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Matasya Puran ki Katha : आपने नहीं पढ़ी होगी वास्तु पुरुष की यह कथा

Matasya Puran ki Katha : आपने नहीं पढ़ी होगी वास्तु पुरुष की यह कथा - Vastu purush ki Katha
वास्तु पुरुष की कथा
 
वास्तु पुरुष की कल्पना भूखंड में एक ऐसे औंधे मुंह पड़े पुरुष के रूप में की जाती है जिसमें उनका मुंह ईशान कोण व पैर नैऋत्य कोण की ओर होते हैं। उनकी भुजाएं व कंधे वायव्य कोण व अग्निकोण की ओर मुड़ी हुई रहती हैं।
 
मत्स्य पुराण के अनुसार वास्तु पुरुष की एक कथा है। देवताओं और असुरों का युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में असुरों की ओर से अंधकासुर और देवताओं की ओर से भगवान शिव युद्ध कर रहे थे। युद्ध में दोनों के पसीने की कुछ बूंदें जब भूमि पर गिरीं तो एक अत्यंत बलशाली और विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई। उस विराट पुरुष ने पूरी धरती को ढंक लिया।
 
उस विराट पुरुष से देवता और असुर दोनों ही भयभीत हो गए। देवताओं को लगा कि यह असुरों की ओर से कोई पुरुष है जबकि असुरों को लगा कि यह देवताओं की तरफ से कोई नया देवता प्रकट हो गया है। इस विस्मय के कारण युद्ध थम गया और उसके बारे में जानने के लिए देवता और असुर दोनों उस विराट पुरुष को पकड़कर ब्रह्मा जी के पास ले गए।
 
उसे उन लोगों ने इसलिए पकड़ा कि उसे खुद ज्ञान नहीं था कि वह कौन है, क्योंकि वह अचानक उत्पन्न हुआ था। उस विराट पुरुष ने उनके पकड़ने का विरोध भी नहीं किया। फिर ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव के सामने पहुंचने पर उन लोगों नें ब्रह्मदेव से उस विराट पुरुष के बारे में बताने का आग्रह किया।
 
ब्रह्मा जी ने उस वृहदाकार पुरुष के बारे में कहा कि भगवान शिव और अंधकासुर के युद्ध के दौरान उनके शरीर से गिरे पसीने की बूंदों से इस विराट पुरुष का जन्म हुआ है इसलिए आप लोग इसे धरतीपुत्र भी कह सकते हैं।
 
ब्रह्मदेव ने उस विराट पुरुष को संबोधित कर उसे अपना मानस पुत्र होने की संज्ञा दी और उसका नामकरण करते हुए कहा कि आज से तुम्हें संसार में 'वास्तु पुरुष' के नाम से जाना जाएगा और तुम्हें संसार के कल्याण के लिए धरती में समाहित होना पड़ेगा अर्थात धरती के अंदर वास करना होगा।
 
ब्रह्मदेव ने कहा कि मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि जो भी कोई व्यक्ति धरती के किसी भी भू-भाग पर कोई भी मकान, तालाब या मंदिर आदि का निर्माण कार्य करते समय वास्तु पुरुष को ध्यान में रखकर करेगा तो उसको सफलता और हर कार्य में सिद्धि मिलेगी और जो कोई बिना तुम्हारा पूजन करे निर्माण कार्य करेगा, तो उसे तकलीफें और जीवन में अड़चनों का सामना करना पड़ेगा।

ऐसा सुनकर वह वास्तु पुरुष धरती पर आया और ब्रह्मदेव के निर्देशानुसार एक विशेष मुद्रा में धरती पर बैठ गया जिससे उसकी पीठ नैऋत्य कोण व मुख ईशान कोण में था। इसके उपरांत वह अपने दोनों हाथों को जोड़कर पिता ब्रह्मदेव व धरती माता को नमस्कार करते हुए औंधे मुंह धरती में समाने लगा।