बॉलीवुड में इन दिनों हर हीरो एक्शन फिल्म करना चाहता है। शायद उन्हें लगता है कि इससे उनकी ‘मर्दाना’ इमेज बनेगी। एक्शन करने की बात तो सोच ली जाती है, लेकिन इसके लिए सही कहानी का चुनाव नहीं किया जाता है।
बॉलीवुड में यूं भी मौलिक लेखन करने वालों का अभाव है, इसलिए निगाह दक्षिण भारतीय सिनेमा की ओर जाती है। वर्ष 2010 में रिलीज हिट मलयालम फिल्म ‘पोकिरी राजा’ का हिंदी रिमेक ‘बॉस’ नाम से बनाया गया है।
‘बॉस’ नुमा हिंदी फिल्में अस्सी और नब्बे के दशक में खूब बना करती थी, जिसमें कुछ लोग भ्रष्ट होते थे और उनके साथ हीरो माराकूटी के बहाने ढूंढा करता था। ‘बॉस’ में भी सब कुछ वही है जो हजारों बार दोहराया जा चुका है। एक भी सीन या किरदार ऐसा नहीं है जिसे देख कुछ नयापन लगे।
ये बॉस बड़ा अनोखा है। संगीत बजता है तो वह मूड में आता है और बदमाशों की पिटाई करता है। कुछ चीयरलीडर्सनुमा लड़कियां उस समय डांस करती रहती हैं जब वह फाइट करता है। वैसे बॉस का असली नाम सूर्या है। वह बॉस क्यों बनता है, इसके लिए अच्छे-खासे फुटेज खर्च किए गए हैं जो बोरियत से भरे हैं।
बचपन से ही सूर्या अपने पिता के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता है और जो उसके पिता को गाली देता है उसकी वह खूब पिटाई करता है। परेशान होकर पिता उसे घर से निकाल देते हैं। बिग बॉस (डैनी) उसे बॉस बनाकर गलत धंधों में लगा देते हैं।
बॉस का एक छोटा भाई शिवा भी है, जो एक वर्दी वाले गुंडे आयुष्मान (रॉनित रॉय) की बहन से इश्क लड़ाता है। शिवा को आयुष्मान प्रताड़ित करता है। हारकर आदर्शवादी पिता अपने बिगड़ैल बेटे बॉस की शरण लेता है। अब फिल्म बॉस बनाम आयुष्मान हो जाती है।
फिल्म का निर्देशन किया है एंथनी डिसूजा ने, जिन्होंने ‘ब्लू’ नामक हादसा अक्षय कुमार को लेकर ही रचा था। एंथनी पर अक्षय को बेहद विश्वास है। उनके मुताबिक एंथनी जैसा तकनीशियन बॉलीवुड में दूसरा नहीं है, लेकिन एक कुशल तकनीशियन अच्छा निर्देशक हो ये जरूरी नहीं है।
इस बार एंथनी ने ज्यादा ऊंचे सपने नहीं देखते हुए सिंगल स्क्रीन के दर्शकों की पसंद के अनुरूप सिनेमा रचा है और ‘पोकिरी राजा’ जैसी फिल्म सामने हो तो उसके जैसी दूसरी फिल्म बनाना कोई बड़ी बात नहीं है।
एंथनी ने लॉजिक वगैरस जैसी चीजों को दरकिनार करते हुए ऐसी फिल्म बनाई है जिसमें हीरोगिरी नजर आए। स्लो मोशन वाले शॉट इतने डाले हैं कि एक चौथाई से ज्यादा फिल्म इस तरह के शॉट्स से भरी हुई है। हर दस-पन्द्रह मिनट में फाइट सीन डाले गए हैं। रूटीन फिल्म को दिलचस्प बनाने का तरीका एंथनी को सीखना होगा।
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मसालों के अनुपात में एंथनी से गड़बड़ हो गई। फिल्म का सारा फोकस एक्शन है। केबल वायर का उपयोग इसमें नजर नहीं आता है जो अच्छी बात है वरना दर्शक केबल वाले एक्शन देख उब चुके हैं। इमोशन और रोमांस का तड़का भी लगाया है। पिता-पुत्र के रिश्ते में जो इमोनशन निकल कर आने थे, वो नदारद हैं। बॉस और उसके पिता का रिश्ता बजाय दिल को छूने के बनावटी प्रतीत होता है। यही हाल रोमांस का है। अक्षय से इतनी फाइट कराई गई है कि बेचारे को रोमांस का वक्त ही नहीं मिलता इसलिए यह बॉस बिना हीरोइन के है। एक हीरोइन की कमी महसूस भी होती है।
कुछ कॉमेडी सीन जरूर अच्छे हैं। जैसे- बॉस अपने भाई शिवा से लंबे समय बाद मिलता है और शिवा उसके शरीर पर लिखे डायलॉग पढ़ता है, दरगाह के फाइट सीन में भी हास्य देखने को मिलता है, बॉस के लिए उसके गुर्गों का कुर्सी बन जाना भी अच्छा सीन है।
एंथनी फिल्म के पहले हिस्से में मार खा गए। इंटरवल के पहले वाला हिस्सा बेहद सुस्त और उबाऊ है। एक्शन फिल्मों की जो गर्मी उसमें चाहिए वो नदारद है। इंटरवल के बाद एक्शन और संवाद जोर पकड़ते हैं और फिल्म में थोड़ी-बहुत पकड़ बनती है।
गानों के नाम पर ‘बॉस’ और ‘पार्टी ऑल द नाइट’ की धुन ठीक है, लेकिन शब्द स्तरीय नहीं है। मौलिकता का अभाव फिल्म संगीत में भी नजर आता है। एक पुरानी हिट गाना नई फिल्म में डाला जाता है। यहां ‘जांबाज’ के गीत ‘हर किसी को नहीं मिलता’ से काम चलाया गया है।
19 मिनट बाद फिल्म में एंट्री लेने वाले अक्षय कुमार के आते ही सारे कलाकार साइड लाइन हो जाते हैं। अक्षय ने बॉस के किरदार को दिलचस्प बनाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन कई बार वे भी असहज नजर आते हैं।
अदिति राव हैदरी की बिकिनी में एंट्री होती है, लेकिन बाद में उन्हें पूरी तरह भुला दिया गया है। यही हाल शिव पंडित का है। सोच-समझ कर फिल्म साइन करने वाले डैनी ने यह फिल्म क्यों की? उनकी प्रतिभा का कोई उपयोग निर्देशक नहीं कर पाया। कुछ वर्ष पहले मिथुन ‘बॉस’ जैसे किरदार निभाते थे, अब उम्र बढ़ गई तो बॉस के पिता बन गए। रॉनित रॉय को एक खूंखार पुलिस अफसर के रूप में देखना अच्छा लगा और ‘बॉस’ को उन्होंने कड़ी टक्कर दी। ‘बॉस’ अक्षय को ‘लक’ की जरूरत भी है, इसलिए अपने लिए सोनाक्षी सिन्हा को लकी मानने वाले अक्षय ने उनसे दो गाने फिल्म में कराए हैं।
कुछ दिनों पहले सलमान खान ने कहा था कि अति होने के कारण मसाला एक्शन फिल्में अपना प्रभाव खोती जा रही हैं। सलमान को तो यह बात समझ आ गई है, संभव है कि ‘बॉस’ के बाद अक्षय कुमार भी इस बात को मानने लगे।