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Written By WD
Last Updated : मंगलवार, 23 अगस्त 2011 (17:35 IST)

'हजारे' के साथ हजारों....

प्रबुद्ध वर्ग का एक स्वर में समर्थन

''हजारे'' के साथ हजारों.... -
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*अन्ना हमारी आखिरी आशा है
तेजेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार,लंदन, महासचिव-कथा यू.के .
हम प्रवासी भारतीय जब जब भारत के बारे में पढ़ते हैं या भारत की यात्रा करते हैं, हमें शर्म का अहसास जरूर होता है। भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रेल्वे के टिकट खरीदने तक हर जगह भ्रष्टाचार का साँप अपना फन फैलाए खड़ा है। भारत में रिश्वत लेना अब भ्रष्टाचार नहीं माना जाता। लगता है कि आम आदमी ने समझौता कर लिया है कि यह तो होना ही है।

कोर्ट कचहरी से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस लेने तक में जो धांधली होती है, खासी शर्मनाक है। आज शायद ही कोई ऐसी भारतीय संस्था ऐसी बची होगी जहाँ भ्रष्टाचार नहीं फैला है। यहाँ तक कि हिन्दी साहित्य के आकलन और पुरस्कारों में भी धांधली ही दिखाई देती है। उस पर काला धन तो समाज का सबसे बड़ा जहर है।

हम सब अन्ना हजारे के साथ हैं। वे हमारी आखिरी आशा हैं। सरकार को जागना होगा और भ्रष्ट राजनेताओं से लेकर भ्रष्ट क्लर्कों तक से निपटना होगा।

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* हमारे सौ-सौ हाथ, अन्ना हजारे के साथ
सुधा अरोड़ा, वरिष्ठ साहित्यकार, मुंबई
अन्ना अपने सौ-पचास साथियों के साथ अनशन पर नहीं बैठे हैं, देश की पूरी आबादी उनके साथ है। भ्रष्टाचार का विकराल रूप सबको भयावह लग रहा है। आज एक एक राजनेता करोड़ों का घोटाला करता है। किसके लिए? यह लालच के अलावा कुछ नहीं। क्या करोड़ों का हेरफेर कर अपने खातों में डालने वाले समझते हैं कि वे अपनी कई पुश्तों के खाने का बंदोबस्त कर रहे हैं?

क्या वे ऐसी निकम्मी और अकर्मण्य औलादें पैदा कर रहे हैं, जो हाथ पर हाथ धरे बैठेगी और खुद कमाने के लायक नहीं होगी? क्या ऐसे देश का सपना भगतसिंह, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री ने देखा था? देश का हर नागरिक इस बर्बादी को बेबसी से निहार रहा है। उसे सिर्फ नेतृत्व की जरुरत है। अन्ना वह नेतृत्व कर रहे हैं।

इस मुहीम में हमें अन्ना का साथ देना है। आज़ादी के बाद से ही नेताओं के लिए देश उनकी प्राथमिकता नहीं रह गया है। येन-केन प्रकारेण जनता के वोट हथिया लेना, फिर अपनी तिजोरियाँ भरना उनका पहला और अंतिम उद्देश्य है। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार इस कदर अपनी जड़ें जमा चुके हैं कि संविधान के सारे कानून दरकिनार हो गए हैं। कहीं कोई सजा का प्रावधान नहीं। संविधान के ढीले क़ानून के तहत राजनेता हत्या करने के बाद भी सालों शान से घूमता है।

राजनेताओं के चेहरे इतने निर्लज्ज हो चुके हैं कि आज नेताओं के नाम से दिल में हिकारत का भाव पैदा होता है। देश की सारी जनता अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। ऐसे समय अन्ना के इस कदम ने जनता को राहत का रास्ता दिखाया है। घोटाले कर के देश की जनता का पैसा डकारने वालों को, जन लोकपाल बिल बनने के बाद, कम से कम जेल की सींखचों का खौफ तो होगा!

मुंबई में आठ फरवरी को इंडियन मर्चेंट्स चेंबर में महाराष्ट्र के बाईस कॉलेज के छात्र छात्राओं ने 'भ्रष्टाचार से कैसे निपटें' विषय पर हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की ओर से आयोजित प्रतिस्पर्धा में अपने बेहद तीखे और पैने बयान दिए थे। युवाओं में भी बेइंतहा रोष है। अगर भारत की पूरी जनता एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाए और अन्ना की इस मुहीम में साथ दे, तो रास्ता जरूर निकलेगा। 'कौन कहता है, आसमान में सूराख नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो!'

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*जो अन्ना के साथ नहीं, वह भ्रष्टाचार के साथ है
निर्मला जैन, लेखिका व समालोचक, मुंबई
मुझे लगता है जो भी अन्ना के साथ नहीं है वह भ्रष्टाचार के साथ है। हम सभी उनके लक्ष्य के साथ है। मैं और मन्नू जी अन्ना जी के पास होकर आए हैं यह इस बात का संकेत है कि हम उनकी आवाज से आवाज मिलाना चाहते हैं। आज देश आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा है ऐसे में यह बात सिर्फ बहस की नहीं बल्कि शिद्दत से महसूस करने की है। हम फर्क करना सीखें उन लोगों में जो केवल भ्रष्टाचार का शब्दों से विरोध करते हैं लेकिन कहीं ना कहीं मौकापरस्ती का सहारा लेते है।

अन्ना जी उन लोगों में से नहीं है। यह वह आवाज है जो दिल से निकली है और सचाई से निकली है। मैं वहाँ गई, दो घंटे बैठी। उनसे बातचीत नहीं हो सकी, और यउनसे बात करने का अवसर भी नहीं है क्योंकि इससे उनकी शक्ति का क्षय होगा। यउनकद्वारउठाआवाबुलंकरनअवसहैवहाँ हमें उनका प्रधानमंत्री को लिखा पत्र सुनाया गया। उनका मंतव्य स्पष्ट किया गया। मैं मानती हूँ कि इस वक्त देश को उसी जज्बे की जरूरत है, जो राष्ट्रीयता और एकजुटता दर्शाने के लिए प्रभावी रूप से सामने आना चाहिए।
WD

कौन है हजारे?
रामगोपाल वर्मा, फिल्म निर्देशक
मैं नहीं जानता कौन है हजारे? मैं सिर्फ ‍फिल्मी हस्तियों और गैंगस्टर की जानकारी रखता हूँ। मुझे नहीं पता वे अनशन क्यों कर रहे हैं? मैं तो अपनी सेहत के लिए उपवास रखता हूँ किसी और के लिए नहीं।

*सिंहासन खाली करो कि जनता आती है...
डॉ. सुशीला गुप्ता, मानद शोध निदेशक, हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई
हम लोग भ्रष्टाचार की समस्या के प्रति अत्यंत गंभीर हैं। ...हम ही क्यों, देश के सभी ईमानदार, प्रबुद्ध नागरिक इस समस्या के प्रति गंभीर हैं। अन्ना हजारे द्वारा शुरू किया गया अनशन व्यवस्था की सडाँध के बीच हवा के ताजे झोंके की तरह है। सारा देश अब एकजुट है भ्रष्टाचार के कैंसर से निपटने के लिए।

वर्तमान स्थिति यह है कि सारे कुएँ में भाँग पड़ी है। हम्माम में सभी नंगे हैं। ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सरकारी स्तर पर जब कुछ नेता आक्षेप के घेरे में फँसने लगते हैं अथवा मीडिया उनका भंडाफोड़ करने लगती है, तो उनसे त्यागपत्र ले लिया जाता है।

त्यागपत्र कितने लोग देंगे? कितनों को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य किया जा सकेगा? भ्रष्ट आचरण की पोल खुलने पर तथाकथित नेता पत्रकार सम्मेलन बुलाकर बहकी-बहकी भाषा में अपनी सफाई गिनाने से भी बाज नहीं आते। जाँच-समितियों का गठन होता रहता है और भ्रष्टाचार की सुरसा का मुँह फैलता ही जाता है। अब तो न्यायपालिका ने भी हस्ताक्षेप करना शुरू कर दिया है।

आज, पैसा कमाने और बनाने की नीति सर्वोपरि है। गरीबी के वातावरण में पले-बढ़े राजनीतिज्ञ कम ही समय में भारी-भरकम संपत्ति अर्जित कर लेते हैं। उनकी जाँच में कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती, केवल खानापूर्ति भर कर दी जाती है। दीपंकर गुप्ता के शब्दों में 'नेतागण भ्रष्ट लोगों के खिलाफ करवाई करने के इच्छुक ही नहीं हैं। वे सब एक ही सूप उबाल रहे हैं, यद्यपि कुछ लोग उसमें केसर का रंग डाल सकते हैं।'

आज के भ्रष्ट नेता या अधिकारी इतने पहुँचे हुए हैं कि जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है, उसका हश्र यही होता है कि उसका नामोनिशान ही मिटा दिया जाए। ललित मेहता और वी. शचीन्द्रन ने आवाज उठाई तो उनकी हत्या कर दी गई।

अन्ना हजारे ने अब जो आवाज उठाई है, उसे कोई भी सत्ताधारी दबा नहीं सकेगा। हजारे की मर्जी के अनुसार जन लोकपाल विधेयक के लिए संयुक्त समिति का गठन होकर रहेगा। बिल भी पास होगा.... और फिर एक-एक करके समाज/देश के भ्रष्ट नेता गद्दी से ही नहीं उतारे जाएँगे, उन्हें देश के साथ छल करने की सजा भी मिलेगी - सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.....

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* यह अवाम की आवाज है
संजय पटेल, संस्कृतिकर्मी, इंदौर
आलीजा,अब चेतो,अन्ना भाऊ की गाँधीवादी आवाज को मत नकारो। यह अवाम की आवाज है। इसमें सियासी आहट सुनने की कोशिश मत करो। आपके कान कुछ ऐसे हो गए हैं कि अब हर जुम्बिश में साजिश को सुनते हैं। ये मत समझना कि ये सफेद टोपी वाला बूढ़ा कमजोर और अकेला है। ऐसा ही एक अदना इंसान साठ बरस पहले हमारे लिए आजादी की हवा लाया था। जिसने अपने सीने पर गोली खाई लेकिन आम आदमी की आवाज से आवाज मिलाई।

अन्ना भाऊ बिना हथियार है लेकिन उसके जज़्बे में पूरे देश में भभक जाने वाली आग की आँच छुपी हुई है। एक तुम ही हो मनमोहन जिसके नाम के साथ सचाई, ईमानदारी और शुचिता जैसे लफ़्ज़ सुहाते हैं। तो तुम ही उठाओ गाँडीव...और भ्रष्टाचार के दुर्योधनों का संहार करो। ध्यान रखना आंदोलन से नजरें उठाने से आंदोलन का वजन कम नहीं होगा। अन्ना भाऊ की आवाज को पाँचजन्य की घोष जानना...सनद रहे! झूठ के खिलाफ मौन रहने वाला भी अपराधी कहलाता है। हमने तो लिख दी है ये पाती तुम्हारे नाम लेकिन जो हैं बेनाम उनका समर्थन भी है अन्ना भाऊ के साथ।

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*क्रिकेट की दीवानगी अन्ना के लिए क्यों नहीं
ज्योति जैन, लेखिका, इंदौ
जी हाँ, हम अन्ना के साथ हैं। हम भूख हड़ताल नहीं कर सकते लेकिन अपने स्तर पर जिस संगठन से जुड़ें हैं वहाँ पर अपनी एकजुटता दिखाकर अन्ना लिए खड़े हो सकते हैं। अगर संगठन नहीं हो तो आप अपने मोहल्ले या कॉलोनी में एकत्र होकर भ्रष्टाचार की इस मुहिम में प्रतिभागिता दर्ज कर सकते हैं। सवाल यह है कि क्रिकेट के लिए सड़कों पर अपनी दीवानगी दिखाने वाले हम भारतीय अन्ना के लिए इस तरह सड़क पर क्यों नहीं आ सकते? हमें आना होगा, हमें आना ही चाहिए।

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* अन्ना, रोशनी की किरण है
विवेक रंजन श्रीवास्तव, सब इंजीनियर, जबलपुर
जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी पाठशाला हमारे पुलिस थाने व विभिन्न सरकारी कार्यालय हैं। उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार राजधानियों में मंत्रालयों,सचिवालयों, विभाग प्रमुखों जैसे सफेद झक लोगों द्वारा वातानुकूलित कमरों में खादी के पर्दो के भीतर होता है। इस तरह खाकी और खादी की वर्दी वाले भ्रष्टाचार की द्विस्तरीय शालाओ के शिक्षक हैं।

इन दुरूह सामाजिक स्थितियों में जब सबने भ्रष्टाचार के सम्मुख घुटने टेक दिए हैं अन्ना एक रोशनी की किरण हैं। मेरा संपूर्ण समर्थन उनके साथ है। देशहित में हमें यह लड़ाई जीतनी ही होगी।

* नेताओं की रगों में पैसे का नशा दौड़ता है
रेखा भाटिया, लेखिका-अमेरिका
मैं अमेरिका में पिछले कुछ सालों से अपने परिवार के साथ रहती हूँ। किस्मत ले आई विदेश पर देश तो आखिर देश ही होता है और उस मिट्टी की खुशबू जिसके हम बने हैं उसे हमसे कैसे अलग किया जा सकता है। यहाँ हिंदी चैनल्स पर सुबह-शाम बस यही सुनने को मिलता है,भ्रष्टाचार और घोटालों से भरी खबरें, जिन्हें सुन कर मन को ठेस लगती है।

यहाँ पर 'भारत माता की जय' का हमारा अभियान जोर-शोर से चालू है, भारत माता का क्या कोई सच्चा सपूत बचा है। जिसकी हम जय कर सकें। अपने बच्चों को गाँधीजी और मदर टेरेसा के बाद शायद ही किसी भारतीय का उदाहरण हम दे पाए हैं।

भारत कभी गरीब देश नहीं था, इतिहास भी यही कहता है भारत की अमीरी की वजह से भारत गुलाम बना। क्योंकि भारत की अमीरी चंद राजाओं की दासी थी आज फर्क सिर्फ इतना है की भारत की अमीरी चंद नेताओं की दासी है।

आज सौ गाँधी भी जन्म ले लें तब भी देश में भ्रष्टाचार और घोटालों की आँधी को रोक नहीं पाएगें क्योंकि नेताओं की रगों में खून की जगह घोटालों से जमा किया गया पैसे का नशा दौड़ता है। हमसे कहा जाता है देश के बाहर रह कर देश के मामले में अपनी टाँग मत अडाओ पर जब हम जैसे लोग 12 से 18 घंटे जी-तोड़ मेहनत करते हैं उससे भारत को कितनी विदेशी पूँजी का लाभ होता है यह तो सर्वविदित है।

फिर भारत में रह रहे अपने परिवारों की तकलीफों को महसूस करने का हक हमें भी जरुर है। अगकुनहीसकतभारत में बसी आम भारतीय जनता क्यों इतनी असंतुष्ट है? उनका स्वर नेताओं का नाम लेते ही क्यों भड़क उठता है? जी हाँ, हम अन्ना के साथ हैं।

*देर से ही सही पर परिवर्तन आए
आर.संत सुंदरी, अनुवादक, हैदराबाद
जी हाँ मैं दो दिन से इसी के बारे में पढ़ और देख रही हूँ। मैं चाहती हूँ कि देर से ही सही इस देश में ...देश की सत्ता के चलन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। मैं पूरी तरह से इस आंदोलन के साथ हूँ। 100 प्रतिशत समर्थन अन्ना जी के साथ है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस महान लड़ाई में मुझे जोड़ने का शुक्रिया।

*मृदुला गर्ग, वरिष्ठ साहित्यकार
मैं पूर्णत: अन्ना हजारे के साथ हूँ, सबको होना चाहिए।

जी चाहता है, इंडिया आकर समर्थन करूँ
* मालती देसाई, लेखिका, अमेरिका
सबसे पहले तो मैं धन्यवाद देती हूँ, अभिव्यक्ति का इतना प्रभावी मंच उपलब्ध कराने के लिए। मुझे इस दिव्य निष्काम यज्ञ में समिधा अर्पित करने का अवसर मिल रहा है। कल रात जब मैं भारतीय समाचार चैनल देख रही थी तब अन्ना जी और उनके सहयोगियों को देखकर मुझे रोना आ गया।

यह विरोध नहीं अधिकार का विषय है। यह भ्रष्टाचारी सरकार और नेता, प्राचीन दानवों शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड और महिषासुर से अधिक घातक हैं। अब समय आ गया है कि इन्हें जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाए।

विश्वकप जीतने के लिए देश-विदेश में भारतीयों ने जी-जान से जो धुन जगाई है उसे बरकरार रखना होगा। मन करता है कि उधर अन्ना जी के अनशन में आकर बैठूँ। इंडिया आकर समर्थन करूँ। मातारानी के दिनों में अन्ना जी की निस्वार्थ समाज सेवा और ईमानदारी का जादू अवश्य चलेगा।

अन्ना अदभुत हैं
* अनिल देसाई, सेक्रेटरी, सीएमडी,गुजरा
5 अप्रैल, 2011 से हजारे जिस अनशन पर बैठें हैं वह देश को हिला देने वाला है। सरकार पर इस अनशन का व्यापक दबाव बना है। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के लिए एक मजबूत भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की सख्त जरूरत है। 'लोकपाल' भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक ताकत के रूप में स्थापित होगा। हाँ, मैं वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की भूख हड़ताल और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को समर्थन देता हूँ। अन्ना अदभुत हैं।

यह सच्चा जन-आंदोलन ह
रवीन्द्र कात्यायन, अध्यापक
अन्ना ने साठ साल से चलते आ रहे भ्रष्टाचार को चुनौती दी है वो भी आम आदमी के लिए। अन्ना हजारे अगर कोई नेता होते या नौकरशाह, या व्यापारी या धनवान तो इस तरह की मुहिम न चलाते।

जनता के प्रतिनिधियों ने जनता का विश्वास इस तरह खो दिया है कि अब आम जनता से ही उम्मीद बची है। सिविल सोसायटी के सदस्यों में कम से कम आम जनता शामिल तो होगी। जनता संविधान नहीं बना सकती पर इसी संविधान की आड़ में जनता के प्रतिनिधि जनता से धोखा करते रहे हैं। जन-लोकपाल बिल बनने से कम से कम दोषियों को सजा दिलाने का काम तेजी से हो सकेगा और भ्रष्ट आचरण करने वालों के मन में डर बैठेगा।

संविधान में तो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ कानून पहले से ही मौजूद हैं तो क्या वो कानून जनता के प्रतिनिधियों का कुछ बिगाड सके? अगर नहीं तो इसका अर्थ है कि कानून से काम नहीं चलने वाला। भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए संविधान से आगे बढ़कर कुछ करना होगा। जन-लोकपाल बिल अगर इस जरूरत को पूरा करता है तो इसका स्वागत करना ही चाहिए। और यह जनता की पहल है, जनता का आक्रोश है। सच्चा जन-आंदोलन है। अन्ना हजारे आज जननायक बन गए हैं। देश में ऐसे कुछ आंदोलन हो जाएँ तो सचमुच भारत महाशक्ति बन जाए। अन्ना हजारे को हमारा शत-शत नमन।

निष्कलंक व्यक्तित्व का चमत्कार
शैली खड़कोतकर, जनसंचार व्याख्याता, भोपाल
अन्ना, आपको शत-शत नमन! इसलिए नहीं कि आप अनशन पर हैं बल्कि इसलिए कि आपकी एक साहसी पहल ने सुप्त जनआक्रोश को आंदोलन में बदल दिया। आपके सदसंकल्प की शक्ति ने उन्हें बता दिया कि संवेदनशील भारतीय मन क्रिकेट की जीत पर उत्तेजित हो सकता है तो सामाजिक सरोकारों पर उद्वेलित भी हो सकता है।

आपके पावन यज्ञ में यथोचित आहुति अर्पित करने के लिए कितने ही जन-मन आतुर दिख रहे हैं। यह आपकी दृढ़ता और निष्कलंक व्यक्तित्व का चमत्कार है कि भ्रष्ट नेतृत्व से संतप्त त्रस्त लोगों ने अभियान को विप्लव का रूप दे दिया। 121 करोड़ भारतीयों में 121 अन्ना भी अपने विचारों और कर्मों की शुद्धता के साथ खड़ें हो जाएँ तो शायद भारत की धरती और आकाश कुछ निर्मल हो सकें।

(वेबदुनिया डेस्क)