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Written By ND

वॉटर साइंस में करियर

वॉटर साइंस में करियर -
- जयंतीलाल भंडारी

ND
वॉटर साइंस जल की भूमि, तल और भूमिगत क्रियाओं से संबंधित विज्ञान है। इसमें चट्टानों और खनिजों के साथ पानी की भौतिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं के साथ-साथ अन्य क्रियाएं भी शामिल होती हैं। जल विज्ञान से जुड़ा व्यक्ति जल विज्ञानी कहलाता है जो पृथ्वी या पर्यावरण विज्ञान, भौतिक भूगोल या सिविल और पर्यावरणीय इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में कार्यरत होता है।

जल विज्ञान के क्षेत्र में हाइड्रोमिटिरोलॉजी, भूतल जल विज्ञान, हाइड्रोजियोलॉजी, ड्रेनेज बेसिन मैनेजमेंट और जल गुणवत्ता से संबंधित विषय आते हैं, जहाँ पानी की केंद्रीय भूमिका रहती है। जल विज्ञान अनुसंधान बहुत उपयोगी है क्योंकि इससे हमें विश्व को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है, जहाँ हम रहते हैं और साथ ही पर्यावरणीय इंजीनियरिंग, नीति तथा नियोजन की भी पूरी जानकारी उपलब्ध होती है। वॉटर साइंस की प्रमुख शाखाएँ इस प्रकार हैं-

कैमिकल वाटर साइंस : पानी के रासायनिक गुणों का अध्ययन इसके तहत किया जाता है।

पारिस्थितिकी जल विज्ञान : जीवित वस्तुओं और जल वैज्ञानिक चक्र के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन इसके तहत किया जाता है।

हाइड्रो इन्फॉरमैटिक्स : इसके तहत जल विज्ञान और जल संसाधन अनुप्रयोगों में सूचना प्रौद्योगिकी के अनुकूलन का अध्ययन करते हैं। हाइड्रो मिटियोरोलॉजी- भूमि और जल तथा निचले वातावरण के बीच पानी और ऊर्जा के स्थानांतरण का अध्ययन किया जाता है।

भूजल विज्ञान : इसके तहत पृथ्वी के तल के निकट संचालित होने वाली जल विज्ञान प्रक्रियाओं का अध्ययन। भारत में सीधे तौर पर जल विज्ञान का कोई प्रथम डिग्री पाठयक्रम नहीं है लेकिन जल विज्ञान के संबंध में सिविल इंजीनियरी, भूगोल, पर्यावरणीय विज्ञान तथा पर्यावरणीय प्रबंधन के कार्यक्रम के एक भाग के तौर पर वाटर साइंस का अध्ययन कराया जाता है।

यह भूविज्ञान, मृदा विज्ञान और पारिस्थितिकी डिग्रियों से भी जुड़ा विषय क्षेत्र है। एक जल वैज्ञानिक बनने के लिए जल विज्ञान से संबंधित विषय में बैचलर डिग्री होनी चाहिए तथा मास्टर डिग्री को और अधिक वरीयता दी जाती है। वाटर साइंस में बैचलर डिग्री करने हेतु 11वीं कक्षा गणित विषय के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक है। एक जल वैज्ञानिक की गतिविधियों में मुख्यतः शामिल हैं-

हाइड्रोमीट्रिक और जल गुणवत्ता मापन : इसके तहत नदियों, झीलों और भूजल स्तरों, नदियों के प्रवाह, वर्षा और जलवायु परिवर्तनों को दर्ज करने वाले निगरानी नेटवर्कों का रखरखाव, पानी के नमूने लेना तथा उनका रासायनिक विश्लेषण करना, नदियों तथा झीलों की स्थितियों की निगरानी के लिए जीव विज्ञानियों और पारिस्थितिकीविदों के साथ काम करना शामिल है।