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Written By WD

प्रेम अपनी आँखों में सबका सपना

डॉ.सुभाष राय

Love poem | प्रेम अपनी आँखों में सबका सपना
ND
तुम बताओगे प्रेम क्या है?
देह की मादक गहराई में
उतर जाने का पागल उन्माद या कुछ और
तप्त अधरों पर अधरों के
ठहर जाने के बाद की खोज है या कुछ और
माँसल शिखरों पर फिरती ऊँगलियों
से उठती चिनगारी भर या कुछ और
पल भर की मनमोहक झनझनाहट का
लिजलिजापन या कुछ और
तुम चुप क्यों हो, कुछ बताओ, बोलो
अगर प्रेम किया है कभी तो कैसा लगा
तुम प्रेम के बाद भी बचे रह गए या नहीं
प्रेम के बाद कोई और चाह बची या नहीं
एक बार पूरा पा लेने के बाद भी बार-बार
पाने की उत्कंठा तो शेष नहीं रही
अगर तुमने सचमुच प्रेम किया है
तो मैं जानता हूँ तुम चुप रहोगे,
बोलोगे नहीं, बोल ही नहीं पाओगे ना,
तुम सुनोगे ही नहीं मेरा सवाल
प्रेम देह को मार देता है
आँखों का अनंत आकाश एक
दहकते फूल में बदल जाता है
पूरा आकाश ही खिल उठता है
पलकें गिरती नहीं, उठतीं नहीं
कानों में गूँजती है वीणा महामौन की
और कुछ भी सुनाई नहीं पड़ता
फिर कमल हो या गुलाब या गुलदाऊदी
न दिखते हैं, न महकते हैं, न भाते हैं
गंध में बदल जाता है पूरा अस्तित्व
देह जीते हुए मर जाता है
तो प्रेम जन्म लेता है
जब किसी में उतर जाता है प्रेम
वह जीता ही नहीं अपने लिए
ND
वह रहता ही नहीं अपने लिए
कभी ऐसा हुआ क्या तुम्हारे साथ
याद करो, पीछे मुड़कर देखो
कभी करुणा बही क्या आँखों से
कभी मन हुआ भूख से बिलबिलाते
बच्चे को गोद में उठा लेने का
सबके दुख-दर्द में शरीक होने का
दूसरों के लिए जीवन लुटा देने का
नहीं हुआ तो सच मानो
तुमने प्रेम नहीं किया कभी
तुम प्रेम की परिभाषाएँ चाहे
जितनी कर लो, जितनी अच्छी कर लो
पर प्रेम का अर्थ नहीं कर सकते
प्रेम खुद को मारकर सबमें जी उठना है
प्रेम अपनी आँखों में सबका सपना है।