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Written By भाषा

जिस लोकसभा न वेख्या...

असगर वजाहत ने पाकिस्तान के शहर के बारे में जिस लाहौर न वेख्या वो जन्मया ही नईनाटक
असगर वजाहत ने पाकिस्तान के शहर के बारे में 'जिस लाहौर न वेख्या वो जन्मया ही नई'...नाटक लिखा लेकिन देश में कई महत्वपूर्ण नाटकीय घटनाक्रमों के सूत्रधार रहे कई नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन में लोकसभा का मुँह नहीं देखा।

ऐसे नेताओं में मौजूदा चुनाव के बाद देश के अगले प्रधानमंत्री के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की मंशा रखने वाले कई दिग्गज नेता शामिल हैं लेकिन वे अब तक कभी लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं हुए हैं।

जानकारों ने बताया कि ऐसे नेताओं में प्रमुख वामपंथी पार्टियों माकपा और भाकपा के प्रमुख क्रमश: प्रकाश करात और एबी वर्धन के अलावा तीसरे मोर्चे को मजबूती देने में लगे आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता शामिल हैं।

करात ने छात्र राजनीति के दौरान भले ही चुनाव लड़ा और जीता हो लेकिन लोकसभा में वे अब तक दाखिल नहीं हो सके हैं। यही हाल वर्धन का भी है, जिनसे लोकसभा की चुनावी सफलता अभी कोसों दूर है।

विशेषज्ञों ने बताया कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के इन नेताओं से पहले भी ऐसी स्थिति रही है जब देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता निर्वाचित सदन से दूर रहे।

उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में देश में दलित राजनीति जिस महान नेता के इर्दगिर्द घूमती है, वहीं डॉ. भीमराव आम्बेडकर 1952 में लोकसभा का चुनाव हार गए थे और प्रजातांत्रिक भारत में वे सिर्फ राज्यसभा के सदस्य बन पाए।

जानकारों के अनुसार देश में क्षेत्रीय दलों के उभार के साथ जो स्थिति पैदा हुई है, उसमें इन दलों के नेता अपने गृहराज्यों में सीमित होकर रह जाते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद राज्य का मुख्यमंत्री पद उनके लिए सर्वोच्च बनकर रह जाता है।

उन्होंने कहा कि इसी का नतीजा रहा कि तमिलनाडु में द्रमुक और अन्नाद्रमुक की स्थापना करने वाले अन्नादुरै और एमजी रामचंद्रन ने कभी लोकसभा का रुख नहीं किया और राज्य की राजनीति से ही संतुष्ट रहे। इन नेताओं की जगह लेने वाले तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने भी लोकसभा के प्रति ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है।

ये दोनों नेता लोकसभा में अपने दलों की सदस्य संख्या बढ़ाने का प्रयास तो करते हैं लेकिन कभी खुद सदन के लिए निर्वाचित होने की कवायद में नहीं दिखाई देते।

तटीय राज्य आंध्रप्रदेश में तेलुगूदेशम पार्टी की स्थापना के जरिये राजनीतिक क्रांति करने वाले एनटी रामाराव भी कभी लोकसभा का सदस्य नहीं बन सके। हालाँकि वे राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

रामाराव की विरासत संभाल रहे उनके दामाद एन. चंद्रबाबू नायडू की भी रुचि गृहराज्य में ज्यादा है। जानकारों ने कहा कि पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के नाम देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड है लेकिन वे भी लोकसभा के जरिये कभी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय नहीं हुए।

यह दीगर बात है कि वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे लेकिन उसी साल मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने के कारण राज्य में ही सीमित होकर रह गए।

जानकारों के अनुसार असम में प्रफुल्ल कुमार महंत मुख्यमंत्री रहे लेकिन वे भी कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े जबकि उनकी पत्नी जयश्री गोस्वामी ने जरूर लोकसभा के चुनाव में शिरकत की।

देश में कई राज्यों में ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं, जिन्होंने राज्यों की कमान लंबे समय तक संभाली और उनकी गिनती देश के महत्वपूर्ण नेताओं में होती है लेकिन उन्होंने कभी दिल्ली का रुख नहीं किया।

केरल के दिग्गज वामपंथी नेता ईके नयनार लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे लेकिन वे भी लोकसभा के लिए सिर्फ एक बार 1967 में निर्वाचित हो पाए। उन्होंने 1971 में कसरगोड़ से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की भी यही कहानी रही। वे 1977 में राज्य के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन लोकसभा में कभी नहीं आए। हालाँकि उनके पुत्र फारूक और पौत्र उमर दोनों लोकसभा के लिए कभी न कभी निर्वाचत हुए हैं और इन दोनों ने भी राज्य की बागडोर संभाली है।

जानकारों ने कहा कि दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत की क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं में राज्य विधानसभाओं के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ने की ललक ज्यादा दिखी है, जिसका नतीजा यह रहा है कि वे देश के सर्वोच्च निर्वाचित सदन के समय-समय पर सदस्य बने हैं।

ऐसे नेताओं में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव, बसपा प्रमुख मायावती, इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला, रालोद अध्यक्ष अजितसिंह आदि शामिल हैं।