामान्य, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और अनुसूचित जाति के मतदाताओं से उनसे जुड़े मुद्दों पर कुछ सवाल पूछे। इन्हीं के जवाब में उपर्युक्त नतीजे सामने आए हैं। सर्वेक्षण में 7828 लोगों से बातचीत की गई।

नईदुनिया-न्यूज एक्स सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक 57 फीसदी लोगों की राय है कि अपने सांप्रदायिक भाषणों के लिए रासुका के तहत एटा जेल में बंद वरुण गाँधी को चुनाव मैदान से हटाने की चुनाव आयोग की सलाह भाजपा को माननी चाहिए जबकि 43 फीसदी लोग आयोग की सलाह से सहमत नहीं हैं। 6 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। इसी तरह भारी बहुमत से लोगों ने जातिगत समीकरणों के आधार पर मतदान से इंकार किया है। 70 फीसदी लोग जातिगत समीकरणों के आधार पर मतदान के खिलाफ हैं, जबकि 24 फीसदी सहमत हैं। 6 प्रतिशत लोगों की कोई राय नहीं है।

सर्वेक्षण में मुस्लिम मतदाताओं के बहुमत यानी 59 फीसदी लोगों ने यूपीए सरकार की अल्पसंख्यक कल्याण नीतियों के प्रति संतोष जाहिर किया, जबकि 33 फीसदी लोग संतुष्ट नहीं हैं। 8 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। आमतौर पर माना जाता है कि मुस्लिम मतदाता भाजपा के खिलाफ एकतरफा मतदान करते हैं। लेकिन सर्वेक्षण में मुसलमानों में इस सवाल पर कि क्या वे भाजपा को रोकने के लिए एकतरफा मतदान करेंगे, एक राय नहीं मिली।

जहाँ 48 फीसदी लोगों ने कहा कि वे भाजपा के खिलाफ एकतरफा मतदान करेंगे, वहीं 43 फीसदी लोग इसके खिलाफ हैं। 9 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। लेकिन मुस्लिम मतदाताओं का बहुमत (करीब 50 फीसदी) लोग यह मानते हैं कि भाजपा आतंकवाद के मुद्दे को मुसलमानों के खिलाफ अपनी ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है। लेकिन 40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता ऐसा नहीं मानते और 10 फीसदी कहते हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं है।

नईदुनिया-न्यूज एक्स सर्वेक्षण से यह धारणा भी टूटी है कि अटलबिहारी वाजपेयी के चुनावी राजनीति से हट जाने के बाद सवर्ण मतदाता भाजपा से दूर हो गए हैं। सर्वेक्षण में सवर्ण मतदाताओं से जब यह पूछा गया कि अटलबिहारी वाजपेयी के राजनीति में सक्रिय न होने के बाद क्या वे भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगे तो 61 फीसदी लोगों ने हाँ कहा जबकि 30 फीसदी ने कहा, नहीं। 9 फीसदी ने कोई राय नहीं दी। कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में पिछड़ों को आरक्षण देने से सवर्णों में नाराजगी अभी बरकरार है। 55 फीसदी लोगों ने कहा कि इस वजह से वे कांग्रेस से नाराज हैं, जबकि 38 फीसदी ने कहा कि नाराजगी नहीं है। 7 फीसदी ने तटस्थता दिखाई।

सवर्ण गरीबों को आरक्षण के पक्ष में 83 फीसदी लोगों ने हाँ कहा, सिर्फ 13 फीसदी ने कहा कि उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। 4 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। इसी तरह सवर्णों का भारी बहुमत पिछड़ों और दलितों के संपन्न परिवारों को आरक्षण के खिलाफ है। सर्वेक्षण में 84 फीसदी लोगों ने कहा कि संपन्न पिछड़ों और संपन्न दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। 12 फीसदी ने इसके उलट राय दी जबकि 4 फीसदी की कोई राय सामने नहीं आई।

पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का भी भारी बहुमत गरीब सवर्णों को आरक्षण के पक्ष में है। इस बारे में पूछे गए सवाल पर 75 फीसदी लोगों ने हाँ कहा जबकि सिर्फ 18 फीसदी लोगों ने ना कहा। 7 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। उच्च शिक्षा में पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने के यूपीए सरकार के फैसले का असर इस वर्ग में कांग्रेस के पक्ष में दिख रहा है।

पिछड़े वर्ग के मतदाताओं से जब यह पूछा गया कि कांग्रेस गठबंधन सरकार के इस कदम की वजह से क्या वे कांग्रेस के पक्ष में वोट देंगे? तो 60 फीसदी लोगों ने हाँ कहा जबकि 30 फीसदी ने कहा, नहीं। 10 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी। संपन्न पिछड़ों को आरक्षण का लाभ मिलने के पक्ष में 53 फीसदी लोगों ने राय दी जबकि 40 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें यह लाभ नहीं मिलना चाहिए। 7 फीसदी लोगों ने कोई राय नहीं दी।

अनुसूचित जाति के मतदाताओं में बहुमत का मानना है कि कांग्रेस गठबंधन की सरकार की नीतियों से दलितों का भला हुआ है। 56 फीसदी लोगों ने इसके पक्ष में राय दी जबकि 32 फीसदी लोग इससे सहमत नहीं हैं। अनुसूचित जाति के नेताओं में प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद मायावती हैं। 61 फीसदी दलित उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं,जबकि 26 फीसदी लोग रामविलास पासवान को और 13 फीसदी लोग कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते हैं।

सर्वेक्षण का राज्यवार क्रम से विश्लेषण करने पर बेहद दिलचस्प तस्वीर सामने आती है। उत्तरप्रदेश में जहाँ वरुण गाँधी पर रासुका भाजपा के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है, वहाँ 68.5 फीसदी लोगों ने वरुण को उम्मीदवार न बनाने की चुनाव आयोग की सलाह से सहमति जताई। प. बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान में बहुमत की राय वरुण को उम्मीदवार न बनाए जाने के पक्ष में है। लेकिन हरियाणा और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में वरुण को सहानुभूति भी मिली है।

अटलबिहारी वाजपेयी की सक्रिय राजनीति में अनुपस्थिति के बावजूद सवर्ण मतदाताओं का ज्यादातर राज्यों में बहुमत भाजपा के साथ है, लेकिन प. बंगाल में सवर्णों का बहुमत बिना वाजपेयी वाली भाजपा को वोट देने के पक्ष में नहीं है। उत्तरप्रदेश जहाँ से वाजपेयी का बेहद गहरा संबंध है और वे लगातार कई बार लखनऊ से सांसद चुने गए, वहाँ अब भी वाजपेयी का जादू बरकरार है और 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने वाजपेयी के नेपथ्य में रहने के बावजूद भाजपा को वोट देने की बात कही है। राजस्थान में भी बहुमत इसी राय का है।

हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर में भी सवर्णों का बहुमत वाजपेयी के बिना भी भाजपा के पक्ष में है। हालाँकि बिहार में भी 40 फीसदी से ज्यादा सवर्णों ने भाजपा को वोट देने की बात कही, लेकिन करीब 34 फीसदी लोगों ने बिना वाजपेयी के भाजपा को वोट न देने की बात भी कही।

सर्वेक्षण में एक बात करीब-करीब सभी जगह समान रही कि लोगों ने जातीय ध्रुवीकरण को नकार कर कामकाज, सरकार की उपलब्धियों या विफलताओं, उम्मीदवार की योग्यता-अयोग्यता, छवि आदि आधारों पर मतदान करने की बात कही है। लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, प. बंगाल, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड ही नहीं, जातिवादी राजनीति के लिए जाने जाने वाले बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखंड में भी सर्वेक्षण के दौरान मतदाताओं के बहुमत ने जातिवादी समीकरणों को नकारकर मतदान करने की बात कही है। इसी तरह लगभग सभी राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं के बहुमत ने भी इस बात को नकारा है कि वे सिर्फ भाजपा को हराने के लिए एकतरफा मतदान कर सकते हैं।

नईदुनिया-न्यूज एक्स का यह सर्वेक्षण जहाँ कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को इसके लिए राहत देता है कि उसके अपने जनाधार वर्ग मुस्लिम और दलितों में उसकी नीतियों और उपलब्धियों को लेकर संतोष है तो भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को भी यह संतोष हो सकता है कि अटलबिहारी वाजपेयी की चुनाव प्रचार से अनुपस्थिति के बावजूद सवर्ण मतदाता अभी भाजपा से दूर नहीं हुए हैं।