विवादों से साहित्य का नाता पुराना है। बीते वर्ष साहित्य के विवाद अपने आप में अनूठे रहे। कभी कवि नीलाभ और उनकी पत्नी भूमिका के बीच के बनते-बिगड़ते रिश्ते सुर्खियों में रहे तो कभी नीलाभ के जाने के बाद उन पर लिखी भूमिका की कविता चर्चा का विषय रही। कभी कवि अंबर रंजन पांडेय का सोशल मीडिया पर आदिवासी लड़की दोपदी सिंघार और तोताबाला ठाकुर के छद्म नाम से 'बोल्ड' कविता लिखना हलचल का सबब बना तो कभी शुभमश्री की बिंदास कविता को पुरस्कृत किए जाने को लेकर खासा बवाल मचा।
लेखक प्रभु जोशी और भालचंद्र जोशी के विवाद ने बड़ा तुल पकड़ा तो अनिल जनविजय और गगन गिल के पुराने रिश्ते को लेकर हुई उनकी आपसी झड़प में भी साहित्य संसार गर्म हुआ। आइए जानते हैं 2016 के इन्हीं 5 बड़े विवादों को विस्तार से :
1 . नीलाभ की नीली रोशनी में विवाद की भूमिका
कवि नीलाभ अपने अक्खड़ स्वभाव और फक्खड़ तबियत की वजह से साहित्य-संसार का विशेष आकर्षण थे। नीलाभ ने जब अपने से दोगुनी कम उम्र की लेखिका भूमिका द्विेवेदी से विवाह किया तो हर किसी को अंदेशा यही था कि यह विवाह स्थिर रहेगा या नहीं। बहरहाल कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक रहा लेकिन 2016 में यह जोड़ी तब प्रकाश में आई जब दोनों एकदूजे पर दोषारोपण करते हुए पुलिस तक जा पहुंचे। नीलाभ का कहना था कि भूमिका ने उनसे पैसों के लिए विवाह किया जबकि भूमिका ने '' देह में जान नहीं/ मुंह में दांत नहीं/ पेट में आंत नहीं/ फ़िर भी ऐ खुदा कामिनी से मिला दे/ एक छोड़, दूसरी को मारकर, लचकदार दामिनी से मिला दे जैसी कविता लिखकर यह संकेत दिया कि रिश्ते किस हद तक बिगड़ चुके हैं।
अंतिम समय में नीलाभ ने लंबा माफीनामा लिखा और पुलिस में लिखाई अपनी हर रिपोर्ट वापिस ले ली। 23 जुलाई 2016 को जब वे इस दुनिया से रुखसत हुए तो फिर भूमिका द्वारा नीलाभ के लिए लिखी कविता विवाद का विषय बनी कि अभी तो अंत्येष्टि भी नहीं हुई और उन्हें कविता लिखने का समय मिल गया हालांकि भूमिका ने हर विवाद का सामना किया। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि घर के विवाद चौराहे पर आए और साहित्य का बड़ा तबका चटखारे लेता पाया गया।
भूमिका की दोनों कविताएं :
* नीलाभ से विवाद के समय लिखी कविता :
देह में जान नहीं/ मुंह में दांत नहीं/ पेट में आंत नहीं/
फ़िर भी ऐ खुदा कामिनी से मिला दे/
एक छोड़, दूसरी को मारकर, लचकदार दामिनी से मिला दे
क्या हुआ वैभव नष्ट हुआ
सम्मान गलित हुआ
हर पथ भ्रमित हुआ
पैत्रिक यश कलंकित हुआ
सारा समाज अचंभित हुआ
कमर पर बल पड़े,
ना सीधा चल सके,
फ़िर भी ऐ ख़ुदा गजगामिनी से मिला दे
भावना क्या है
दायित्व किस चिड़िया का नाम है
वफ़ा, तह्ज़ीब, सलीका का क्या काम है
आंखों से ना दिखे भले ही
कांपते लिजलिजे वृद्ध हाथों को थाम ले कोई
फ़िर भी ऐ ख़ुदा मृगनयनी से मिला दे.
मैं सत्य छुपा लूंगा
कुछ भी बता दूंगा
वियाग्रा चबा लूंंगा
यूनानी दवा लूंंगा
किसी भी तरह से
मैं उसको फ़ंंसा लूंंगा
रहम कर मुझपर मालिक,
किसी कमसिन, किसी भोली से मिला दे
पोपले मुंंह से कसीदे गढ़ूंंगा
गिनती के श्वेत केशों से
मैं उसको हवा दूंंगा
अपने झूठों से तनिक
नहीं बिफरूंंगा
अब तो कृपा बरसा मौला
बाँकी अदाओं वाली महजबीं से मिला दे
एक बार मिला दे...
मिला दे ऐ ख़ुदा
मिला दे ऐ ख़ुदा
कब्र में जाने से पहले
किसी एक से,
तो फ़िर मिला दे ऐ ख़ुदा
मिला दे ऐ ख़ुदा
मिला दे ऐ ख़ुदा
मिला दे ऐ ख़ुदा...
* नीलाभ की मृत्यु पर लिखी कविता
अब नहीं मिलेंगे मेरी तकिया पर अधकचरे
अधरंगे बाल तुम्हारे,
अब नहीं देख सकूंगी, प्रेमी करतब
और बवाल सारे
अब नहीं सहला पाऊंगी माथा तुम्हारा
कभी बुखार से तपता
तो कभी शीतल जल जैसा
अब नहीं नहलाऊंगी तुम्हें
कुर्सी पर बिठाकर
चिढ़ाकर
दुलराकर
चन्दन वाले तुम्हारे प्रिय साबुन से..
नहीं पुकारोगे तुम अब बार बार
"मेरी जान एक गिलास ठंडा पानी पिला दो,
बाथरूम तक पंहुचा दो मेरी प्यारी"
नीचे सीढ़ियों तक तुम्हारी कार आते ही मोहल्लेवाले अब नहीं बतायेंगे मुझे,
"भाभी अंकलजी आ गये,
लिवा ले जाईये उन्हें"
"दीदी अंकल जी फ़िर बाहर, वौशरूम, फ़्रिज के पास, दरवाज़े पर, आलमारी के पीछे गिर गये हैं, किसी को बुलाईये, इन्हें उठवाईये.." कामवाली बाईयांं भी हरकारा नहीं देंगी इस तरह अब.
अब दवा खिलाने नहीं आऊंगी तुम्हें,
ना करवाऊंगी अल्ट्रासाउन्ड, ना डौपलर, ना सिटी स्कैन, ना ब्लड, न यूरिन, न खंखार का टेस्ट तुम्हारा बार बार.
अब गिड़गिड़ाऊंगी भी नहीं कि खाना खा लो, देखो दवा का टाइम हो गया है."
अब नहीं सुनाओगे तुम मुझे मेरी पसंद की कविता,
ना गढ़ोगे शेर और जुमले मुझ पर
ना खींचोगे मेरी फोटो, ना फ़्रेम करवाओगे उनपर
न सजाओगे मुझे कहीं ले जाने के लिये.
अब तो बस
हवा में तैरेंगी खूब सारी बातें तुम्हारी
तुम्हें शून्य से भी ना जानने वाले
लगायेंगे तोहमतें मुझपर
अब तो सिर्फ़ कड़वी ज़बान
कड़वे झूठ सुनकर
रोती रहूंगी
तुम्हारा प्रेम याद करके अकेले उसी कमरे में
जहां बैठते थे तुम और हम
और खूब शिक़वे
खूब ठहाके
खूब फ़िकरे
और थोड़ी सी आत्मीयता भी
सहलायेगी मेरा मन
मेरा एकदम-से अकेला हुआ मन
तुम थोड़ा और रुक जाते
तो मजबूत बना जाते मुझे
तुम्हें तो अपनी पहली दिवंगत पत्नी
और यारों से मिलने की जल्दी पड़ी थी,
इसी जल्दी में छोड़ गए तुम
अपनी दूसरी धर्मपत्नी को अकेला और अनाथ
तुम क्यूं इतनी जल्दी
हाथ छोड़ गये मेरा.
इतनी भी क्या जल्दी थी जी......
2.शुभमश्री की कविता की शुभता पर उठे सवाल
35 वर्ष से कम अवस्था के किसी एक युवा कवि/कवयित्री की हिन्दी कविता को प्रतिवर्ष दिए जाने वाले प्रतिष्ठित ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ भी विवादों की बलि चढ़ा। 2016 का पुरस्कार जैसे ही युवा कवयित्री शुभम श्री की कविता ‘पोएट्री मैनेजमेंट’ को देने की घोषणा हुई वैसे ही विवाद की आंधी चल पड़ी। निर्णायक रहे कवि-कथाकार उदय प्रकाश की छीछालेदर और शुभम श्री के प्रति अपशब्दों की बौछार से सोशल मीडिया सराबोर हो गया।
शुभम श्री की भाषा को कुछ लोग ने साहित्य के लिए अशुभ माना। वहीं कुछ लोग उनके पक्ष में तर्क-वितर्क और कुतर्क रखते देखे गए। आप पुरस्कृत कविता पढ़ें-
|| पोएट्री मैनेजमेण्ट ||
कविता लिखना बोगस काम है !
अरे फ़ालतू है !
एकदम
बेधन्धा का धन्धा !
पार्ट टाइम !
साला कुछ जुगाड़ लगता एमबीए-सेमबीए टाइप
मज्जा आ जाता गुरु !
माने इधर कविता लिखी उधर सेंसेक्स गिरा
कवि ढिमकाना जी ने लिखी पूंजीवाद विरोधी कविता
सेंसेक्स लुढ़का
चैनल पर चर्चा
यह अमेरिकी साम्राज्यवाद के गिरने का नमूना है
क्या अमेरिका कर पाएगा वेनेजुएला से प्रेरित हो रहे कवियों पर काबू?
वित्त मन्त्री का बयान
छोटे निवेशक भरोसा रखें
आरबीआई फटाक रेपो रेट बढ़ा देगी
मीडिया में हलचल
समकालीन कविता पर संग्रह छप रहा है
आपको क्या लगता है आम आदमी कैसे सामना करेगा इस संग्रह का ?
अपने जवाब हमें एसएमएस करें
अबे, सीपीओ (चीफ़ पोएट्री ऑफ़िसर) की तो शान पट्टी हो जाएगी !
हर प्रोग्राम में ऐड आएगा
रिलायंस डिजिटल पोएट्री
लाइफ़ बनाए पोएटिक
टाटा कविता
हर शब्द सिर्फ़ आपके लिए
लोग ड्राइंग रूम में कविता टांगेंगे
अरे वाह बहुत शानदार है
किसी साहित्य अकादमी वाले की लगती है
नहीं जी, इम्पोर्टेड है
असली तो करोड़ों डॉलर की थी
हमने डुप्लीकेट ले ली
बच्चे निबन्ध लिखेंगे
मैं बड़ी होकर एमपीए करना चाहती हूं
एलआईसी पोएट्री इंश्योरेंस
आपका सपना हमारा भी है
डीयू पोएट्री ऑनर्स, आसमान पर कटऑफ़
पैट (पोएट्री एप्टीट्यूड टैस्ट)
की परीक्षाओं में फिर लड़ियां अव्वल
पैट आरक्षण में धांधली के ख़िलाफ़ विद्यार्थियों ने फूंका वीसी का पुतला
देश में आठ नए भारतीय काव्य संस्थानों पर मुहर
तीन साल की उम्र में तीन हज़ार कविताएं याद
भारत का नन्हा अजूबा
ईरान के रुख़ से चिन्तित अमेरिका
फ़ारसी कविता की परम्परा से किया परास्त
ये है ऑल इण्डिया रेडियो
अब आप सुनें सीमा आनन्द से हिन्दी में समाचार
नमस्कार
आज प्रधानमन्त्री तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय काव्य सम्मेलन के लिए रवाना हो गए
इसमें देश के सभी कविता गुटों के प्रतिनिधि शामिल हैं
विदेश मन्त्री ने स्पष्ट किया है कि भारत किसी क़ीमत पर काव्य नीति नहीं बदलेगा
भारत पाकिस्तान काव्य वार्ता आज फिर विफल हो गई
पाकिस्तान का कहना है कि इक़बाल, मण्टो और फ़ैज़ से भारत अपना दावा वापस ले
चीन ने आज फिर नए काव्यालंकारों का परीक्षण किया
सूत्रों का कहना है कि यह अलंकार फिलहाल दुनिया के सबसे शक्तिशाली
काव्य संकलन पैदा करेंगे
भारत के प्रमुख काव्य निर्माता आशिक़ आवारा जी काआज तड़के निधन हो गया
उनकी असमय मृत्यु पर राष्ट्रपति ने शोक ज़ाहिर किया है
उत्तर प्रदेश में फिर दलित कवियों पर हमला
उधर खेलों में भारत ने लगातार तीसरी बार
कविता अंत्याक्षरी का स्वर्ण पदक जीत लिया है
भारत ने सीधे सेटों में 6-5, 6-4, 7-2 से यह मैच जीता
समाचार समाप्त हुए
आ गया आज का हिन्दू, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, प्रभात ख़बर
युवाओं पर चढ़ा पोएट हेयरस्टाइल का बुखार
कवियित्रियों से सीखें हृस्व दीर्घ के राज़
३० वर्षीय एमपीए युवक के लिए घरेलू, कान्वेण्ट एजुकेटेड, संस्कारी वधू चाहिए
२५ वर्षीय एमपीए गोरी, स्लिम, लम्बी कन्या के लिए योग्य वर सम्पर्क करें
गुरु मज़ा आ रहा है
सुनाते रहो
अपन तो हीरो हो जाएंगे
जहां निकलेंगे वहीं ऑटोग्राफ़
जुल्म हो जाएगा गुरु
चुप बे
थर्ड डिविज़न एम० ए०
एमपीए की फ़ीस कौन देगा?
प्रूफ़ कर बैठ के
ख़ाली पीली बकवास करता है !
3. तोता-दोपदी विवाद ने हिन्दी की दुनिया को हिलाया
जुलाई और अगस्त के दिनों में एक अभिनव किस्म के विवाद ने हिन्दी की दुनिया को हिलाकर रख दिया था। शुभमश्री को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार दिए जाने के तुरंत बाद हिन्दी में दो नई अज्ञात कवयित्रियां उभर आईं। एक थीं आदिवासी और नक्सली पृष्ठभूमि वाली दौपदी सिंघार और दूसरी थीं बांग्ला मध्यवर्गी पृष्ठभूमि वालीं तोताबाला ठाकुर। दोनों ही विवादास्पद, भड़काऊ, उत्तेजक भाषा में कविताएं लिखने वालीं। फ़ेसबुक पाठकों ने इन कविताओं को हाथोंहाथ लिया, कवयित्रियों की पहचान छुपी होने के बावजूद। आखिरकार यह खुलासा हुआ कि इंदौर के युवा लेखक अंबर रंजना पांडेय ही इन नामों से कविताएं लिख रहे थे।
अम्बर रंजना पांडेय ने (अपने इसी नाम से) हिन्दी में अनेक कविताएं लिखी हैं, लेकिन उनके अनेक रूप हैं। उर्दू-फ़ारसी में अफ़साने उन्होंने लिखे हैं। अंग्रेज़ी में पोस्ट मॉर्डन कहानियां। गुजराती में शेठ टोडर हिंगलूवालो के नाम से भी उन्होंने लिखा। हिब्रू में लिखने की भी उनकी तैयारी है। दोपदी और तोताबाला के अलावा वे अफ़सुर्दा ज़ैदी, भंडपीर इंदौरी के नाम से भी लिखते रहे हैं। बहरहाल, दोपदी-तोता प्रसंग ने हिन्दी जगत की कई वास्तविकताओं को हमारे सामने लाकर रख दिया। हिन्दी जगत में यश और अपयश दोनों की ही सच्चाइयां सामने आईं।
तोता-दोपदी विरोधी खेमे की ओर से छल, कुंठा और पाखंड का उन्मुक्त प्रदर्शन हुआ। तोता-दोपदी समर्थक खेमे की ओर से अपने बचाव में कहा गया कि उपेक्षा, उदासीनता, खेमेबाज़ी, मिडियोक्रिटी और राजनीति का शिकार होने वाली एक युवा प्रतिभा के सामने अपने कृतित्व को मनवाने का इस किंचित अशोभनीय गुरिल्ला शैली के अलावा कदाचित कोई और रास्ता नहीं ही रह गया था। दोपदी-तोताबाला-अम्बर प्रकरण में लगभग सर्वसम्मति से यह मान लिया गया था कि इंदौर में बैठे कुछ युवाओं द्वारा सुविचारित रूप से यह सब किया जा रहा था, जबकि वास्तव में यह केवल अम्बर के ही दिमाग़ की कारस्तानी थी।
दोपदी सिंघार द्वारा अपना अकाउंट बंद किए जाने के बाद उनकी खोजबीन इस क़दर शुरू हुई कि कुछ अख़बारों के पहले पन्ने तक पर इस विवाद को जगह दी गई। इस विवाद के चलते एक समय हिन्दी साहित्य की फ़ेसबुकी दुनिया में दोफाड़ की स्थिति निर्मित हो गई थी। कटुताओं में भीषण बढ़ोतरी हुई, अनेक मित्र अमित्र हुए और विरोध-समर्थन में ख़ूब पोस्टें लिखी गईं। लेकिन अम्बर द्वारा जल्द ही अपने रचनाकर्म को एक अलग दिशा में मोड़ देने के बाद धीरे-धीरे यह विवाद शांत हो गया और अब तो इसे लगभग भुला दिया गया है।
4. जोश में जोशी-जोशी आपस में उलझे
कथाकार और चित्रकार प्रभु जोशी और कहानीकार भालचंद्र जोशी के बीच के विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि साहित्य के मठाधीश दो खेमों में बंटे नजर आए। इंदौर में एक साहित्यिक जलसे में कथाकार और चित्रकार प्रभु जोशी के दिए भाषण का एक ऑडियो साहित्य प्रेमियों के बीच व्हाट्सएप पर जमकर साझा किया गया। इस ऑडियो में प्रभु जोशी भालचंद्र जोशी के लेखन को लेकर आक्रामक नजर आ रहे थे।
साहित्यिक पत्रिका सामयिक सरस्वती के अंक में प्रभु जोशी के उस ऑडियो का लिप्यांतरण छाप दिया और साथ में भालचंद्र जोशी की लंबी सफाई भी छापी गई तब विवाद और अधिक गहराया। प्रभु जोशी ने अपने भाषण में दावा किया कि जबतक भालचंद्र जोशी उनके साथ रहे तब तक उनकी कहानियों का पुनर्लेखन करते रहे। अपने दावों के समर्थन में अपने बेटे का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि - ‘मेरा बेटा कभी-कभी फोन करता और बाइचांस ये (भालचंद्र जोशी) होते तो उठा लेते थे तो वो चिढ़ता था कि ये आदमी... क्या फिर आपसे कहानी लिखवाने आ गया है। आप अपनी भाषा का क्लोन पैदा करना चाहते हो क्या पापा? जिस दिन आप लिखना शुरू करोगे तो लोग समझेंगे कि भालचंद्र जोशी की नकल कर रहा है।
‘प्रभु जोशी ने अपने भाषण में ये साबित करने के लिए कि वो भालचंद्र की कहानियों का पुनर्लेखन करते हैं, अपनी पत्नी से हुई बातचीत से लेकर बेटे को लिखे पत्रों का हवाला दिया। उन्होंने कई साहित्यकारों से हुई बातचीत का हवाला भी दिया और भालचंद्र को मूर्ख साबित करने की कोशिश करते हुए ये सलाह भी दे डाली कि वो खोखला जीवन जीना बंद करें। प्रभु जोशी ने भालचंद्र पर किए एहसानों की सूची भी गिनाई। प्रभु जोशी को अब लगता है कि उन्होंने भालचंद्र जोशी के लिए कहानियां लिखकर गलती कर दी। भालचंद्र उनसे ज्यादा मशहूर हो गया। लेकिन प्रभु जोशी ने जिस तरह से दूसरे साहित्यकारों का नाम लिया है उससे उनकी भी कुंठा उजागर होती है। अगर कुछ देर के लिए ये मान भी लिया जाए कि प्रभु जोशी उनकी कहानियों का क्लाइमेक्स बदल देते हैं या फिर कुछ बदलाव का सुझाव देते हैं तो इसमें गलत क्या है। उधर अपनी सफाई में भालचंद्र ने भी मर्यादा की सारी हदें पार कर दी।
भालचंद्र के अनुसार,‘शहर के इस असफल और भारत भवन के चित्रकारों की भाषा में प्राथमिक स्कूल के बच्चोंनुमा पेंटिंग करने वाले पेंटर और एक चुके हुए लेखक दोनों ने अपने सभी क्षेत्रों की असफलता और कुंठा की भड़ास मुझ पर निकाली। इस कुंठा, भड़ास और ईर्ष्या से लिपटी भाषा से निर्मित खुद की स्तरहीन छवि से उपस्थित श्रोताओं को हतप्रभ कर दिया। ‘इसके अलावा अपने लेख में भालचंद्र जोशी ने प्रभु जोशी पर अंधविश्वासी होने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कई प्रसंगों को उद्धृत कर प्रभु जोशी के दोहरे चरित्र को उजागर करने का उपक्रम भी किया है। परंतु लगभग हर विवाद की तरह इस विवाद की नींव भी पांच लाख रुपयों को लेकर पड़ी प्रतीत होती है जो प्रभु जोशी के लिए भालचंद्र जोशी ने जुटाए थे। इस तरह नितांत ही व्यक्तिगत छिछालेदारी के साथ यह विवाद भी 2016 का अशोभनीय प्रकरण बना।
5. अनिल और गगन के विवाद में कल्बे कबीर पर FIR
आमतौर पर लेखिका गगन गिल विवादों से दूर रहती हैं। निर्मल वर्मा की मृत्यु के बाद साहित्यक समारोहों आदि में भी कम ही नजर आती हैं। सभी जानते हैं कि किसी समय अनिल जनविजय और गगन गिल गहरे मित्र रहे हैं। लेकिन वह बहुत समय पहले की बात है। उनके रिश्तों में आई कड़वाहट इस तरह इतने सालों बाद उजागर होगी यह किसी ने नहीं सोचा था। दरअसल विवाद की जड़ में कल्बे कबीर अधिक हैं।
कल्बे कबीर ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा कि अनिल ने अपने भारत प्रवास के दौरान यह जिक्र किया कि गगन गिल के लिए अनिल कविताएं लिखकर प्रकाशित कराते थे। इस निजी बातचीत को कल्बे ने सार्वजनिक कर दिया और जब गगन तक यह बात पहुंची तो उसके बदले में उन्होंने Once a bastard, always a bastard. Yes, Anil? शीर्षक से बड़े ही कड़वे शब्दों में पत्र लिखा। दोनों तरफ से इतने वार और प्रतिकार हुए कि बाद में कल्बे यानी कृष्ण कल्पित के खिलाफ FIR भी दर्ज हुई। ना अनिल अपनी बात से पीछे हटे ना गगन। यहां तक कि अनिल अपने मित्र कृष्ण कल्पित के पक्ष में ही खड़े नजर आए लेकिन गगन का पत्र भी साहित्यिक दृष्टि से अनुचित ही कहा जाएगा।
अन्य : 2016 में ही युवा साहित्यकार समारोह भी चर्चित हुआ जिस में 40 से अधिक के कवि और साहित्यकार के शामिल हुए। इस समारोह का युवा साहित्यकारों में जमकर विरोध हुआ। साल के अंत तक आते-आते लेखिका नासिरा शर्मा को साहित्य अकादमी मिलने की घोषणा पर सांप्रदायिक रंग देते हुए विवाद खड़ा करने की चेष्टा की गई।