हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता। सभी के सपने सच नहीं होते। फिर भी सबकी तमन्ना होती है बहुत कुछ पाने की, अपनी एक जगह बनाने की, एक मंजिल की तलाश होती है। कभी राह नहीं मिलती, कभी मार्गदर्शक नहीं मिलता। किंतु यदि स्वयं के प्रति जागरूक हैं, विवेक साथ है तो मंजिल सामने है, कुछ कदम बढ़ाने की देरी है।
यह शीर्षक भी कुछ अजीब है, वैसे तो कुदरत की रची यह सारी कयामत ही अनोखी है। वास्तव में गहराई से चिंतन करें तो जन्म, मरण, परण, आदि से लेकर अनादि तक, पैदा होने से लेकर मरने तक हम सोचते हैं, स्वप्न देखते हैं, लंबी-चौड़ी योजनाएँ बनाते हैं परंतु घटित कुछ और ही हो जाता है। भविष्यवक्ता भी बड़ी-बड़ी भविष्यवाणी कर बैठते हैं, पर क्या हम पूर्णतः उन पर आश्रित हो सकते हैं?
ऐसा होता तो जीवन का संघर्ष खत्म एवं जीवन सरलतम हो जाता। उस शक्ति प्रदाता ने कुछ भी हमें नहीं दिया ऐसा कहकर हम उसे अन्यायी भी नहीं मान सकते, क्योंकि उसने एक बड़ा सम्बल हमारे हाथ में दिया है- बुद्धि, विवेक, चिंतन की प्रखरता, योग्यता, दक्षता, कुछ कर गुजरने का अटूट विश्वास। तो देखें कुछ भी हमारे हाथ में नहीं हैं, किंतु समझें तो हमारे पास सबकुछ है।
हम अपने स्वयं के बारे में कहाँ जानते हैं कि किस घर में, किस गाँव में, किस देश-प्रदेश में हम जन्म लेंगे। कौन होंगे हमारे माँ-बाप, कौन भाई-बहन, कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है। आगे बढ़ते हैं तो कब बचपन बीता, कब यौवन की अवस्था में प्रवेश कर लिया। बचपन अपने आप पीछे छूट गया। आगे तैयारी होने लगती है कौन होगा जीवनसाथी? कहाँ मिलेगी नौकरी? कैसा होगा व्यापार? कहीं तो सबकुछ जमा-जमाया तैयार होता है, बिना प्रयास, बिना प्रयत्न सीधे उसमें प्रवेश मिल जाता है। कहीं पता भी नहीं लगता और हजारों मील दूर पहुँच जाते हैं।
जीवनपर्यंत निभाने वाला रिश्ता भी कहाँ हमारे और आपके हाथ में है? कब जीवन नई दिशा लेगा, कहाँ कब और कैसे जीवन-साथी टकराएगा। प्रेम विवाह है तो मिलन स्थल कॉलेज, स्कूल, नौकरी या व्यापार स्थल, होटल या अब तो ई-मेल भी हो सकता है। हजारों मीलों की दूरियाँ नजदीकियाँ बन जाती हैं। जीवन में आगे बढ़ते हैं तो फिर वही बात कौन होगी आपकी संतान?
विज्ञान ने जरूर कुछ तब्दीली लाई है, किंतु यहाँ भी कुछ मुद्दों में समर्पण करना ही पड़ता है। जीवन की सबसे बड़ी सचाई जो पैदा हुआ है उसे मरना भी निश्चित है, चाहे इस बात का डरकर सामना करें या दैनिक जीवन की दूसरी घटनाओं की तरह अपने आपको तैयार रखें, क्योंकि घर में सगे-संबंधियों के बीच, अकेले, सोते-जागते, यात्रा में कहीं भी, कैसे भी इस दुनिया से कूच कर सकते हैं।
भोपाल गैस त्रासदी हो या अहमदाबाद के भूकम्प की घटना हो, हजारों लोग एक क्षण में कालग्रस्त हो गए, किसने सोचा था, ऐसा भी हो सकता है। इन सबके बावजूद तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। हाँ, यह बात सच है कि हमारे हाथ में कुछ नहीं है किंतु इस बात को समझना, विवेक से जानना तो हमारे हाथ में है। इस सचाई को स्वीकार कर सुख-दुःख, मान-अपमान से बच सकते हैं। जीवन में स्थिरता एवं दुःख वाली अनुभूति का एहसास कम कर सकते हैं। क्योंकि हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता।
सभी के सपने सच नहीं होते। फिर भी सबकी तमन्ना होती है बहुत कुछ पाने की, अपनी एक जगह बनाने की, एक मंजिल की तलाश होती है। कभी राह नहीं मिलती, कभी मार्गदर्शक नहीं मिलता। किंतु यदि स्वयं के प्रति जागरूक हैं, विवेक साथ है तो मंजिल सामने है, कुछ कदम बढ़ाने की देरी है। पूरी निष्ठा, विश्वास से दृढ़ संकल्पित हैं तो कोई तूफान रोक नहीं सकता और मंजिल आपके सामने होगी।
होता यह सब भी स्वतः है किंतु सामने रखी भोजन की थाली से भोजन खाने के लिए हाथ को परिश्रम करना होगा। उसी तरह पुरुषार्थ, प्रयास, प्रयत्न स्वयं को करना होगा। आपके हाथ में कुछ भी नहीं हो तब भी जीवन-लक्ष्य आपके हाथ में होगा।