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Written By WD

दूध मांसाहारी या शाकाहारी, जानिए

Milk | दूध मांसाहारी या शाकाहारी, जानिए
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दूध का किसी धर्म-विशेष से कोई संबध नहीं। इसराइल से लेकर भारत के असम तक गाय, बकरी, भैंस और गडरिया का दूध पीने का प्रचलन रहा है। प्राचीनकाल में दूध अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए एक प्रमुख आधार हुआ करता था। इसीलिए बकरी, गाय और अन्य दूधारू जानवरों के मांस को खाने की इजाजत नहीं थी और आज भी नहीं है।

एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि दूध न सिर्फ पोषक तत्वों से भरपूर रहता है बल्कि इससे ब्रेन पॉवर पर सकारात्मक असर पड़ता है और मानसिक क्षमता तेज होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ मायने के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो वयस्क अधिक दूध पीते हैं उनकी स्मरण शक्ति उन लोगों की तुलना में काफी बेहतर होती है, जो कम दूध पीते हैं। दूध का अधिक सेवन करने वाले लोग उन लोगों की तुलना में 5 गुना अधिक सक्रिय और स्मरण शक्ति के लिहाज से बेहतर होते हैं, जो कम दूध पीते हैं।

'इंटरनेशनल डेयरी जर्नल' की रिपोर्ट के मुताबिक यूनिवर्सिटी ऑफ मायने में किए गए एक शोध से यह बात साबित हो चुकी है कि जो लोग रोजाना कम से कम 1 गिलास दूध पीते हैं, वे उन लोगों की तुलना में हमेशा मानसिक और बौद्धिक तौर पर बेहतर स्थिति में होते हैं, जो दूध का सेवन नहीं करते।

प्राचीनकाल से ही मनुष्यों के पूर्वज दूध के गुणों को जानते थे इसीलिए दूध को पीने के प्रचलन में लाया गया। गाय का दूध कई प्रकार के रोगों में लाभदायक सिद्ध हुआ है, तो बकरी का दूध औषधीय गुणों के कारण विशेष गंध वाला होता है और इसमें भी खांसी, रक्त-पित्त, अतिसार, तेज बुखार दूर करने की क्षमता होती है। यदि तेज बुखार है तो बकरी के दूध की खीर बनाकर खाएंगे तो बुखार दूर हो जाएगा।

इसी तरह जब प्राचीनकाल में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं नहीं होती थीं तो दूध जैसे पेय पदार्थ ही जीवन की रक्षा करते थे। दूध पीते रहने से कभी हड्डियां कमजोर नहीं होतीं। जिन्होंने बचपन में बहुत दूध ‍पिया है बुढापे में उनकी हड्डियां मजबूत रहती हैं। आयुर्वेद के अनुसार गाय के ताजा दूध को ही उत्तम माना जाता है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या मां का दूध पीने के बाद और दूध पीने की आवश्यकता है? दूसरा सवाल यह कि क्या दूध मांसाहारी होता है या शाकाहारी? जवाब अगले पन्ने पर...

प्राचीनकाल में जब चिकित्सा सुविधाएं नहीं थीं, तब दूध जैसे पेय पदार्थ ही बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों को शक्ति प्रदान करते थे। दूध में खनिज, वसा, कैल्शियम, राइबोक्लेविन, विटामिन और प्रोटीन होता है, जो हमारे श‍रीर को शक्ति प्रदान करने के लिए जरूरी है। इसके अलावा इसमें फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन भी होता है। तो यह कहना कि मां के दूध के बाद दूध पीने की आवश्यकता नहीं है, गलत होगा। ऐसे दौर में जबकि कोई आकस्मिक चिकित्सा उपलब्ध नहीं थी, तो व्यक्ति को अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर ही रहना होता था। आज जब सभी तरह की आकस्मिक चिकित्सा उपलब्ध है, तो वायु प्रदूषण और खराब भोजन के चलते व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो रही है। ऐसे में शुद्ध दूध की उपयोगिता और बढ़ जाती है।

दूसरा सवाल यह कि क्या दूध शाकाहार है या मांसाहार? दुनिया में ऐसा कोई भी भोजन नहीं है जिसे शाकाहारी भोजन के अंतर्गत रखा जा सकता हो। ऐसे में दूध को सफेद रक्त की श्रेणी में रखने वाले लोग भी मिल ही जाएंगे। धर्म की बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो सब्जी, भाजी, गेहूं आदि सभी शाकाहारी भोज्य पदार्थ भी जीव ही हैं। सभी में जीवन है। जो भी सांस ले रहा है वहां जीवन है।

वेदों के अनुसार जल भी एक आत्मा है। अग्नि भी। संपूर्ण जगत श्‍वास ले रहा है। जैन धर्म में कहा गया है कि पत्थर में भी जीवन है। यह अलग बात है कि हमारी स्थूल आंखें उसे देख नहीं पातीं। वैज्ञानिकों ने पेड़ और पौधों पर कई शोध किए हैं और उनका निष्कर्ष यह निकला है कि पौधे भी सोचते हैं। वे भी भावुक और क्रोधित होते हैं। ऐसे में सब्जी खाने वाले लोग खुद को शाकाहारी कैसे मान सकते हैं?

यदि इस तरह सोचेंगे तो शाकाहारी लोग कुछ भी नहीं खा पाएंगे और भूखे ही मर जाएंगे। इसलिए यह कहना कि दूध मांसाहार है, गलत होगा। दूध कुछ भी हो लेकिन वह सीधे-सीधे मांसाहार नहीं है। शाकाहारी दर्शन कहता है कि जितना हो सके, मांसाहार से बचना चाहिए। प्रत्यक्ष रूप से किसी जीव की हत्या करके उसे खाना अपराध है, लेकिन दूध पीने में किसी की हत्या नहीं की जा रही है तो फिर दूध कैसे मांसाहार हुआ?

प्राचीनकाल से लेकर आज तक दूध के शाकाहारी अथवा मांसाहारी होने को लेकर बहस चलती रही है। इस विषय पर कई शोध होने के बावजूद अब तक यह साबित नहीं हो पाया है कि दूध को किस श्रेणी में रखा जाए। हालांकि प्रोटेस्टेंट ईसाइयों ने तो 17वीं शताब्दी से ही दूध और इससे बनने वाले अन्य पदार्थों का निषेध शुरू कर दिया था। इस शाखा का मानना था कि दूध मांसाहारी भोजन है।

कुछ अन्य संप्रदायों का मानना था कि जन्म लेने के बाद बच्चा अपनी मां का दूध पीता है और 2-3 साल का होने के बाद मां उसे स्तनपान नहीं करा पाती। बस, तभी समझ लेना चाहिए कि बच्चे के शरीर में दूध की जरूरत पूरी हो चुकी है। अब बच्चा अन्य आहार का सेवन कर सकता है और स्वस्थ रह सकता है। अब उसे दूध की जरूरत नहीं।

लेकिन ओशो कहते हैं कि दूध मांसाहार औ कामोत्तेजक आहार है, अगले पन्ने पर...


दूध असल में अत्‍यधिक कामोत्तेजक आहार है और मनुष्‍य को छोड़कर पृथ्‍वी पर कोई पशु इतना काम-वासना से भरा हुआ नहीं है और उसका एक कारण दूध है, क्‍योंकि कोई भी पशु बचपन के कुछ समय के बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ आदमी को छोड़कर। पशु को जरूरत भी नहीं है। शरीर का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु दूध पीते हैं अपनी मां का, लेकिन दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं, जानवरों की माताओं का भी पीता है।

दूध बड़ी अद्भुत बात है और आदमी की संस्‍कृति में दूध ने न मालूम क्‍या-क्‍या किया है, इसका हिसाब लगाना कठिन है। बच्‍चा एक उम्र तक दूध पिए, ये नैसर्गिक है। इसके बाद दूध समाप्‍त हो जाना चाहिए। सच तो यह है, जब तक मां का स्‍तन से बच्‍चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है, उसके बाद दूध की आवश्‍यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्‍चे का शरीर बन गया। निर्माण हो गया- दूध की जरूरत थी, हड्डी थी, खून था, मांस बनाने के लिए- स्‍ट्रक्‍चर पूरा हो गया, ढांचा तैयार हो गया। अब सामान्‍य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह सार दूध काम-वासना का निर्माण करता है। अतिरिक्‍त है इसलिए वात्‍सायन ने 'कामसूत्र' में कहा है कि हर संभोग के बाद पत्‍नी को अपने पति को दूध पिलाना चाहिए, ठीक कहा है।

दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती, क्‍योंकि दूध जिस बड़ी मात्रा में खून बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती। खून बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है। तो दूध से निर्मित जो भी है, वह कामोत्तेजक है। इसलिए महावीर ने कहा है, वह उपयोगी नहीं है। खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक के लिए खतरनाक है। ठीक से, 'कामसूत्र' में और महावीर की बात में कोई विरोध नहीं है। भोग के साधक के लिए सहयोगी है, तो योग के साधक के लिए अवरोध है। फिर पशुओं का दूध है वह, निश्‍चित ही पशुओं के लिए, उनके शरीर के लिए, उनकी वीर्य ऊर्जा के लिए जितना शक्‍तिशाली दूध चाहिए उतना पशु मादाएं पैदा करती हैं।

जब गायें दूध पैदा करती हैं तो आदमी के बच्‍चे के लिए पैदा नहीं करतीं, सांड के लिए पैदा करती हैं। और जब आदमी का बच्‍चा पिये उस दूध को और उसके भीतर सांड जैसी काम-वासना पैदा हो जाए, तो इसमें कुछ आश्‍चर्य नहीं है। वह आदमी का आहार नहीं है। इस पर अब वैज्ञानिक भी काम करते हैं। और आज नहीं कल, हमें समझना पड़ेगा कि अगर आदमी में बहुत-सी पशु प्रवृत्तियां हैं तो कहीं उनका कारण पशुओं का दूध तो नहीं है। अगर उसकी पशु प्रवृत्तियों को बहुत बल मिलता है तो उसका करण पशुओं का आहार तो नहीं है।

आदमी का क्‍या आहार है, यह अभी तक ठीक से तय नहीं हो पाया है। लेकिन वैज्ञानिक हिसाब से अगर आदमी के पेट की हम जांच करें, जैसा कि वैज्ञानिक करते हैं तो वे कहते हैं, आदमी का आहार शाकाहारी ही हो सकता है, क्‍योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में जितने बड़े इंटेस्‍टाइन की जरूरत होती है, उतना बड़ा इंटेस्टाइन आदमी के भीतर है। मांसाहारी जानवरों की इंटेस्‍टाइन छोटी और मोटी होती है, जैसे शेर की बहुत छोटी होती है, क्‍योंकि मांस पचा हुआ आहार है, अब बड़ी इंटेस्‍टाइन की जरूरत नहीं है। पचा-पचाया है, तैयार है भोजन। उसने ले लिया, वह सीधा का सीधा शरीर में लीन हो जाएगा। बहुत छोटे पाचन यंत्र की जरूरत है।

इसलिए बड़े मजे की बात है कि शेर 24 घंटे में एक बार भोजन करता है। काफी है। बंदर शाकाहारी है, देखा आपने उसको। दिनभर चबाता रहता है। उसकी इंटेस्‍टाइन बहुत लंबी है और उसको दिनभर भोजन चाहिए इसलिए वह दिनभर चबाता रहता है।

आदमी के लिए भी बहुत मात्रा में एक बार खाने की बजाए छोटी-छोटी मात्रा में बहुत बार खाना उचित है। वह बंदर का वंशज है और जितना शाकाहारी हो भोजन, उतना कम कामोत्तेजक हैं। जितना मांसाहारी हो उतना कामोत्तेजक होता जाएगा।

दूध मांसाहार का हिस्‍सा है। दूध मांसाहारी है, क्‍योंकि मां के खून और मांस से निर्मित होता है। शुद्धतम मांसाहार है इसलिए जैनी, जो अपने को कहते हैं हम गैर-मांसाहारी हैं, कहना नहीं चाहिए, जब तक वे दूध न छोड़ दें।

केव्‍कर ज्‍यादा शुद्ध शाकाहारी है, क्‍योंकि वे दूध नहीं लेते। वे कहते हैं, दूध एनिमल फूड है। वह नहीं लिया जा सकता लेकिन दूध तो हमारे लिए पवित्रतम है, पूर्ण आहार है। सब उससे मिल जाता है, लेकिन बच्‍चे के लिए, और वह भी उसकी अपनी मां का। दूसरे की मां का दूध खतरनाक है। और बाद की उम्र में तो फिर दूध-मलाई और घी और ये सब और उपद्रव हैं। दूध से निकले हुए। मतलब दूध को हम और भी कठिन करते चले जाते है, जब मलाई बना लेते हैं, फिर मक्खन बना लेते हैं, फिर घी बना लेते हैं। तो घी शुद्धतम काम-वासना हो जाती है। और यह सब अप्राकृतिक है और इनको आदमी लिए चला जाता है। निश्‍चित ही, उसका आहार फिर उसके आचरण को प्रभावित करता है।

तो महावीर ने कहा है, सम्‍यक आहार, शाकाहारी, बहुत पौष्‍टिक नहीं केवल उतना जितना शरीर को चलाता है। ये सम्‍यक रूप से सहयोगी है उस साधक के लिए, जो अपनी तरफ आना शुरू हुआ।

शक्‍ति की जरूरत है, दूसरे की तरफ जाने के लिए शांति की जरूरत है, स्‍वयं की तरफ आने के लिए। अब्रह्मचारी, कामुक शक्‍ति के उपाय खोजेगा। कैसे शक्‍ति बढ़ जाए। शक्‍तिवर्द्धक दवाइयां लेता रहेगा। कैसे शक्‍ति बढ़ जाए। ब्रह्मचारी का साधक कैसे शक्‍ति शांत बन जाए, इसकी चेष्‍टा करता रहेगा। जब शक्‍ति शांत बनती है तो भीतर बहती है। और जब शांति भी शक्‍ति बन जाती है तो बाहर बहनी शुरू हो जाती है।

-ओशो (महावीर-वाणी, भाग-1 प्रवचन- बाईसवां) से साभार
प्रस्तुति : शताय