शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By ND

'खून, आँसू, मेहनत- हमारी तकदीर में यही'

''खून, आँसू, मेहनत- हमारी तकदीर में यही'' -
सन्‌ 1942 में हजारीबाग जेल से निकल भागने के बाद जयप्रकाश ने महीनों भूमिगत रहकर अगस्त क्रांति का संचालन किया था। भूमिगत रहते हुए उन्होंने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जूझने वाले भारत के विद्यार्थियों के नाम एक पत्र लिखकर प्रकाशित किया था, जो बड़ा कारगर सिद्ध हुआ था।

उस पत्र के संपादित अंश-प्यारे दोस्तों, मैं बयान नहीं कर सकता कि आजादी की इस आखिरी लड़ाई में फिर से आपकी बगल में आ खड़े होने में मैं कितनी खुशी महसूस कर रहा हूँ।

सबसे पहले मैं अपनी श्रद्धांजलि उन नौजवान देशभक्तों की स्मृति में पेश करना चाहता हूँ, जिनकी असीम वीरता और अनुपम शहादत ने हमारी राष्ट्रीय क्रांति के जीवंत इतिहास में सुनहरे पृष्ठ जोड़े हैं।

उनका उदाहरण हमारे लिए एक अमर प्रेरणा बना रहेगा और उनके लिए एक फटकार, जो विचलित हो रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। उसके बाद आपने महान स्वाधीनता युद्ध में जो शानदार हिस्सा लिया है, उसके लिए मैं अपना हार्दिक अभिनंदन आपके प्रति प्रेषित कर रहा हूँ। मैं शर्म से यह स्वीकार करता हूँ कि मैंने कल्पना नहीं की थी कि देश का विद्यार्थी-समूह इतना कर गुजरेगा।

1921 में जो परंपरा विद्यार्थियों ने बनाई, वह ऊपर हो चुकी है, यह कल्पना भी अविश्वसनीय जँचती थी, किंतु मेरा कुछ ऐसा ही विश्वास हो चला था इसलिए जब आप बहादुराना कार्रवाइयों से इतिहास की रचना कर रहे थे, मैं जेल की ठंडी दीवारों के अंदर बड़े हर्ष और गर्व से दिन-ब-दिन की घटनाओं का अनुगमन कर रहा था।

आपने इस खुली बगावत में जैसा हिस्सा लिया और जैसी कुर्बानियाँ कीं, उनके सामने 1921 की घटनाएँ फीकी-फीकी जँचती हैं। किंतु दोस्तो, यह समय अपनी पतवार संभालकर विश्राम करने या अपने कारनामों पर गौर करने का नहीं है, आज की समस्या यह नहीं है कि हमने कितना कर लिया, बल्कि देखना यह है कि हम अभी क्या कर रहे हैं और आगे क्या करने जा रहे हैं। इन्हीं प्रश्नों पर आपके सामने मुझे कुछ निवेदन करना है।

कुछ हफ्ते हुए, कॉलेज खुल गए हैं और आप अब अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुए दिखाई पड़ते हैं। यदि मैं कहूँ कि यह समय पढ़ने या परीक्षा देने का नहीं, तो आप समझेंगे कि मैं चर्वित-चर्वण कर रहा हूँ, किंतु क्या रूस या चीन, ऑक्सफोर्ड या हावर्ड विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी ऐसी सलाहों पर इसी तरह सोचेंगे?

आपके अभिभावकों या आपके विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं दीक्षांत भाषणकर्ताओं के लिए यह कहना साधारण बात है कि विद्यार्थियों का प्रमुख कार्य अध्ययन करना और उपाधि लेना है और उसके बाद ही उन्हें अधिक योग्य होकर राजनीति में प्रवेश करना है, जिसमें वे देश की अच्छी तरह सेवा कर सकें।

लेकिन, मैं कहता हूँ, इस तरह का सोचना या सलाह देना सड़े दिमाग की निशानी है। साधारण समय में विद्यार्थियों के लिए एक ही धर्म है कि वे पढ़ें और अपने व्यक्तित्व का विकास करें जिससे वे योग्य नागरिक बन सकें और अपनी सर्वोत्तम योग्यता से देश की सेवा कर सकें।
किंतु राष्ट्रों की जिंदगी में ऐसे समय भी आते हैं, जब व्यक्ति के विकास को इसलिए रोक देना पड़ता है कि सारा राष्ट्र जीवित रह सके और विकसित हो सके।

जब समाज की उन्नाति की बेदी पर व्यक्ति का निर्भय और निष्ठुर बलिदान कर देना होता है, सोचिए तो कि रूस और चीन के विद्यार्थी इस समय अपने विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने में लगे हुए हैं या अपने देश के अस्तित्व और कीर्ति की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी हँसते-हँसते चढ़ा रहे हैं।

सोचिए तो कि उन देशों में क्या शिक्षकों और अभिभावकों को इस तरह की बातें कहने की हिम्मत भी हो सकती है और क्या उनकी ऐसी बातें बर्दाश्त भी की जा सकती हैं? क्या कैंब्रिज या कोलंबिया के विद्यार्थियों को युद्ध क्षेत्र में जाने से इसलिए रोका जा सकता है कि उन्हें पहले उपाधि प्राप्त कर लेनी चाहिए?

नहीं दोस्तो, नहीं। ऐसे वक्त आते हैं, जब व्यक्ति को जान देकर अपने देश को जीवित रखना और अपनी सभ्यता को विकसित करना पड़ता है। आज का वक्त ऐसा ही है। हमें भी आज अपनी जान देकर, तकलीफें सहकर, अपने को मिटाकर अपने देश को आजाद करना है, अपनी सभ्यता को फलने-फूलने का मौका देना है। इसलिए आप देशद्रोहियों और कायरों की बातों में न आएँ।

तब आप करें क्या? : अपने क्रांतिकारी करतबों से आपने स्कूलों और कॉलेजों को बंद होने को लाचार कर दिया। ये खुल रहे हैं यही आपकी हार है, हमारी हार है, हम सबकी हार है। आप क्यों लौट रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आपने आजादी की वर्तमान लड़ाई का स्वरूप समझने में गलती की, ऐसा मैं किस तरह कहूँ?

हमारी यह आखिरी लड़ाई सिर्फ प्रदर्शन या क्षणिक जोश की चीज नहीं। यह काफी गंभीर और भयावनी चीज ठहरी और विजय छोड़कर दूसरा इसका अंत नहीं। इस बारे में आप भ्रम में नहीं रहें। कह नहीं सकता, आपका दिमाग किस तरह काम करता है, किंतु यदि मैं आपकी जगह पर होता, तो अगस्त की घटनाओं के बाद स्कूल या कॉलेज में जाने का सपना कभी नहीं देख सकता था।

इंकलाब जिन्दाबाद! हिन्दुस्तान के कोने से (जयप्रकाश नारायण) (नईदुनिया)