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Written By WD

आयुर्वेदिक औषधीय तेल

आयुर्वेदिक औषधीय तेलों अणु तेल
आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी में हम अभी तक अनेक प्रकार की दवाएँ तथा विभिन्न रोगों की दवाएँ बता चुके हैं। इसी कड़ी के अंतर्गत हम आयुर्वेदिक औषधीय तेलों की उपयोगी जानकारी दे रहे हैं।

अणु तेल : सिर का दर्द, आधा सीसी, पीनस, नजला, अर्दित, मन्यास्तम्भ आदि में लाभप्रद।

इरमेदादि तेल : दंत रोगों में लाभदायक। मसूढ़ों के रोग, मुंह से दुर्गन्ध आना, जीभ, तालू व होठों के रोगों में लाभप्रद। ब्रणोपचार के लिए उत्तम। प्रयोग विधि : मुख रोगों में मुंह में भरना अथवा दिन में तीन-चार बार तीली से लगाना।

काशीसादि तेल : व्रण शोधक तथा रोपण है। इसके लगाने से बवासीर के मस्से नष्ट हो जाते हैं। नाड़ी व्रण एवं दूषित व्रणों के उपचार हेतु लाभकारी। प्रयोग विधि : बवासीर में दिन में तीन चार बार गुदा में लगाना अथवा रूई भिगोकर रखना।

गुडुच्यादि तेल : वात रक्त, कुष्ठ रोग, नाड़ी व्रण, विस्फोट, विसर्प व पाद दाहा पर उपयुक्त।

चंदनबला लाशादि तेल : इसके प्रयोग से सातों धातुएं बढ़ती हैं तथा वात विकार नष्ट होते हैं। कास, श्वास, क्षय, शारीरिक क्षीणता, दाह, रक्तपित्त, खुजली, शिररोग, नेत्रदाह, सूजन, पांडू व पुराने ज्वर में उपयोगी है। दुबले-पतले शरीर को पुष्ट करता है। बच्चों के लिए सूखा रोग में लाभकारी। सुबह व रात्रि को मालिश करना चाहिए।

जात्यादि तेल : नाड़ी व्रण (नासूर), जख्म व फोड़े के जख्म को भरता है। कटे या जलने से उत्पन्न घावों को व्रणोपचार के लिए उत्तम। प्रयोग

विधि : जख्म को साफ करके तेल लगावें या कपड़ा भिगोकर बांधें।

नारायण तेल : सब प्रकार के वात रोग, पक्षघात (लकवा), हनुस्म्भ, कब्ज, बहरापन, गतिभंग, कमर का दर्द, अंत्रवृद्धि, पार्श्व शूल, रीढ़ की हड्डी का दर्द, गात्र शोथ, इन्द्रिय ध्वंस, वीर्य क्षय, ज्वर क्षय, दन्त रोग, पंगुता आदि की प्रसिद्ध औषधि। सेवन में दो-तीन बार पूरे शरीर में मालिश करना चाहिए। मात्रा 1 से 3 ग्राम दूध के साथ पीना चाहिए।

पंचगुण तेल : संधिवात, शरीर के किसी भी अवयव के दर्द में उपयोगी। कर्णशूल में कान में बूंदें डालें। व्रण उपचार में फाहा भिगोकर बांधे।

महाभृंगराज तेल : बालों का गिरना बंद करता है तथा गंज को मिटाकर बालों को बढ़ाता है। असमय सफेद हुए बालों को काला करता है। माथे को ठंडा करता है। प्रयोग विधि : सिर पर धीरे-धीरे मालिश करना चाहिए।

विल्तेल कान दर्द, कान में आवाज तथा सनसनाहट होने पर बहरापन दूर करने में विशेष उपयोगी।

महानारायण तेल : नारायण तेल से अधिक लाभदायक है।

महामरिचादि तेल : खाज, खुजली, कुष्ठ, दाद, विस्फोटक, बिवाई, फोड़े-फुंसी, मुंह के दाग व झाई आदि चर्म रोगों और रक्त रोगों के लिए प्रसिद्ध तेल से त्वचा के काले व नीले दाग नष्ट होकर त्वचा स्वच्छ होती है। सुबह व रात्रि को मालिश करना चाहिए।

महामाष (निरामिष) : पक्षघात (लकवा), हनुस्तम्भ, अर्दित, पंगुता, शिरोग्रह मन्यास्तम्भ, कर्णनाद तथा अनेक प्रकार के वात रोगों पर लाभकारी।

महाविषगर्भ तेल : सब तरह के वात रोगों की प्रसिद्ध औषधि। जोड़ों की सूजन समस्त शरीर में दर्द, गठिया, हाथ-पांव का रह जाना, लकवा, कंपन्न, आधा सीसी, शरीर शून्य हो जाना, नजला, कर्णनाद, गण्डमाला आदि रोगों पर। सुबह व रात्रि मालिश करें।

महालाक्षादि तेल : सब प्रकार के ज्वर, विषम ज्वर, जीर्ण ज्वर व तपेदिक नष्ट करता है। कास, श्वास, प्रतिशाय (जुकाम), हाथ-पैरों की जलन, पसीने की दुर्गन्ध शरीर का टूटना, हड्डी के दर्द, पसली के दर्द, वात रोगों को नष्ट करता है। बल, वीर्य कांति बढ़ाता है तथा शरीर पुष्ट करता है। सुबह व रात्रि मालिश करना चाहिए।

मरिचादि तेल : महामरिचादि तेल के समान न्यून गुण वाला।

रोपण तेल : सब प्रकार के व्रणों (घाव) में ब्रणोपचार के लिए उत्तम। योनि रोग में उत्तर वस्ति में गुणकारी।

लाक्षादि तेल : महालाक्षादि तेल के समान न्यून गुण वाला।

विषगर्भ तेल : महाविषगर्भ तेल के समान न्यून गुण वाला।

षडबिंदु तेल : इस तेल के व्यवहार से गले के ऊपर के रोग जैसे सिर दर्द, सर्दी, (जुकाम), नजला, पीनस आदि में लाभ होता है। सेवन : दिन में दो-तीन बार 5-6 बूंद नाक में डालकर सूंघना चाहिए।

सैंधवादि तेल : सभी प्रकार के वृद्धि रोगों में इस तेल के प्रयोग से अच्छा लाभ होता है। आमवात, कमर व घुटने के दर्द आदि में उपयोगी है।

सोमराजी तेल : इस तेल की मालिश से रक्त विकार, खुजली, दाद, फोड़ा-फुंसी, चेहरे पर कालिमा आदि में फायदा होता है।

एरण्ड तेल : पेट के सुद्दों को दस्त के जरिये निकालता है। जोड़ों के दर्द में लाभकारी है।

जैतून तेल : त्वचा को नरम करता है तथा चर्म रोगों में जलन आदि पर लाभप्रद है।

नीम तेल : कृमि रोग, चर्म रोग, जख्म व बवासीर में लाभकारी।

बादाम तेल असली : दिमाग को ताकत देता है, नींद लाता है, सिर दर्द व दिमाग की खुश्की दूर करता है। मस्तिष्क का कार्य करने वालों को लाभप्रद है। अर्श रोगियों तथा गर्भवती स्त्रियों को लाभकारी। सेवन : सिर पर मालिश करें तथा 3 से 6 ग्राम तक दूध में डालकर पीना चाहिए।

दयाल तेल : गठिया का दर्द, पक्षघात (लकवा), कुलंगवात, अर्द्धगवात, चोट लगना, जोड़ों
का दर्द, कमर का दर्द तथा सब प्रकार के वात संबंधी दर्दों को शीघ्र दूर करता है।

बावची तेल : सफेद दाग (चकत्ते) तथा अन्य कुष्ट रोगों पर।

मालकंगनी तेल : वात व्याधियों में उपयुक्त।

लौंग तेल : सिर दर्द व दांत दर्द में अक्सीर है।