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Written By भाषा
Last Modified: रायपुर (भाषा) , सोमवार, 11 मई 2009 (12:46 IST)

कम मतदान ने उड़ाई रातों की नींद

कम मतदान ने उड़ाई रातों की नींद -
लोकसभा चुनाव में इस बार मतदाताओं के कोई खास रुचि नहीं दिखाने से राजनीतिक दलों और चुनावी विश्लेषकों की रातों की नींद उड़ गई है। विभिन्न राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ के भी लगभग एक करोड़ 55 लाख मतदाताओं में से 45 फीसदी मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। मतदाताओं के इस मूड से राजनीतिक पार्टियाँ बेहद चिंतित हैं।

राजनीतिक विश्लेषक इसे लोगों में राजनीतिक दलों के प्रति कम होते विश्वास का परिचायक मानते हैं तो राजनीतिक दल मतदाताओं के मन को टटोलने का प्रयास करने जैसे उपायों पर बल देते हैं।

छत्तीसगढ़ में 16 अप्रैल को नक्सली वारदात के बीच 11 लोकसभा सीटों के लिए मतदान कराया गया। मतदान में राज्य के एक करोड़ 54 लाख 88 हजार 573 मतदाताओं में से केवल 55.25 फीसदी मतदाताओं ने हिस्सा लिया।

राज्य में यह पहली बार नहीं है कि लोकसभा चुनाव में कम मतदान हुआ हो। इससे पहले तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश में केवल वर्ष 1998 में ही 61.60 फीसदी मतदान हुआ था जबकि वर्ष 1989 में 55.42 फीसदी, वर्ष 1991 में 41.52 फीसदी, वर्ष 1996 में 56.78 फीसदी, वर्ष 1999 में 55.88 फीसदी और पिछले आम चुनाव वर्ष 2004 में 52.09 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।
मध्यप्रदेश में से वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया गया था लेकिन राजनीतिक दलों और राजनीतिक विश्लेषकों की चिंता का कारण कुछ और है। दरअसल राज्य में लगभग चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में इसी प्रदेश के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और आँकड़ा 70 फीसदी को पार कर गया था। जबकि उस दौरान राज्य के किसान खेती-किसानी में भी व्यस्त थे। केवल चार महीने में ऐसा क्या हो गया कि मतदान में 15 फीसदी तक की कमी आ गई।

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रमेश नैयर का कहना है कि अकसर देखा गया है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में मतदाता कम दिलचस्पी रखते हैं लेकिन मतदान में भारी कमी इस बात का संकेत है कि मतदाताओं का यहाँ के राजनीतिक दलों के प्रति विश्वास कम हो गया है।

नैयर कहते हैं कि अकसर राजनीतिक दल अपनी बातों पर अमल नहीं करते हैं और सभी दलों के पास ऐसे मुद्दों का अभाव है जिससे मतदाता आकर्षित हों। वहीं आवाम में नेताओं की विपरीत छवि बन रही है जो लोगों को राजनीतिक दलों से दूर कर रही है।

वे कहते हैं कि मतदाताओं का राजनीतिक दलों पर विश्वास कम होना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है क्योंकि इससे उन शक्तियों के हौसले बढ़ेंगे जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते हैं।

इधर राज्य के मुख्य राजनीतिक दल भी मतदान के प्रतिशत को लेकर खुश नहीं हैं और वे स्वीकार करते हैं कि कहीं न नहीं लोगों में राजनीतिक दलों के प्रति नाराजगी है जिसे दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। हालाँकि वे कम मतदान के लिए चुनाव आयोग के नियमों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं।

राज्य में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय स्वीकार करते हैं कि मतदाताओं के मन में राजनीतिक दलों के प्रति गुस्सा है और यही कारण है कि वे मतदान के प्रति उदासीन हैं।

साय कहते हैं कि यह नहीं है कि मतदाता किसी एक पार्टी के प्रति नाराज हैं। समस्या यह है कि उनकी नाराजगी सभी के प्रति है। और यह नाराजगी उनमें राजनीतिक दिलचस्पी को कम कर रही है।

भाजपा के इस वरिष्ठ नेता का कहना है कि देश में किसकी सरकार बनेगी या कौन बनेगा प्रधानमंत्री आदि अन्य बातों को लेकर सर्वे किया जाता है जबकि जरूरत है कि देश का आम आदमी क्या चाहता है और उनकी क्या भावनाएँ हैं इसको लेकर भी सर्वे किया जाना चाहिए। इसके अनुसार राजनीतिक दलों को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए।

राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू कहते हैं कि राज्य में कम मतदान प्रतिशत का एक कारण चुनाव आयोग के कड़े नियम भी हैं। साहू का कहना है कि राज्य में पहले चरण में मतदान हुआ और यहाँ सामान्य क्षेत्रों में मतदान का समय एक घंटा और नक्सली क्षेत्रों में दो घंटा कम कर दिया गया। इससे खासकर गाँवों के मतदाता मताधिकार से वंचित रह गए। इसके अलावा भीषण गर्मी और शादियों का मौसम होने के कारण भी मतदान में कमी आई है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ऐसे समय में जब हम सौ फीसदी मतदान की उम्मीद कर रहे हैं और मतदान कम हो रहा है तो यह निश्चित तौर पर चिंता की बात है। इस ओर सभी को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।