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Written By WD

साल 2014 में देश की 10 प्रमुख बीमारियां

साल 2014 में देश की 10 प्रमुख बीमारियां - Top 10 Disease in India 2014
वर्ष 2014 में देश में प्रमुख रूप से जिन 10 बीमारियों ने सबसे ज्यादा लोगों को चपेट में लिया उनमें 1. हृदय रोग, 2. डायबिटीज, 3.कैंसर, 4.एड्स, 5.टीबी, 6. मलेरिया, 7. डेंगू, 8.ऑस्टीयोपरोसिस, 9. डिप्रेशन, 10.मोटापा है। वर्ष 2014 में देश के नागरिकों की सेहत पर नजर डालें तो सर्वाधिक इन्हीं बीमारियों के शिकार पाए गए। हालांकि वैश्विक स्तर पर इबोला ने हर किसी को हैरान किया लेकिन देश में इस बीमारी का प्रकोप उस तरह नहीं दिखाई दिया जैसी आशंका थी। 


 
 
अच्छे स्वास्थ्य को धन से ज्यादा महत्वपूर्ण समझा जाता है। परंतु इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि विकासशील और अविकसित देशों में धन की कमी से बीमारियों का प्रकोप और भयावहता और अधिक बढ़ जाती है। साल दर साल इंसानी शरीर को घेरने वाली बीमारियों के प्रकोप में कभी कमी आती है तो कभी उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाता है। 
 
इसी प्रकार कुछ नवीन बीमारियां वैश्विक खतरा बनकर उभरती है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष 2014 में भी कुछ बीमारियों के प्रकोप ने भारत जैसे विकासशील देश को अपनी गिरफ्त में लिया। आइए जानते हैं 10 ऐसी बीमारियां, जो 2014 में भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनीं। 
 
1. हृदय रोग:  29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है।  हृदय रोग शरीर के एक अंग पर प्रभाव न डालते हुए एक पूरे सिस्टम जिसे कार्डियोवस्कुलर सिस्ट्म कहा जाता है(हृदय, रक्त कोशिकाएं,धमनियों,कोशिकाओं और नसों) को अपनी चपेट में लेती है। इस सिस्टम में उपजी किसी भी तरह की समस्या शरीर में रक्त के प्रवाह को बाधित कर देती है। 
 
हृदय रोग के लिए कुछ खास कारण जैसे उम्र,लिंग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, तंबाकु, धम्रपान, अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन, प्रोसेस्ड मीट, अत्यधिक शुगर का उपयोग, मोटापा, शारीरिक गतिविधियों में कमी, पारिवारिक पृष्ठभूमि, और वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना जाता है। उम्र,लिंग या पारिवारिक पृष्ठभूमि कुछ ऐसे कारण है जो प्राकृतिक है परंतु बाकी सभी कारण जीवन शैली में बदलाव और सामाजिक बदलाव द्वारा जनित माने जाते हैं। 
 
सीने में अजीब सी बेचैनी, चिंता, खांसी या सांस लेने में आवाज आना,हल्के सिरदर्द या बेहोशी, कमजोरी महसूस होना खासकर महिलाओं में, भूख न लगना और उलटी जैसा लगना, शरीर के दूसरे अंगो में दर्द होना,नाड़ी की गति बढ़ना या अनियमित हो जाना, अत्यधिक कम शारीरिक श्रम करने पर सांस भर जाना, ठंडा पसीना आना, पैरों या टांगों या पेट में सूजन आना, और बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना हृदय रोग के लक्षण हैं।  
 
भारत की कुल 1.27 मिलियन जनसंख्या में से 45 मिलियन लोग हृदय रोगों से ग्रसित हैं। हृदय रोगों में कॉरोनरी हार्ट डिसीज (CHD) सबसे अधिक व्यक्तियों को अपना शिकार बनाती है। साल 2020 के आने तक भारत में होने वाली कुल मौतों की एक तिहाई CHD की वजह से होंगी। साल 2030 तक भारत में 35.9 प्रतिशत लोगों की मौत की वजह हृदय रोग ही होंगे।   
 


 
 

2. डायबिटीज:  सन् 2014 में डायबिटीज या मधुमेह भी एक बड़ा रोग बनकर उभरा है। डायबिटीज के लिए दिवस माने हेतु पूरे विश्व में 14 नवंबर को चुना गया है। मधुमेह मेटाबॉलिक बीमारियों का एक समूह होता है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा की ज्यादा हो जाती है। डायबिटीज एक मेटाबॉलिक बीमारी है। डायबिटीज होने के दो कारणों में पेनक्रियाज द्वारा जरुरी मात्रा में इंसुलिन न बना पाना या शरीर में मौजूद सेल्स बनने वाले इंसुलिन का उपयोग करने में असमर्थ हो जाते हैं। डायबिटीज तीन प्रकार की होती है। 


 
1. Type-1 : इसमें शरीर में जरुरी मात्रा में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। इसका कारण अज्ञात है। 
 
2. Type-2 : इसमें पेनक्रियाज द्वारा इंसुलिन का उत्पादन सही मात्रा में किया जाता है लेकिन शरीर में मौजूद सेल्स इस इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाते। टाइप-2 डायबीटीज के लिए ज्यादा वजन और व्यायाम की कमी को प्रमुख कारण समझा जाता है।
 
3. गेस्टेशनल   : यह केवल गर्भवती महिलाओं में ही पाया जाता है जिसमें मधुमेह से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या या पारिवारिक पृष्ठभूमि के न होने पर भी रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। 
 
इसका सही उपचार न किए जाने पर मरीज कोमा में भी जा सकता है साथ ही साथ हृदय रोग, हार्ट अटैक, पैर में अल्सर और आंखों की रोशनी प्रभावित होना आदि लक्षण सामने आते हैं। टाइप-1 के मरीजों में बीमारी के लक्षण जैसे वजन कम हो जाना, ज्यादा बार पेशाब आना, प्यास ज्यादा लगना और भूख बढ़ जाना कुछ हफ्तों या महीनों में सामने आ जाते हैं वहीं दूसरी ओर टाइप-2 के लक्षण (आंखों में धुंधलापन,सिरदर्द, बेहोशी,चोट लगने पर ठीक होने में ज्यादा समय लगना और त्वचा में खिंचाव महसूस होना) काफी समय बीत जाने पर सामने आते हैं। इस बीमारी की रोकथाम और इलाज में पौष्टिक खानपान, व्यायाम, तंबाकु का सेवन न करना, रक्तचाप पर नियंत्रण शामिल है परंतु इसके सही इलाज इसके टाइप जानने के बाद ही संभव है। 
 
टाइप1 डायबिटीज के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं। टाइप-2 डायबिटीज का इलाज दवाईयों के उपयोग से संभव है और कभी-कभी इंसुलीन के इंजेक्शन की आवश्यकता भी पड़ सकती है। टाइप-2 के मरीजों में अधिक वजन काफी खतरनाक है और इनके इलाज में सर्जरी द्वारा वजन कम करना भी शामिल है। गेस्टशनल डायबिटीज में समस्या बच्चे के जन्म के बाद सामान्य तौर पर स्वतः ही खत्म हो जाती है।  
 
डायबिटीज भारत में महामारी का रुप ले रही है। यह बीमारी 62 मिलियन से ज्यादा लोगों में फैल चुकी है। साल 2030 तक भारत में 79.4 मिलियन लोग इस बीमारी का शिकार होंगे। भारत में ग्रामीण जनसंख्या में पाई जाने वाले मरीजों की संख्या में शहरी क्षेत्रों में होने वाले मरीजों की एक तिहाई है। बीते वर्ष डायबिटीज ने अपने बढ़ने के स्पष्ट और खतरनाक संकेत दिए हैं।  
 
 

3. कैंसर:  पूरे विश्व में 4 फरवरी को कैंसर दिवस के रुप में मनाया जाता है। कैंसर को मैलिग्नैंट ट्यूमर या मैलिग्नैंट नियोप्लाज्म के नामों से भी जाना जाता है। कैंसर कई बीमारियों का एक समूह होता है जिसमें शरीर में मौजूद सेल्स में असामान्य वृद्धि होने लगती है जो शरीर के अन्य अंगों में फैल जाती है। सभी ट्यूमर कैंसर ट्यूमर नहीं होते हैं। कैंसर 100 से ज्यादा प्रकार का होता है।  भारत में पुरुषों में ज्यादातर मामले मुख और फेफडों के होते हैं वही दूसरी ओर ज्यादातर कैंसर रोगी महिलाएं स्तन कैंसर और गर्भाशय कैंसर से ग्रसित होतीं हैं। 


 
शरीर के किसी हिस्से में उभार, असामान्य रक्त बहना, लंबे समय तक चलने वाली खांसी, अचानक वजन कम हो जाना और मल निकासी में बदलाव आना कैंसर के लक्षणों में शामिल हैं। कैंसर का सामान्य तौर पर अंदाजा कुछ लक्षणों से लगाया जा सकता है। इसके पता लगाने की प्रक्रिया में स्क्रीनिंग टेस्ट, मेडिकल इमेजिंग और बॉयोप्सी शामिल हैं।  
 
तंबाकु के सेवन को कैंसर से होने वाली करीब 22 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार समझा जाता है। अगली 10 प्रतिशत मौतों के लिए मोटापा कारण माना जाता है। इंफेक्शन, आयोनाइजिंग रेडिएशन, और पर्यावरण प्रदूषण से भी कैंसर होने का खतरा होता है। भारत जैसे विकासशील देश में करीब 20 प्रतिशत कैंसर के मामले इंफेक्शंस जैसे हेपेटाइटिस B,हेपेटाइटिस C,और इम्यून पैपिलोमा वायरस की वजह से होते हैं। फैमेली हिस्ट्री को करीब 5 से 10 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। 
 
एक सही जीवन शैली जिसमें नशा न करना, वजन पर नियंत्रण, शराब पर नियंत्रण, सब्जियों, फलों और साबून अनाज का भरपूर उपयोग, कुछ प्रकार के इंफेक्शंस के टीके लगवाकर और सूर्य की हानिकारक किरणों से अपना बचाव करके कैंसर के खतरों से बचा जा सकता है। 
 
कैंसर के इलाज में रेडिएशन थैरेपी, सर्जरी, कीमोथैरेपी और टारगेटेड थैरेपी शामिल है। पैलियेटिव (palliative) केअर एडंवास स्टेज में पहुंच चुके मरीजों के लिए महत्वपूर्ण होती है। कैंसर के मरीज के बचने की संभावना कैंसर के प्रकार पर निर्भर करती है। 
 
भारत में हर वर्ष कैंसर के लाखों नए मामले सामने आ जाते हैं। यह बीमारी भारत को अपनी गिरफ्त में लेती हुई प्रतीत होती है। विशेषज्ञों के अनुसार साल 2025 तक कैंसर के मामलों में 5 गुना तक वृद्धि दर्ज होने की संभावना है। भारत में हर साल करीब 5 लाख लोग कैंसर से मर जाते हैं। WHO के अनुसार यह संख्या साल 2015 में करीब 2 लाख मरीजों की वृद्धि दर्ज करेगी। 

4. HIV/AIDS (एच आई वी/ एड्स):  पूरे विश्व में 1 दिसंबर को एच आई वी/एड्स दिवस के रुप में मनाया जाता है। एच आई वी (ह्यूमन इम्यूनो डिफेशिएंसी वायरस) और एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफेशिएंसी सिंड्रोम) एक ही प्रकार के इंफेक्शन की दो अलग स्टेजेस हैं जिसमें शुरुआती स्टेज को एच आई वी और बाद की स्टेज को एड्स कहा जाता है। यह इंफेक्शन ह्यूमन इम्यूनो डिफेसिएंसी वायरस के द्वारा शरीर में प्रवेश करने के कारण होता है। 


 

 
शुरुआती दौर में इसके (एच आई वी)लक्षण इंफ्लूएंजा के समान होते हैं फिर काफी लंबे समय के लिए इसके किसी प्रकार के लक्षण सामने नहीं आते। समय के साथ जब इंफेक्शन बढ़ता है और इम्यून सिस्टम को प्रभावित करना शुरु कर देता है तो मरीज में टीबी, ऑपोरचुनिस्टीक इंफेक्शन और ट्यूमर के रुप में लक्षण सामने आते हैं। जिन मरीजों का इम्यून सिस्टम ताकतवर होता है वह इन लक्षणों से बचे रह जाते हैं और उनमें सीधे एड्स के लक्षण जैसे फेफड़ों में इंफेक्शन, बहुत तेजी से वजन गिरना, और कैंसर का एक प्रकार Kaposi's Sarcoma उभरकर आते हैं। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। 
 
असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त चढ़ना, संक्रमित सुईयों से इंजेक्शन लगने से और एचआईवी मां से बच्चे में गर्भावस्था में और बाद में स्तनपान के दौरान यह वायरस फैलता है। 
 
एचआईवी को सुरक्षित यौन संबंध अपनाकर, नई सुई का इस्तेमाल जैसी सावधानी रखकर इससे बचा जा सकता है। 
 
एच आई वी के रोगी को एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट दिया जाता है। इस इलाज से बीमारी का असर कम हो जाता है और रोगी सामान्य जीवन जी सकता है। यह इलाज बहुत महंगा होता है और इसके साइड इफेक्ट भी बहुत अधिक हैं। एच आई वी के कुछ उप-प्रकार ऐसे होते हैं जिनके मरीज बिना इलाज के भी 9 से 11 साल तक जीवित रह सकते हैं। 
 
भारत में एच आई वी के 7 लाख से ज्यादा रोगी एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी पर हैं। भारत एच आई वी के रोगियों की संख्या में विश्व में तीसरे नंबर पर आता है। भारत में 2 मिलियन से भी ज्यादा एच आई वी के रोगी हैं हांलाकि एच आई वी के मामलों में 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।  
 
 

5. टीबी:  ट्यूबर क्यूलोसिस, एम टी बी या टीबी बीमारी के खतरों के खिलाफ जागरुकता लाने के लिए 24 मार्च को चुना गया है। यह एक व्यापक पैमाने पर फैली हुई बीमारी है और बहुत सारे मामलों में मायकोबेक्टेरिया के द्वारा फैलाया गया इंफेक्शन होती है। यह खासतौर पर फेफडूों की बीमारी है परंतु शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है। इस बीमारी के इंफेक्शन हवा के द्वारा मरीजों के खांसी या छींकने से फैलते हैं। ज्यादातर टीबी के इंफेक्शन के किसी प्रकार के लक्षण नहीं होते जिन्हें लेटेंट इंफेक्शन कहा जाता है। करीब दस में से एक इंफेक्शन इस बीमारी में तब्दील होता है और अगर इलाज न लिया जाए तो टीबी के मरीजों की कुल संख्या में से 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की मौत इसी वजह से होती है। 
 

 
लंबे समय तक रहने वाली खांसी इसका खास लक्षण है। इसके अलावा बुखार, रातों में पसीना और वजन में कमी आना इसके अन्य लक्षण हैं। इसके अलावा अगर यह इंफेक्शन शरीर के अन्य हिस्सों में प्रवेश कर जाता है तो लक्षण अलग रुप में सामने आते हैं। इसका पता लगाने के लिए सीने का एक्स रे लिया जाता है और सूक्ष्मदर्शी के द्वारा और शरीर के फ्लूड जैसे की कफ की प्रयोगशाला में जांच के द्वारा भी इसके शरीर में होने के विषय में पता चलता है। 
 
इस बीमारी का इलाज कठिन होता है और इसमें कई प्रकार के एंटीबॉयोटिक्स के द्वारा इलाज दिया जाता है। इसका इलाज लंबे समय तक लेना होता है साथ ही साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी सावधानी रखना होती है। 
 
भारत में करीब 2 से 3 मिलियन लोग टीबी के मरीज हैं। यह भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में से एक है। वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाईजेशन के अनुसार भारत में टीबी सबसे बड़ी महामारी है। यहां करीब 40 प्रतिशत लोग टीबी बैक्टीरिया से इंफेक्टेड हैं जिनमें से ज्यादातर लोगों में यह टीबी की सक्रिय बीमारी में तब्दील नहीं होता। 
 
 

6. मलेरिया:  25 अप्रैल सारे विश्व में मलेरिया दिवस के रुप में मनाया जाता है। मलेरिया मच्छरों में उत्पन्न होने वाला और उनके द्वारा फैलने वाला इंफेक्शन है जो इंसानों और कुछ जानवरों में प्रोटोजोंस (एक प्रकार का सिंगल सेल वाले माइक्रोऑरगेनिज्म)के द्वारा फैलता है। सामान्यतौर पर मलेरिया मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने की वजह से फैलता है। इनकी लार में मलेरिया का परजीवी प्रोटोजोंस इंसान के रक्त में प्रवेश करता है और लीवर तक पहुंच जाता है जहां यह विकसित होकर प्रजनन करता है। भारत में इसे महामारी का दर्जा दिया गया है। 


 
मलेरिया के लक्षणों में बुखार,अत्यधिक कमजोरी, उल्टी आना, और सिर में दर्द शामिल हैं। मलेरिया के गंभीर स्टेज पर पहुंच चुके मरीजों की त्वचा पीली पड़ जाने के अलावा, दिमाग में हल्के झटके, चीजों को याद करने में परेशानी, मरीज कोमा में चले जाते है और मौत हो जाती है। गर्भवती महिलाओं में मलेरिया के गंभीर परिणाम सामने आते हैं। इससे एनीमिया यानी खून की कमी,बच्चा गिर जाना, बच्चे के कम वजन का पैदा होना, मरे हुए बच्चे का पैदा होना और गर्भवती महिला की मौत भी हो सकती है। 
  
मलेरिया के लक्षण मच्छर के काटने के 10 से 15 दिन के बाद सामने आते हैं। जिन मामलों में इलाज सही तरीके से नही लिया जाता है, मलेरिया के लक्षण महीनों बाद फिर सामने आ जाते हैं। 
 
मलेरिया से बचने के उपायों में मच्छर के कटने से बचने के उपाय शामिल हैं। इसके इलाज में एंटीमलेरिया दवाईयां दी जाती हैं। ज्यादा छोटे बच्चों को सल्फाडोजाइन या पायरिमेथामाइन नाम की दवाईयां कभी-कभी दी जाती हैं। अत्यधिक जरुरत के बावजूद इसका टीका इजाद नहीं किया जा सका है। 
 
भारत में हर साल मलेरिया के करीब 2 मिलियन मामले सामने आते हैं जिनमें से करीब 1,000 मरीजों की इस इंफेक्शन के मौत हो जाती है।  
 
 

7. डेंगू:  डेंगू के लिए वर्ल्ड स्तर पर जागरुकता लाने के लिए कोई दिवस नहीं मनाया जाता परंतु समस्त एशिया में 15 जून को डेंगू दिवस के रुप में मनाया जाता है। डेंगू जिसे बैकबोन फीवर के नाम से भी जाना जाता है, मच्छर में पैदा होने वाला एक रोग है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। इसे फैलाने का कार्य ऐडीज मच्छर की विभिन्न प्रजातियों के द्वारा किया जाता है। 
 

 
इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द के अलावा त्वचा में लाल रंग के रेशेज होना शामिल हैं। कुछ मामलों में यह घातक डेंगू रक्तस्त्रावी बुखार में तब्दील हो जाता है जिससे खून बहना, खून में ब्लड प्लेटेलेट्स के स्तर में कमी आना, ब्लड प्लाज्मा में रिसाव और डेंगू शॉक सिंड्रोम जिसमें रक्तचाप बहुत कम हो जाने जैसे लक्षण सामने आते हैं। 
 
इस बीमारी के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है और मच्छर के काटने से बचना इसके प्रकोप से बचने के उपायों में शामिल है। डेंगू के शुरुआती स्तर पर नमक, चीनी के घोल को पीना या अन्य किसी तरीके से शरीर में पहुंचाना शामिल है। डेंगू के गंभीर मामलों में तरल पदार्थो और खून की बोतल चढ़ना शामिल है।  
 
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल डेंगू के 20,500 मामले सामने आते हैं परंतु एक रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से 300 गुना अधिक है। इस रिपोर्ट के हिसाब से भारत में हर साल करीब 5.8 मिलियन लोग डेंगू की गिरफ्त में होते हैं। भारत में विश्व के अन्य किसी देश के मुकाबले डेंगू के सबसे ज्यादा मरीज होते हैं। 
 
 

8. ऑस्टियोपरोसिस : सारे विश्व में 20 अक्टूबर को ऑस्टियोपरोसिस के विषय में जागरुकता लाने के दिवस के रुप में चुना गया है। यह शरीर में हड्डियों को लंबे समय में क्षय करने वाला रोग है। इस रोग में मेडिकल भाषा में कही जाने वाली बोन मास और डेंसिटी में कमी आ जाती है। इसमें हड्डियों में होने वाले प्रोटीन की मात्रा में भी बदलाव आ जाता है जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। 


 
इस रोग के मरीज में फ्रेक्चर होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस रोग के प्राथमिक टाइप 1 और प्राथमिक टाइप 2  प्रकार होते हैं। महिलाओं में मासिक धर्म खत्म हो जाने के बाद होने वाले ऑस्टियोपरोसिस को प्राइमरी टाइप 1 और मासिक धर्म होने वाली उम्र में होने वाले ऑस्टियोपरोसिस को प्राइमरी टाइप 2 माना गया है। इस रोग का तीसरा रुप जिसे सेनाइल ऑस्टियोपरोसिस कहते हैं 75 साल से अधिक उम्र वाले लोगों में उत्पन्न होता है। सेकेंडरी ऑस्टियोपरोसिस किसी भी उम्र के व्यक्तियों को हो सकता है। यह लंबे समय तक के लिए शरीर को घेरने वाली बीमारी के चलते या लंबे समय तक किसी रोग के लिए दवाईयां लेने के कारण होती है। 
 
ऑस्टियोपरोसिस से बचने के उपायों में जीवन शैली में बदलाव लाना खास है। खानपान सुधारना, व्यायाम करना और एक्सीडेंट्स से बचना शामिल है। अमेरिकन संस्था (USPSTF) इस रोग में केल्शियम और विटामिन डी के डोज को निष्प्रभावी मानती है। ऐसे मामले जिनमें मरीज को इस बीमारी की वजह से पहले फ्रेक्चर हो चुका हो, उनमें Bisphosphonates दिए जाते हैं परंतु यह ऑस्टीयोपरोसिस के उन रोगियों पर निष्प्रभावी है जिनको पहले इस रोग की वजह से फ्रेक्चर न हुआ हो। 
 
भारत में 50 मिलियन से ज्यादा लोग या तो ऑस्टियोपरोसिस से ग्रसित हैं या उनका बोन मास निचले स्तर तक पहुंच चुका है। आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों की 30 साल से 60 साल उम्र वाली महिलाओं में शरीर में मौजूद हर हिस्से की हड्डियों में बोन मिनेरल डेंसिटी (Bone Mineral Density) BMD विकसित देशों की इसी उम्र की महिलाओं की तुलना में अत्यधिक निचले स्तर पर पाया गया।  
 
 

9. डिप्रेशन: अवसाद या डिप्रेशन मानसिक स्थिति में बदलाव होता है जिससे व्यक्ति की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। इसमें रोगी के विचार, व्यवहार, भावनाओं और चीजों को देखने के नजरिए पर प्रभाव पड़ता है। यह रोग मानसिक रोग का एक प्रकार है परंतु कुछ मामलों में यह एक सामान्य भावनात्मक प्रदर्शन भी हो सकता है जब किसी व्यक्ति को किसी प्रकार के दुख से गुजरना होता है या किसी प्रकार की दवाईयों के साइड इफेक्ट से भी डिप्रेशन जैसे लक्षण सामने आते है। 


 
अवसाद के रोगी में चिंता, खालीपन, निराशा, मजबूरी, नाकाबिल होने का एहसास, खुद को दोषी समझना, चिड़चिड़ापन और अशांति जैसे लक्षण उभर आते हैं। रोगी को ऐसे कामों में भी अरुचि उत्पन्न हो जाती है जो कभी उन्हें बहुत पसंद थे। भूख में कमी आना या जरुरत से ज्यादा खाना, ध्यान भटकना, चीजों का याद करने में परेशानी, आत्महत्या की कोशिश करना या करने की इच्छा होना, निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाना, नींद न आना या बहुत ज्यादा सोना, उल्टी आना, पाचन संबंधी समस्या उत्पन्न होना और काम करने की इच्छा खत्म हो जाने जैसे लक्षण उभरते हैं। 
 
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हिसाब से सिर्फ 2012 में ही 1,35,445 लोगों ने देश में आत्महत्या की। 
 
WHO के अनुसार भारत में हर व्यक्ति के जीवनकाल में अवसाद ग्रस्त होने की 9 प्रतिशत संभावना होती है। साल 2020 के आने तक होने वाली कुल मौतों के लिए जिम्मेदार कारणों में अवसाद दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा। भारतीयों में अवसाद की गिरफ्त में आने वाले मरीज ज्यादातर 30 साल पार कर चुके होते हैं। 

 

10. मोटापा : मोटापा या ऑबेसिटी एक मेडिकल स्टेज होती है जिसमें वजन इस हद तक बढ़ जाता है कि शरीर में विभिन्न रोगों का जन्म होने लगता है। व्यक्ति के जीवनकाल में कमी आ जाती है। मोटापे की वजह से कई तरह की बीमारियां जैसे हार्ट अटैक, टाइप 2 डायबिटीज, ऑब्स्ट्रेक्टिव स्लीप, कुछ प्रकार के कैंसर और ऑस्ट‍ियो ऑर्थराइटिस होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। 

मोटापा जरुरत से ज्यादा खाने से, व्यायाम की कमी से, दवाईयों के साइड इफेक़्ट से, हार्मोस में बदलाव से, मानसिक रोग से या फैमेली  हिस्ट्री की वजह से होता है। 
 
डाइटिंग और व्यायाम इसके खास उपाय हैं। खानपान में बदलाव करके जैसे मोटापा बढ़ाने वाले भोजन के बजाय स्वास्थ्य वर्धक पदार्थों को भोजन में शामिल करके इससे मुक्ति पाई जा सकती है। मोटापा कम करने के लिए भूख कम करने वाली दवाइयों का भी सेवन किया जाता है।  
 
भारत में मोटापा महामारी के स्तर तक पहुंच चुका है और करीब 5 प्रतिशत जनसंख्या इससे ग्रसित है। भारत विश्व में मोटापे की समस्या वाले देशों में तीसरे नंबर पर आता है। भारत में करीब 30 मिलियन लोग इस समस्या से ग्रसित हैं।