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Written By BBC Hindi
Last Modified: सोमवार, 31 मार्च 2014 (11:56 IST)

सोशल मीडिया की लत पहचानने के चार तरीके

- जुबैर अहमद (दिल्ली)

Internet_Social_Media_Addiction | सोशल मीडिया की लत पहचानने के चार तरीके
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क्या इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल वास्तव में एक नशा है? जैसे कि शराब या जुए की लत? मैं दिन भर में काफी घंटे सोशल मीडिया और इंटरनेट पर काम करता हूं। अपने फोन पर हर वक्त मैसेज और ईमेल चेक करता रहता हूं और नए-नए ऐप्स अपने फोन पर डाउनलोड करता रहता हूं।

क्या मुझे सोशल मीडिया, ऐप्स और इंटरनेट का नशा है? यही सवाल मैंने किया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहैन्स) के मनोविज्ञान विभाग के डॉक्टर मनोज शर्मा से। मैंने कहा, 'मैं खुद को एक मरीज की तरह आपके सामने पेश कर रहा हूं।'

डॉ. मनोज शर्मा ने मुझ से कई सवाल किए, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट था यह देखना कि मेरे अन्दर अंग्रेजी के चार सी (C) की कैफियत मौजूद हैं या नहीं।

वह कहते हैं, 'हम इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने वालों में चार 'सी' ढूंढते हैं। पहला है क्रेविंग यानी सोशल मीडिया पर जाने और इंटरनेट के इस्तेमाल की जबरदस्त तलब। दूसरा है कंट्रोल यानी जब आप सोशल मीडिया पर होते हैं तो अपना संतुलन खो देते हैं, आपको समय का पता नहीं चलता।'

'तीसरा है कम्पल्शन यानी अगर आप को इंटरनेट पर जाने की या अपने मोबाइल फोन पर मेल चेक करने की या फेसबुक पर अपडेट लिखते रहने और तस्वीरें अपलोड करने की जरूरत नहीं है तब भी आप इसका इस्तेमाल करते हैं और चौथा है कॉन्सिक्वेंसेज मतलब इस आदत के कारण हुआ नुकसान। दोस्तों और रिश्तेदारों को खोने से लेकर खुद का कीमती समय बर्बाद करना, इसमें सभी तरह का नुक़सान हो सकता है।'

'गंभीरता से लेना जरूरी' अगले पन्ने पर...


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'गंभीरता से लेना जरूरी' : मैं इस टेस्ट में आधा पास और आधा फेल हुआ। डॉ. शर्मा का कहना था कि साइबर दुनिया से बाहर असल जिन्दगी में भी मेरे काफी दोस्त हैं और मेरी भूख, प्यास और सेहत अब भी बरकरार है इसलिए मैं नशा करने वालों की श्रेणी में नहीं आता हूं। दूसरी तरफ, उन्होंने कहा कि मैं इंटरनेट और ईमेल इत्यादि जरूरत से ज्यादा करता हूं, इसलिए यह नशे जैसा बन सकता है।

डॉ. शर्मा का विभाग इंटरनेट के नशे के शिकार लोगों के लिए हफ्ते में दो बार एक क्लीनिक चलाता है जहां युवा मरीजों की संख्या अधिक है।

उनसे मिलने आने वालों में 16 साल की मीनल (असली नाम नहीं) भी हैं। उनके माता-पिता को लगता है कि मीनल कंप्यूटर की दुनिया से बाहर आना ही नहीं चाहती इसलिए वो उन्हें इस क्लीनिक में लाए हैं।

यहां आने तक मीनल अपने सारे दोस्त खो चुकी थीं। वो लगभग 7-8 घंटे प्रतिदिन कंप्यूटर पर बैठ कर सोशल मीडिया में चैट करती रहती थी, जिसमें अनजान लोगों के साथ चैट करना शामिल था। उसने खाना-पीना बहुत कम कर दिया था। उसकी भूख और प्यास मिट चुकी थी।

डॉ. शर्मा और उनके विभाग के दूसरे डॉक्टर मीनल का इलाज कर रहे हैं और मीनल के व्यवहार में अब थोड़ा बदलाव आया है, लेकिन मीनल की तरह कम उम्र के लड़के और लड़कियां इंटरनेट के नशे का शिकार हो चुके हैं।

दिमाग का इस्तेमाल : इसी अस्पताल के प्रोफेसर विवेक बेनेगल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ हैं। उनका कहना है कि नई पीढ़ी टेक्नॉलॉजी के अनुचित इस्तेमाल की शिकार है जिसके कारण उनकी याददाश्त कमजोर हो गई है. वह किसी भी समस्या का समाधान तुरंत चाहते हैं क्योंकि उन्हें इंटरनेट पर हर प्रश्न का उत्तर फौरन मिल जाता है।

वह कहते हैं, 'सबसे गंभीर बात यह है कि इन बच्चों को अब अपना दिमाग इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह हर चीज इंटरनेट पर ढूंढ लेते हैं।'

विवेक बेनेगल का आगे कहना है कि इंटरनेट रचनात्मकता को मार देता है, 'आज के बच्चों को हर समस्या का हल इंटरनेट पर मिल जाता है इसलिए वह अपने सोचने और समझने की क्षमता खो देते हैं। दिमाग का प्रयोग कम हो जाता है।'

उन्होंने एक लड़के का उदाहरण दिया जो कंप्यूटर और फोन पर विडियो गेम खेलने का आदी हो चुका था। वो कहते हैं, 'वह 10-12 घंटे गेम खेलता रहता था। उसने कॉलेज जाना छोड़ दिया। उसकी भूख मर गई थी। वह मेरा मरीज है लेकिन मुझे उसे सामान्य होने में समय लगेगा।'

डॉक्टर शर्मा कहते हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत उसे लगती है जो अवसाद का शिकार है और जिसे अकेलापन खलता है। या फिर वह जो पढ़ने जैसे गंभीर काम से दूर भागना चाहता है।

विवेक बेनेगल का कहना है कि परेशानी वाली बात यह है कि समाज और सरकार अब तक इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उन्हें अब तक अंदाजा भी नहीं है कि यह एक समस्या है। वह कहते हैं, 'जरूरत इस बात की है कि इस पर देश भर में चर्चा हो और लोगों के बीच जागरूकता पैदा हो।'