गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. आजादी का अमृत महोत्सव
  3. कल, आज, कल
  4. Inflation and crime increased, harmony destroyed in politics: Satyanarayan Sattan
Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

गोलियों के अनुपात में बढ़ गई महंगाई और गुंडई, राजनीति से सद्‍भाव नष्ट हुआ

कवि सत्यनारायण सत्तन से वेबदुनिया की खास बातचीत

गोलियों के अनुपात में बढ़ गई महंगाई और गुंडई, राजनीति से सद्‍भाव नष्ट हुआ - Inflation and crime increased, harmony destroyed in politics: Satyanarayan Sattan
1948 में बापू के सीने में 3 गोलियां मारी गई थीं, 84 आते-आते इन गोलियों की संख्‍या बढ़कर 18 हो गई। जिस अनुपात में गोलियों की संख्‍या बढ़ी, उसी अनुपात में महंगाई और गुंडई भी बढ़ी। राजनीति भी समय के साथ दूषित होती गई। आज देश में हिन्दू और मुसलमान तो दिखते हैं, लेकिन हिन्दुस्तानी कहीं दिखाई नहीं देता। राजनीति पद और प्रभुता प्राप्ति का जरिया बन गई है। राजनीति में सद्‍भाव समाप्त हो गया है और दलबदल संस्कार बन गया है। 
स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में वेबदुनिया से बातचीत करते हुए राष्ट्रीय कवि सत्तयनारायण सत्तन बड़े ही बेबाक अंदाज में कहा कि 15 अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता से‍नानियों के बलिदान और प्रयासों से हमें आजादी मिली। 5 महीने ही आजादी को बीते थे कि 30 जनवरी 1948 में पूज्य बापू के सीने में 3 गोलियां दाग दी गईं। 1984 में इन गोलियों की संख्‍या बढ़कर 18 हो गई, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। देश में एक और गांधी (राजीव) की हत्या हुई। 48 से 84 के बीच जिस अनुपात में गोलियों की संख्‍या बढ़ी, उसी अनुपात में देश में महंगाई और गुंडई भी बढ़ी। धीरे-धीरे राजनीति भी दूषित होती चली गई।
नेहरू की योग्यता पर सवाल नहीं : सत्तनजी ने कहा कि महात्मा गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया। पंडित नेहरू की योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। प्रधानमंत्री पद की शपथ के बाद उन्होंने प्रजातंत्र की नींव को रखा। तमाम समस्याओं के बावजूद नेहरू ने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया। गरीबी मिटाओ आंदोलन, हरित क्रांति, दुग्ध क्रांति पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई। हालांकि एक समय बाद कांग्रेस की राजनीति में भी गिरावट आ गई। 
 
राजनीति पद और प्रभुता प्राप्ति का जरिया बनी : कवि सत्तन कहते चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो राजनीति पद और प्रभुता प्राप्ति का जरिया बन गई। इसी के साथ आलोचनाओं और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी शुरू हुई। समय के साथ कांग्रेस की विश्वसनीयता कम होने लगी। कांग्रेस बंटी, जनसंघ समेत अन्य दल अस्तित्व में आए। श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कहा- कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। दो प्रधान, दो विधान और दो निशान नहीं चलेंगे, इसको लेकर आंदोलन खड़ा हुआ। गोहत्या के विरुद्ध और 370 हटाने को लेकर यात्रा आरंभ हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान हुआ। इंदिराजी ने आपातकाल घोषित किया। लोगों में जेलों में ठूंस दिया गया। इसके बाद देश में नेताओं की भरमार हो गई। 
 
राजनीति के तेवर बदले : समय बदला भाजपा का गठन हुआ। अटल बिहारी वाजपेयीजी के नेतृत्व में महान अधिवेशन हुए। देश के लोगों ने भाजपा के प्रति विश्वास प्रकट किया। फिर भारतीय राजनीति के तेवर बदले। नरेन्द्र मोदी केन्द्र में सत्तारूढ़ हुए। इस दौर में देश एक बार फिर बंटा। देश दो वर्गों में बंट गया। देश में हिन्दू और मुसलमान तो दिखाई देते हैं, लेकिन हिन्दुस्तानी नहीं दिखाई देते। देश में अधर्म को प्रोत्साहत मिला। देश में धर्म के नाम राजनीति होने लगी। एक दूसरे के धर्मों पर छींटाकशी होने लगी। वंदे मातरम को गाकर मुसलमान आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे, आज वही मुस्लिम कहते हैं कि यह हमारे धर्म के विरुद्ध है। राजनीति का यही तेवर सर्वे भवन्तु सुखिन: ... के भाव को खंडित करता है। 
दलबदल संस्कार बना : एक वक्त था जब गांधीजी के पांव जिधर मुड़ जाते थे, उनके पीछे हजारों लोग चल पड़ते थे। आज राजनीति में दलबदल संस्कार बन गया है। मध्यप्रदेश इसका उदाहरण है। कांग्रेस के एक बड़े नेता 28 साथियों के साथ भाजपा में आ गए और चुनी हुई सरकार गिर गई। महाराष्ट्र का उदाहरण ताजा है, जहां जोड़तोड़ कर सत्ता परिवर्तन हुआ। अब कुछ और राज्यों में इस तरह की प्रक्रिया शुरू हो गई। दरअसल, तोड़फोड़ की राजनीति, राजनीति का वास्तविक स्वरूप नहीं है।
 
राजनीति में नष्ट हुआ सद्‍भाव : कवि सत्तन कहते हैं कि आज के दौर में राजनीति में सद्‍भाव नष्ट हो गया। एक दल दूसरे दल को विरोधी के रूप में देखता है, प्रतिपक्ष के रूप में नहीं। एक वह समय भी था जब पंडित नेहरू ने भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सद्‍गुणों की सराहना की थी। इस तरह की बातें आज के दौर में नहीं के बराबर हैं।

उस समय रामधारी सिंह दिनकर, मैथिली शरण गुप्त जैसे लोगों को राज्यसभा में भेजा गया था। वहीं, आज पार्टी प्रवक्ताओं को राज्यसभा में भेजकर उपकृत किया जाता है। कांग्रेस मुक्त भारत की बात पर सत्तन कहते हैं कि मैं इस विचार से कतई सहमत नहीं हूं। जब विरोध ही नहीं रहेगा तो प्रजातंत्र कहां रहेगा। राष्ट्रहित में सबको एक होना चाहिए। 
साहित्य जोड़ता है : कवि सत्तन कहते हैं कि साहित्य बराबर चेतना देता है। समाज को जोड़ता है। आज आटा, दाल, नमक, तेल आदि पर जीएसटी लगाने की बात होती है। ऐसे लोगों को ललकारने के लिए साहित्य तैयार है। कविता अलगाव पर चोट करती है। कविता हमें एकात्म मानववाद की ओर ले जाती है। जहां तक शिक्षा की बात है तो वह कभी दूषित नहीं होती, उसके पैटर्न परसवाल उठाया जा सकता है। देश की नई शिक्षा नीति व्यवसायोन्मुखी है। 
ये भी पढ़ें
नीतीश कुमार ने 22 साल में 8वीं बार ली मुख्‍यमंत्री पद की शपथ, तेजस्वी बने डिप्टी सीएम (Live Updates)