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Written By BBC Hindi

'चांद ही नहीं मंगल पर भी भारत की नजर'

''चांद ही नहीं मंगल पर भी भारत की नजर'' -
BBC
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) श्रीहरिकोटा से जीसैट-12 नाम का संचार उपग्रह लांच कर रहा है। भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम पर सबकी नजर है।

भारत के लिए इसका क्या महत्व है, टेलीमेडीसिन और शिक्षा के क्षेत्र में ये कैसे मदद करेगा...इस बारे में बीबीसी ने बात की साइंस पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार पल्लव बागला से। उन्होंने कहा है कि सात साल के अंदर इसरो किसी हिंदुस्तानी को श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष में भेज सकेगा।

पीएसएलवी का इस्तेमाल कर भारत संचार उपग्रह लांच कर रहा है। इसकी क्या अहमियत है। ये लांच काफी अहमियत रखता है कि क्योंकि भारत अपने छोटे रॉकेट पीएसएलवी के जरिए एक बड़ा संचार उपग्रह प्रक्षेपित कर रहे हैं। आम तौर पर पीएसएलवी छोटे रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट लांच करता है।

पहले भारत अपने संचार उपग्रह लांच करने के लिए अपने बड़े रॉकेट जीएसएलवी का इस्तेमाल करता था, लेकिन वो पिछली कई बार से अपने लक्ष्य में विफल रहा है। इस वजह से वो रॉकेट तो भारत को उपलब्ध ही नहीं है। इसलिए पीएसएलवी का इस्तेमाल किया गया है। हमारे पास ट्रांसपॉन्डर की कमी है, इस कमी को पूरी करने के लिए इसरो ने फास्ट ट्रेक तरीका इस्तेमाल किया है- छोटे रॉकेट से बड़े सेटेलाइट का प्रशेक्षण।

नए संचार उपग्रह के लांच होने से आम लोगों को क्या फायदा पहुंचने वाला है। इस उपग्रह में एक्सटेंडिड सी-बैंड के ट्रांसपौंडर हैं जो प्रसारण उद्योग छोड़कर सामाजिक अभियानों में मदद के लिए काम आएंगे। ये ट्रांसपौंडर भारत के संचार नेटवर्क में मदद करेंगे। दूरस्थ शिक्षा में भी ये उपग्रह उपयोगी साबित होगा।

नए संचार उपग्रह के लांच से टेलीमेडिसन में मदद मिलेगी। मिसाल के तौर पर दूर दराज के गांव या लक्ष्यद्वीप जैसी जगह में स्वास्थ्य केंद्र और शहर के मुख्य अस्पताल को जोड़ने में सुविधा होगी। दोनों का संपर्क संचार उपग्रह के माध्यम से हो पाएगा। गांव में बैठे लोगों को शहरी विशेषज्ञ की राय मिल सकेगी।

(दरअसल इसरो के पिछले कुछ उपग्रह विफल हो गए थे जिससे ट्रांसपौंडर की कमी हो गई थी। इस वजह से गांव में बने विभिन्नों केंद्रों से जुड़ने में दिक्कत हो रही थी। स्टॉक एक्सचेंज में विभिन्न टर्मिनल के बीच कनेक्टिविटी कम हो गई थी।)

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को आप कहां देखते हैं। हाल में भारत को कुछ असफलताएं भी मिली हैं।

किसी भी देश का स्पेस प्रोग्राम हाई-रिस्क प्रोग्राम होता है। भारत को किसी दूसरे देश ने तो तकनीक दी नहीं है, भारत ने खुद ही विकसित की है। इसमें सफलता भी मिलती है, विफलता भी। इस समय हिंदुस्तान के पास 10 रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट हैं जो नागरिक दायरे में विश्व में सबसे ज्यादा बड़ी क्षमता है। भारत के पास आधा दर्जन से ऊपर संचार उपग्रह हैं जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नायाब क्षमता है। आने वाले दिनों में इसरो चांद की ओर फिर कदम बढ़ाएगा-चंद्रयान-2 के जरिए। मंगल पर जाने का अभियान भी है।

इसरो इस तैयारी में लगी है कि किस तरह हिंदुस्तान की धरती से, हिंदुस्तान के रॉकेट से किसी हिंदुस्तानी को ही अंतरिक्ष में भेजा जाए। अभी सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी है। लेकिन इसरो तकनीक पर काम कर रहा है। इसरो के प्रमुख ने मुझे बताया है कि सात साल के अंदर वो किसी हिंदुस्तानी को श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष में भेज सकेंगे।