कामयाबी की बुलंदी पर पहुँचे नायर
श्रीहरिकोटा। सफलता से बढ़कर कुछ भी नहीं। यह कहावत खासतौर पर जी. माधवन नायर पर सटीक बैठती है, जिन्होंने 10 जुलाई 2006 को जीएसएलवी एफ-02 के अपने मिशन में असफल होने के बाद एक बड़ी सफलता हासिल की।चंद्रयान प्रथम के सफल प्रक्षेपण के साथ ही वर्ष 2003 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रमुख बनने के बाद नायर ने श्रीहरिकोटा रेंज से नौवें सफल प्रक्षेपण का स्वाद चखा।नायर की कामयाबी की फेहरिस्त में एक और अध्याय उस वक्त जुड़ गया जब भारत ने जीएसएलवी एफ-01 की पहली ऑपरेशनल उड़ान का सफल प्रक्षेपण किया। इस यान के जरिए एजुसेट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर भारत ने दुनिया के अंतरिक्ष जगत में अपनी क्षमता को साबित कर अपने को समृद्ध देशों के समूह में शामिल कर लिया।पाँच मई 2005 को कार्टोसेट प्रथम और हैमसेट उपग्रहों को लेकर पीएसएलवी सी-6 की सफल अंतरिक्ष की यात्रा से इसरो के अपने 'ड्रीम प्रोजेक्ट' चंद्रयान के लिए पीएसएलवी का इस्तेमाल करने की योजना को काफी बल मिला।रॉकेट प्रणाली के क्षेत्र में अग्रणी तकनीशियन की भूमिका निभाने वाले नायर ने तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक रहते हुए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए कई चरणों वाले उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया।वीएसएससी के प्रमुख के तौर पर नायर ने रिमोट सेंसिंग और संचार के लिए अंतरिक्षयान के लिए उपग्रह प्रक्षेपण यान के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्यों का नेतृत्व किया। केरल विश्वविद्यालय ने इंजीनियरिंग में स्नातक नायर ने मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) में प्रशिक्षण हासिल किया और वर्ष 1967 में थुम्बा रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन में नौकरी शुरू की।तब से लेकर इसरो प्रमुख बनने के सफर में उन्होनें कामयाबी के कई झंडे गाडे़ जिसमें सबसे अहम पहले भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन एसएलवी-3 के लिए उनका योगदान है। चंद्रमा पर भारत के पहले मानवरहित मिशन का सफल प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए दोहरी खुशी लेकर आया क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की मशहूर शख्सियत का नाम भी इस मिशन से जुड़ा था।इससे पहले कई सफल प्रक्षेपणों से जुडे़ नायर को वर्ष 1998 में प्रतिष्ठित पद्मभूषण से अलंकृत किया गया था। उन्होनें इसरो प्रमुख का कार्यभार संभालने के बाद पहले सफल प्रक्षेपण से ही अपनी कामयाबी की पटकथा लिखी।डॉ. के कस्तुरीरंगन से इसरो का कार्यभार ग्रहण करने के बाद नायर को पहली सफलता उस वक्त मिली जब रिसोर्ससेट प्रथम को पीएसएलवी-सी-5 के जरिए 17 अक्टूबर 2003 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।करीब एक दशक तक इसरो का कार्यभार संभालने वाले डॉ. कस्तूरीरंगन के कुशल नेतृत्व में पीएसएलवी और जीएसएलवी के निर्माण के साथ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने नई बुलंदियों को छुआ।डॉ. कस्तूरीरंगन के नक्शेकदम पर चलते हुए नायर पीएसएलवी सी-5 के जरिए 1360 किग्रा वजन के रिसोर्ससेट प्रथम उपग्रह को 817 किमी की ध्रुवीय कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कराने में कामयाब रहे। (वार्ता)