मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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वसंत पंचमी पर क्यों माना जाता है पीला रंग शुभ

वसंत पंचमी पर क्यों माना जाता है पीला रंग शुभ - vasant panchami 2022 hindi article
बसंत पंचमी केवल उत्सव नहीं है, यह भक्ति, शक्ति और बलिदान का प्रतीक व अबूझ मुहूर्त है।आज के दिन को भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता हैं जिसमें मुख्य रूप से बसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, वागीश्वरी जयंती, रति काम महोत्सव, बसंत उत्सव आदि है।आज के ही दिन सृष्टि के सबसे बड़े वैज्ञानिक के रूप में जाने जाने वाले ब्रह्मदेव ने मनुष्य के कल्याण हेतु बुद्धि, ज्ञान विवेक की जननी माता सरस्वती का प्राकट्य किया था।मां सरस्वती प्रकृति की देवी हैं।

उनकी वीणा के नाद से ही समस्त संसार में चेतना आई।मूल रूप से शरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंत:करण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है।आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती है।जिसके कारण पृथ्वी पर समस्त पेड़ पौधे फूल मनुष्य आदि गत शरद ऋतु में मंद पड़े अपने आंतरिक अग्नि को प्रज्जवलित कर नये सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

भारतीय ज्योतिष में प्रकृति में घटने वाली हर घटना को पूर्ण वैज्ञानिक रूप से निरूपित करने की अद्भुत कला है।प्रकृति में प्रत्येक सौंदर्य एवं भोग तथा सृजन के मूल माने जाने वाले भगवान शुक्र देव अपने मित्र के घर की यात्रा के लिए इस उद्देश्य से चलना प्रारंभ करते हैं कि उत्तरायण के इस देव काल में वह अपनी उच्च की कक्षा में पहुंच कर संपूर्ण जगत को जीवन जीने की आस व साहस दे सकें।यह मात्र वह समय है (बसंत ऋतु) जहां प्रकृति पूर्ण दो मास तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित बनाकर संपूर्ण जीवों को जीने का मार्ग प्रदान करती है।
 
इस रमणीय, कमनीय एवं रति आदर्श ऋतु में पूर्ण वर्ष शांत रहने वाली कोयल भी अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है एवं महान संगीतज्ञ बसंत रस के स्वर को प्रकट कर सृजन को प्रोत्साहित करते हैं। स्वयं के स्वभाव प्रकृति एवं उद्देश्य के अनुरूप प्रत्येक चराचर अपने सृजन क्षमता का पूर्ण उपयोग करते हुए, जहां संपूर्ण पृथ्वी को हरी चादर में लपेटने का प्रयास करता है, वहीं पौधे रंग-बिरंगे सृजन के मार्ग को अपनाकर संपूर्णता में प्रकृति को वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हैं।मनुष्य रूप में स्वयं की पूर्णता के परम उद्देश्य का साधन मात्र और एक मात्र भगवती सरस्वती के पूजन का ही है। इसलिए, आज के ही दिन माताएं अपने बच्चों को अक्षर आरंभ भी कराना शुभप्रद समझती हैं।
 
सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं जाते।प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदियां अर्पित की जाती।बसंत ऋतु पर सरसों की फसलें खेतों में लहराती हैं,फसल पकती है और पेड़-पौधों में नई कोपलें फूटती हैं। प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंगों से सजा देती है। जिससे पृथ्वी वासंती दिखती है। बसंत का स्वागत करने के लिए पहनावा भी विशेष होना चाहिए इसलिए लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पीला रंग उत्फुल्लता, हल्केपन खुलेपन और गर्माहट का आभास देता है।. बसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को बासंती रंग से सराबोर कर जाता है।बसंत पंचमी पर सब कुछ पीला दिखाई देता है। पीला रंग हिन्दुओं में शुभ माना जाता है।

 पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है।यह सादगी और निर्मलता को भी दर्शाता है।केवल पहनावा ही नहीं खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है। इस संदर्भ में फेंगशुई विशेषज्ञ कहना है कि पीले रंग के परिधान हमारे दिमाग के उस हिस्से को अधिक अलर्ट करते हैं, जो हमें सोचने-समझने में मदद करता है। यही नहीं, पीला रंग खुशी का एहसास कराने में भी मददगार होता है।
 
पीले रंग के परिधान पहनने के साथ ही हमें सप्ताह में दो-तीन बार पीले रंग के खाद्य पदार्थ जैसे पीले फल, पीली सब्जियां और पीले अनाज का भी सेवन करना चाहिए। इससे हमारे शरीर में मौजूद हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं। ये हानिकारक तत्व शरीर के अंदर बने रहने पर नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं। नतीजतन दिमाग में उठने वाली तरंगें खुशी का एहसास कराती हैं।मनोवैज्ञानिकों के अनुसार रंगों का हमारे जीवन से गहरा नाता है।इस बात को वैज्ञानिक भी मानते हैं।
 
पीला रंग उमंग बढ़ाने में सहायक है. पीला रंग हमारे दिमाग को अधिक सक्रिय करता है मन्दिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं और बसंत के राग गाए जाते हैं।बसंत ऋतु में मुख्य रूप से रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। बसंत पंचमी से ही होली गाना भी शुरू हो जाता है।इस दिन पितृ तर्पण किया जाता है। इतना सब कुछ अपने साथ ले कर आता है बसंत उमंगों के साथ तभी तो यह ऋतुओं का राजा कहलाता है।