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Last Modified: शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022 (19:10 IST)

Year Ender 2022 : एमवीए की सरकार गिरी, 2022 में गर्माई महाराष्ट्र की सियासत

Uddhav Thackeray_Eknath Shinde
मुंबई। महाविकास आघाड़ी (MVA) का प्रयोग 2022 में नाटकीय तौर पर विफल होने के बाद उद्धव ठाकरे के राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लग गया है, खासकर ऐसे वक्त में जब खुद उनकी पार्टी शिवसेना 2 फाड़ हो गई। एमवीए सरकार के गिरने और उसके बाद के घटनाक्रम के चलते पूरे साल प्रदेश का सियासी पारा चढ़ा रहा।

महाराष्ट्र में 1977-78 तक और फिर बाद में 1990 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस का शासन रहा और उसके बाद ‘आघाड़ी’ (कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन मोर्चा) और ‘युति’ (शिवसेना व भारतीय जनता पार्टी) की गठबंधन राजनीति सत्ता में रही।

शिवसेना में उथल-पुथल के परिणामस्वरूप एमवीए सरकार का पतन राज्य के राजनीतिक इतिहास में इस तरह का दूसरा उदाहरण था। इससे पहले 1978 में एक मंत्री के रूप में शरद पवार ने एक विद्रोह का नेतृत्व किया और वसंतदादा पाटिल सरकार को गिराकर, 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने।

गठबंधन राजनीति के युग ने इस साल एक अभूतपूर्व मोड़ लिया जब एकनाथ शिंदे शिवसेना के 39 बागी विधायकों के साथ गठजोड़ से बाहर चले गए और मूल शिवसेना होने का दावा किया। 288 विधायक और 48 लोकसभा सदस्यों वाले राज्य में राजनीतिक स्थिति पहले कभी इतनी जटिल नहीं रही।
Devendra Fadnavis

इस गुबार के 2023 में होने वाले बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) सहित नगर और स्थानीय निकायों के चुनावों के बाद थमने की उम्मीद है। जब तक सर्वोच्च न्यायालय और भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) राजनीतिक दलबदल को रोकने के लिए बनाई गई संविधान की 10वीं अनुसूची की व्याख्या पर एक निश्चित रुख नहीं अपनाते तब तक कोई स्पष्टता आने की उम्मीद नहीं है।

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के ठाकरे के नेतृत्व वाले ढाई साल पुराने गठबंधन की मुश्किलें तब शुरू हुईं जब 21 जून को शिंदे व उनके समर्थक तथा पूर्व में एमवीए का साथ देने वाले कुछ निर्दलीय विधायक भाजपा शासित गुजरात के सूरत चले गए। वहां से वे एक अन्य भाजपा शासित राज्य असम के गुवाहाटी पहुंच गए।

सदन में शक्ति परीक्षण से पहले उद्धव ठाकरे ने 29 जून को इस्तीफा दे दिया। अगले दिन शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली जबकि भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

इस बात की व्यापक उम्मीद थी कि फडणवीस फिर मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन उन्होंने घोषणा की कि वह नई सरकार से बाहर रहेंगे जिसका नेतृत्व शिंदे करेंगे। लेकिन भाजपा आलाकमान ने सार्वजनिक तौर पर फडणवीस को उप मुख्यमंत्री के तौर पर सरकार में शामिल होने का आदेश दिया।

एमवीए की मुश्किलें 10 जून को बढ़ने लगी थीं, जब भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में छह में से तीन सीटों पर जीत हासिल की और शिवसेना का एक उम्मीदवार हार गया। 20 जून को विधान परिषद चुनावों में 10 सीटों में से शिवसेना और उसके सहयोगियों को छह सीटें जीतने की उम्मीद थी लेकिन उसे पांच सीटें मिली हालांकि एमवीए से ‘क्रॉस-वोटिंग’ के कारण भाजपा को भी समान संख्या में सीटें मिलीं।

परिषद के चुनाव परिणाम के तुरंत बाद शिंदे और सेना के कुछ विधायक संपर्क से दूर हो गए और बाद में सूरत के एक होटल में पाए गए। शिंदे को शिवसेना विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया और उच्चतम न्यायालय में एक अयोग्यता याचिका दायर की गई। शिंदे ने इस कदम को चुनौती दी।

दोनों गुटों में जारी खींचतान के बीच ईसीआई ने शिवसेना का चुनाव चिन्ह ‘धनुष-बाण’ और पार्टी के नाम ‘शिवसेना’ के उपयोग पर रोक लगा दी। शिंदे के खिलाफ कार्रवाई के बाद बागी विधायकों ने उन्हें सदन में पार्टी विधायक दल का नेता घोषित कर दिया।

ठाकरे गुट ने तब बागी विधायकों के खिलाफ याचिका दायर की और मांग की कि विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल शिंदे खेमे के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करें। जिरवाल ने कानूनी राय के लिए महाधिवक्ता से मिलने से पहले शिवसेना नेताओं से मुलाकात की।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)
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