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Written By Naidunia

सानंद फुलोरा के अंतर्गत 11 जून को शहर आएँगी सिंधुताई सपकाळ अनुराग तागड़े

इंदौर समाचार
जिंदगी की नींव को पक्का करने के लिए पानी की जगह आँसू हों, और दुःख जैसे दोस्त हो! पेट की आग शांत करने के लिए हाथ में कटोरा हो और फिर भी अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जिंदगी जीने का जज्बा हो, तब ऐसी चौथी पास महिला को आप केवल सिंधुताई सपकाळ ही कह सकते हैं। उन्हें महाराष्ट्र की मदर टेरेसा से लेकर संत भी कहा गया, पर कहते हैं न की महान व्यक्तियों के पैर लोकप्रियता के बावजूद जमीं पर रहते हैं। सिंधुताई कुछ इस तरह की मिट्टी की बनी है।
अब तक 272 पुरस्कार और स्वयं पर फिल्म बनने के बावजूद आज भी उनकी चिंता रहती है कि उनके अनाथ आश्रमों में बच्चों को समय पर खाना मिला होगा या नहीं और इन बच्चों का भविष्य कैसा होगा। 1042 बच्चों की माँ, 207 जवांई और 36 बहुओं और सैकड़ों नाती-पोतों से भरपूर सिंधुताई सपकाळ का परिवार अपने आपमें एक संस्था है। समाज के सामने वे एक ऐसा उदाहरण हैं, जो न केवल प्रेरणादायी है, बल्कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किस तरह परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है इसका वे प्रत्यक्ष उदाहरण भी हैं। वे मैनेजमेंट की केस स्टडीज से ऊपर हैं और बॉलीवुड की चकाचौंध से दूर उनकी फिल्म अलग तरह से आपकी आत्मा को संतृप्त करती है। फिल्म ही क्यों, सिंधुताई स्वयं कविता, अभंग और भाषण इतना अच्छा देती हैं कि सुनने वाले सुनते रह जाते हैं। वाकई में उनकी जिंदगी के अच्छे बुरे अनुभव और सुख-दुख का संघर्ष सुनने की बात ही कुछ अलग है।
जिस प्रकार की घटनाएँ सिंधुताई के जीवन में घटी, वह अगर किसी सामान्य महिला के साथ घटित होती तब वह टूट जाती, बिखर जाती! पर, सिंधुताई ने इन दुःखों और अभावों को इकठ्ठा किया और इनकी पोटली बनाई। इन अनुभवों को लेकर वे निकल पड़ी, गरीबों और अनाथ लोगों की सहायता करने जिनका कोई नहीं होता! सही मायने में सिंधुताई को देखना सुनना और प्रेरणा लेना अलग ही तरह का अनुभव होता है।
बचा हुआ खाना खाती थी
बचपन ऐसे बीता की स्कूल में दूसरे बच्चों के खाने के टिफिन में से बचा हुआ खाना खाया। शादी होने के बाद जब गर्भवती हुई और डिलेवरी का समय आया तब सिंधुताई को गाय भैंस रखने वाली जगह पर लेटा दिया गया, पास में भी कोई नहीं था। लड़की को जन्म दिया तो उनके ससुरालवालों ने भगा दिया! मायके वाले भी रखने को तैयार नहीं। आखिर करें तो क्या करें? ट्रेन में भीख मांगना पड़ी। भगवान पर सहसा विश्वास नहीं था, पर भगवान जीने का जज्बा और विपरीत परिस्थतियों में लड़ने के लिए हिम्मत दे रहा था। यहीं से सिंधुताई ने ठान लिया था कि वे ऐसे लोगों की सहायता करेंगी, जिनका कोई नहीं होता। उनकी मेहनत से आज पुणे और अन्य जगहों पर अनाथों के लिए आश्रम खुल गए हैं। आज भी सिंधुताई को लोगों के सामने इन अनाथों के लिए झोली फैलाने में शर्म नहीं लगती। उनकी संस्था का ब्रह्मवाक्य है 'भगवान हमे हँसना सिखा, पर हम कभी रोए थे यह भूलने मत देना।' उन पर फिल्म भी बन चुकी है, यह फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रसिद्ध भी हुई। फिल्म जब बनी थी, तब इसमे उनके पति की छवि को काफी नकारात्मक बताया गया, पर सिंधुताई ने इसे सिरे से नकार दिया और पति की छवि को सामान्य ही रहने दिया। वे नववारी पहनकर अमेरिका भी गई और वहाँ भी लोगों ने उनका काफी सम्मान किया।
सानंद के कार्यक्रम में सिंधुताई
11 जून को यूसीसी ऑडिटोरियम में सायं 7 बजे से सानंद सिंधुताई सपकाळ अभिनंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। सानंद के अध्यक्ष सुभाष देशपांडे व मानद सचिव जयंत भिसे व कार्यक्रम संयोजक डॉ माया इंगळे व सह संयोजक तनया काटे ने बताया कि कार्यक्रम में सिंधुताई से बातचीत पुणे के सुधीर गाडगिळ करेंगे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उदयसिंह देशमुख (भय्यू महाराज) व वात्सल्य ग्रुप के प्रफुल्ल गाडगे होंगे। कार्यक्रम सभी के लिए खुला है। कार्यक्रम में सिंधुताई को कृतज्ञता निधी भी दी जाएगी।