Last Modified: नई दिल्ली ,
सोमवार, 26 दिसंबर 2011 (17:27 IST)
वर्ष 2011 में छोटी इकाइयों रही परेशान
देश की करीब ढाई करोड़ सूक्ष्म एवं लघु इकाईयों को वर्ष 2011 के दौरान एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लगातार बढ़ती ब्याज दरें, कच्चे माल की बढ़ती लागत के साथ साथ घरेलू और विदेशी बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा से भी मुकाबला करने पड़ा।
सूक्ष्म, लघु एवं मझौली उद्यम इकाईयां यानी एमएसएमई का देश के औद्योगिक उत्पादन में बड़ा योगदान है। कारखानों के उत्पादन यानी विनिर्माण क्षेत्र में 45 फीसदी, निर्यात में 40 फीसदी योगदान एमएसएमई क्षेत्र का है।
एमएसएमई क्षेत्र परिधान, चमड़ा, रत्न व जेवरात, हल्के इंजीनियिरिंग और हस्तशिल्प खंड में करीब छह करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है, लेकिन पूरे साल उद्योग को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और बीते महीनों में हालात और खराब हुए।
ऊंची ब्याज दर, कच्चे माल की बढ़ती कीमत और श्रम प्रमुख चुनौती बने रहे। इन कंपनियों ने जब अपने उत्पादों को बाजार में पेश किया तो इन्हें घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों में मांग की कमी और कड़ी प्रतिस्पर्धा से मुकाबला करना पड़ा।
चीन की आक्रामकता के बीच भारत को अप्रैल से जुलाई के दौरान 12.6 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ जिसके कारण उनकी चिंता और बढ़ी।
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एच पी कुमार ने कहा कि चीनी आयात से बढ़ती प्रतिस्पर्धा चिंता का विषय रही। इस क्षेत्र को चीन से होने वाले सस्ते आयात के कारण बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा। इसके अलावा यूरोप और पश्चिमी देशों में नरमी सबसे बड़ी चुनौती और खतरा बना रहा।
कुमार ने कहा कि जहां तक ब्याज दर की बात है तो भारतीय एमएसएमई नुकसान की स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि हम अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं। 13 से 15 फीसदी की ब्याज दर ने हमारी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित किया है जबकि अन्य देशों में यह छह से आठ फीसदी है। एमएसएमई क्षेत्र के उपक्रमों का बंद होना जारी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2011 तक 91,400 छोटी इकाइयों ने अपना परिचालन बंद किया जबकि 13,000 इकाइयां 2010-11 में जुड़ीं।
इन इकाइयों के बंद होने की वजह वित्तीय मुश्किलें थीं। बदलते कारोबारी माहौल, मांग में कमी, बेकार हो चुकी प्रौद्योगिकी, कच्चे माल की उपलब्धता में कमी, बुनियादी ढांचे की दिक्कत, अपर्याप्त व देर से मिला ऋण और प्रबंधकीय दिक्कतों के कारण ये इकाइयां बंद हुईं।
सरकार ने इस क्षेत्र की मदद करने की कोशिश की, लेकिन इसे पहुंचने में थोड़ा वक्त लगेगा। नीति के क्षेत्र में मंत्रिमंडल ने एमएसएमई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति को मंजूरी दी। इसके तहत केंद्रीय मंत्रालयों, विभाग उपक्रमों में ठेकों और कुल खरीद का 20 फीसदी हिस्सा सूक्ष्म और छोटे उपक्रमों के लिए सुरक्षित किया गया। इस 20 फीसदी में से चार फीसद हिस्सा अनुसूचित जाति-जनजाति की इकाइयों के लिए आरक्षित किया गया।
भारतीय लघु एवं मध्यम उपक्रम परिसंघ के अध्यक्ष वी के अग्रवाल ने कहा कि ब्याज की लागत बढ़कर 50 फीसदी हो गई। मांग में कमी के कारण एमएसएमई प्रभावित हुआ। (भाषा)