पहलवानी करते गाने लगे आजादी के तराने, आज गुमनाम हैं 102 वर्ष के भोजपुरी गायक जंगबहादुर सिंह
- वेबदुनिया के लिए बिहार से मनोज भावुक
आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है और देश भक्तों में जोश भरने वाले अपने समय के नामी भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह को कोई पूछने वाला नहीं हैं। बिहार में सिवान जिला के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के रहने वाले तथा रामायण, भैरवी व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह साठ के दशक का ख्याति प्राप्त नाम है।
लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रौशन करने वाले व्यास शैली के बेजोड़ लोकगायक जंगबहादुर सिंह आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं। भोजपुरी के विकास का दंभ भरने वाली व खेसारी, पवन, कल्पना आदि को पानी पी-पीकर गरियाने वाली तथाकथित संस्थाएं भी इस महान कलाकार को याद करना मुनासिब नहीं समझती सरकारी प्रोत्साहन तो दूर की बात है।
बगैर माइक कोसों दूर जाती थी आवाज
10 दिसंबर 1920 ई. को सिवान, बिहार में जन्में जंगबहादुर पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी के व्यास शैली में गायन कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिला व राज्य का मान बढ़ाया था। जंग बहादुर के गायन की विशेषता यह रही कि बिना माइक के ही कोसों दूर उनकी आवाज जाती थी। आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था, मानो उनकी जुबां व गले में सरस्वती आकर बैठ जाती हों। खासकर भोर में गाये जाने वाले भैरवी गायन में उनका सानी नहीं था। प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहने वाले व स्वांतः सुखाय गायन करने वाले इस महान गायक को अपने ही भोजपुरिया समाज ने भुला दिया है।
पहले कुश्ती के दंगल के पहलवान थे जंग बहादुर
जंग बहादुर सिंह पहले पहलवान थे। बड़े-बड़े नामी पहलवानों से उनकी कुश्तियां होती थीं। छोटे कद के इस चीते-सी फुर्ती वाले व कुश्ती के दांव-पेंच में माहिर पहलवान की नौकरी ही लगी पहलवानी पर। 22-23 की उम्र में अपने छोटे भाई मजदूर नेता रामदेव सिंह के पास कोलफ़ील्ड, शिवपुर कोइलरी, झरिया, धनबाद में आए थे जंग बहादुर। वहां कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन कुंतल के एक बंगाल की ओर से लड़ने वाले पहलवान को पटक दिया। फिर तो शेर-ए-बिहार हो गए जंग बहादुर। तमाम दंगलों में कुश्ती लड़े, लेकिन उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी कि वह संगीत के दंगल में उतरे और उस्ताद बन गए।
फिर संगीत के दंगल के योद्धा बने जंग बहादुर
दूगोला के एक कार्यक्रम में तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे। दर्शक के रूप में बैठे पहलवान जंग बहादुर सिंह ने इसका विरोध किया और कालांतर में इन तीनों लोगों को गायिकी में हराया भी। उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद्द पकड़ ली। धुन के पक्के और बजरंग बली के भक्त जंग बहादुर का सरस्वती ने भी साथ दिया। रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों आजाद, भगत, सुभाष, हमीद, गांधी आदि को गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए जंग बहादुर सिंह। तब ऐसा दौर था कि जिस कार्यक्रम में नहीं भी जाते थे जंग बहादुर, वहां के आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर इनकी तस्वीर लगाते थे। पहलवानी का जोर पूरी तरह से संगीत में उतर गया था और कुश्ती का चैंपियन भोजपुरी लोक संगीत का चैंपियन बन गया था। अस्सी के दशक के सुप्रसिद्ध लोक गायक मुन्ना सिंह व्यास व उसके बाद के लोकप्रिय लोक गायक भरत शर्मा व्यास तब जवान थे, उसी इलाके में रहते थे और इन लोगों ने जंग बहादुर सिंह व्यास का जलवा देखा था।
देश और देशभक्तों के लिए गाते थे जंग बहादुर सिंह
चारों तरफ आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था। युवा जंग बहादुर देश भक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देश भक्ति के गीत गाने लगे। 1942-47 तक आजादी के तराने गाने के ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार भी हुए और जेल भी गए। पर जंग बहादुर रुकने वाले कहां थे।
जंग में भारत की जीत हुई। भारत आजाद हुआ। आजादी के बाद भी जंग बहादुर गांधी, सुभाष, आजाद, कुंवर सिंह, महाराणा प्रताप की वीर गाथा ही ज्यादा गाते थे और धीरे-धीरे वह लोक धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे। साठ के दशक में जंग बहादुर का सितारा बुलंदी पर था। भोजपुरी देश भक्ति गीत माने जंग बहादुर। भैरवी माने जंग बहादुर। रामायण और महाभारत के पात्रों की गाथा माने जंग बहादुर।
लेकिन अब उस शोहरत पर समय के धूल की परत चढ़ गई है। आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं पर जंग बहादुर किसी को याद नहीं हैं। देशभक्ति के तराने गाने वाले इस क्रांतिकारी गायक को नौकरशाही ने आज तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया। हांलाकि इस बात का उल्लेख उनके समकालीन गायक समय-समय पर करते रहे कि जंग बहादुर को उनके क्रांतिकारी गायन की वजह से अंग्रेज़ी शासन ने गिरफ्तार कर जेल भेजा फिर भी उन्हें जेल भेजे जाने का रिकॉर्ड आजाद हिंदुस्तान की नौकरशाही को नहीं मिल पाया। मस्तमौला जंग बहादुर कभी इस चक्कर में भी नहीं रहे।
समय हो तो जाइए 102 वर्ष के इस वयोवृद्ध गायक के पास बैठिए। हार्ट पैसेंट हैं। डॉक्टर से गाने की मनाही है, फिर भी आपको लगातार चार घंटे तक सिर्फ देश भक्ति गीत सुना सकते हैं जंग बहादुर सिंह। आज भी भोर में घास की रोटी खाई वतन के लिए/ शान से मोंछ टेढ़ी घुमाते रहे ..हम झुका देम दिल्ली के सुल्तान के/ .. गांधी खद्दर के बान्ह के पगरिया, ससुरिया चलले ना.. सरीखे गीत गुनगुनाते हुए अपने दुआर पर टहलते हुए मिल जाएंगे जंग बहादुर सिंह। इनकी बुदबुदाहट या बड़बड़ाहट में भी देश भक्त और देश भक्ति के गीत होते हैं।
अपनी गाय को निहारते हुए अक्सर गुनगुनाते हैं जंग बहादुर सिंह –
हमनी का हईं भोजपुरिया ए भाई जी गइया चराइले, दही-दूध खाइले कान्हवा प धई के लउरिया ए भाई जी .. आखड़ा में जाइले, मेहनत बनाइले कान्हवा प मली-मली धुरिया ए भाई जी ..
लुप्त होती स्मृति में तन्हा जंग बहादुर सिंह
लुप्त होती स्मृति में तन्हा जंग बहादुर सिंह अब भटभटाने लगे हैं। अपने छोटे भाई हिंडाल्को के मजदूर नेता रामदेव सिंह की मृत्यु (14 अप्रैल 2022 ) के बाद और अकेले पड़ गए हैं। वह अकेले में कुछ खोजते रहते हैं। कुछ सोचते रहते हैं। फिर अचानक संगीतमय हो जाते हैं। देशभक्ति गीत गाते-गाते निर्गुण गाने लगते हैं। वीर अब्दुल हामिद व सुभाष चंद्र बोस की गाथा गाते-गाते गाने लगते हैं कि जाए के अकेल बा, झमेल कवना काम के विलक्षण प्रतिभा के धनी जंग बहादुर ने गायन सीखा नहीं, प्रयोग और अनुभव से खुद को तराशा। अपने एक मात्र उपलब्ध साक्षात्कार में जंग बहादुर ने बताया कि उन्हें गाने-बजाने से इस कदर प्रेम हुआ कि बड़े-बड़े कवित्त, बड़ी-बड़ी गाथाएं और रामायण-महाभारत तक कंठस्थ हो गया। वह कहते हैं, प्रेम पनप जाए तो लक्ष्य असंभव नहीं। लक्ष्य तक वह पहुंचे, खूब नाम कमाए। शोहरत-सम्मान ऐसा मिला कि भोजपुरी लोक संगीत के दो बड़े सितारे मुन्ना सिंह व्यास और भरत शर्मा व्यास उनकी तारीफ करते नहीं थकते। पर अफसोस कि तब कुछ भी रिकार्ड नहीं हुआ। रिकार्ड नहीं हो तो कहानी बिखर जाती है। अब तो जंग बहादुर सिंह की स्मृति बिखर रही है, वह खुद भी बिखर रहे हैं, 102 की उम्र हो गई। जीवन के अंतिम छोर पर खड़े इस अनसंग हीरो को उसके हिस्से का हक़ और सम्मान मिले।
लोक गायक जंग बहादुर सिंह को पद्मश्री मिलना चाहिए
एक समय था, जब बाबू जंग बहादुर सिंह की तूती बोलती थी। उनके सामने कोई गायक नहीं था। वह एक साथ तीन-तीन गायकों से दूगोला की प्रतियोगिता रखते थे। झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और पंद्रह-बीस वर्षों तक एक क्षत्र राज्य था। उन के साथ के करीब-करीब सभी गायक दुनिया छोड़कर चले गये। खुशी की बात है कि वह 102 वर्ष की उम्र में भी टाइट हैं। भोजपुरी की संस्थाएं तो खुद चमकने-चमकाने में लगी हैं। सरकार का भी ध्यान नहीं है। मैं तो यही कहूंगा कि ऐसी प्रतिभा को पद्मश्री देकर सम्मानित किया जाना चाहिए। – मुन्ना सिंह व्यास, सुप्रसिद्ध लोक गायक
सरकारी स्तर पर मिले सम्मान
जंग बहादुर सिंह का उस जमाने में नाम लिया जाता था, गायको में। मुझसे बहुत सीनियर हैं। मैं कलकता से उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आ जाता था। कई बार उनके साथ बैठकी भी हुई है। भैरवी गायन में तो उनका जबाब नहीं है। इतनी ऊंची तान, अलाप और स्वर की मृदुलता के साथ बुलंद आवाज वाला दूसरा गायक भोजपुरी में नहीं हुआ। उनके समय के सभी गायक चले गये। वह आशीर्वाद देने के लिए अभी भी मौजूद हैं। भोजपुरी भाषा की सेवा करने वाले व्यास शैली के इस महान गायक को सरकारी स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए।- भरत शर्मा व्यास, प्रख्यात लोक गायक
मैं खुशनसीब हूं मैंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना
जंग बहादुर सिंह भोजपुरी के महान गायकों में शामिल हैं। बचपन में मैंने इनको अपने गांव बंगरा, छपरा में चैता गाते हुए सुना है। भोजपुरी और खासकर तब छपरा-सिवान-गोपालगंज जिले के संयुक्त सारण जिले का नाम देश-दुनिया में रौशन किया ब्यास जंग बहादुर सिंह ने। मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूं, जिन्होंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना है, उनको देखा है और उनसे बात किया है। गायिकी के साथ उनके झाल बजाने की कला का मुरीद हूं मै। ये हम सब का सौभाग्य है कि जंग बहादुर जी उम्र के इस पड़ाव में हम लोगों के बीच है। इनकी कृति और रचनाओं को कला संस्कृति विभाग बिहार सरकार को सहेजना चाहिए।- हरेन्द्र सिंह, पूर्व कोच भारतीय हॉकी टीम
उनके हिस्से का वाजिब हक मिलना ही चाहिए
बाबू जंग बहादुर सिंह के समकालीन रहे भोजपुरी गायक व्यास नथुनी सिंह, वीरेन्द्र सिंह, वीरेन्द्र सिंह धुरान, गायत्री ठाकुर आज हम लोगों के बीच नहीं हैं पर संगीत प्रेमी व संगीत मर्मज्ञ बताते हैं कि इन सभी गायक कलाकारों ने भी जंग बहादुर सिंह का लोहा माना था और इज्जत दी थी। राम इकबाल, तिलेसर व रामजी सिंह व्यास जैसे गायकों से एक साथ दूगोला करते थे जंग बहादुर बाबू। परिवार के लोग जानते हैं कि जंगबहादुर सिंह ने अपने गायन कला का व्यवसाय नहीं किया। मेहनताना के रूप में श्रोताओं-दर्शकों की तालियां व वाहवाही भर थी। खैर, अब तो वह 102 वर्ष के हो गए। उन्हें उनके हिस्से का वाजिब हक व सम्मान तो मिलना ही चाहिए। - मनोज भावुक, सुप्रसिद्ध भोजपुरी कवि व फिल्म समीक्षक
(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा और साहित्य के जानकार और भोजपुरी कवि व फिल्म समीक्षक हैं, उन्होंने यह स्टोरी वेबदुनिया के लिए की है)