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Written By अवनीश कुमार
Last Updated : बुधवार, 16 नवंबर 2022 (10:48 IST)

22 साल पहले हादसे का हुए थे शिकार, 13 साल से बच्चों की जिंदगी में फैला रहे हैं शिक्षा का उजियारा

22 साल पहले हादसे का हुए थे शिकार, 13 साल से बच्चों की जिंदगी में फैला रहे हैं शिक्षा का उजियारा - Blind teacher spreading the light of education in the lives of children
कानपुर देहात। एक कहावत है कि 'मंजिल उन्हें ही मिलती है जिनके सपनों में जान होती है/ पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है।' इस कहावत को चरितार्थ किया है कानपुर देहात के एक नेत्रहीन शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी ने। द्विवेदीजी स्वयं 'दृष्टिहीन' होने के बावजूद बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का 'उजियारा' फैला रहे हैं।
 
वे झींझक कस्बे के पास उड़नवापुर गांव में 13 सालों से प्राथमिक स्कूल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और विद्यार्थियों की जिंदगी में शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं और अपना पूरा जीवन बच्चों के नाम कर दिया है।
 
22 साल पहले हादसे का हुए थे शिकार : कानपुर देहात के झींझक कस्बे के पास उड़नवापुर गांव के प्राथमिक स्कूल में अपनी सेवाएं दे रहे शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी ने बताया कि सन् 2000 में वे अपने एक दोस्त के यहां विवाह समारोह में गए हुए थे, जहां पर हर्ष फायरिंग के दौरान बंदूक से निकली गोली के छर्रे उनके चेहरे पर चले गए और हादसे में उनकी आंखों की रोशनी चली गई।
 
उन्होंने कई सालों तक इसका इलाज कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। उस समय वे ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई को जारी रखा और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली।
 
ऑडियो लाइब्रेरी में करते थे पढ़ाई : शिक्षक द्विवेदी ने बताया कि ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद वे देहरादून के एक विद्यालय में पढ़ाई करने के लिए चले गए, जहां पर वे ऑडियो लाइब्रेरी में पढ़ाई करते थे। इसके बाद उन्होंने अपने आपको और मजबूत करने के लिए अपने भाई-बहन के साथ बैठना शुरू किया और जब उनके भाई-बहन पढ़ाई करते थे तो उनसे वे कहते थे कि बोल-बोलकर पढ़ाई करो। जिसको सुनकर उन्होंने अपने शिक्षा स्तर को और मजबूत किया और फिर बीएड, एमए की पढ़ाई पूरी करते हुए 2008 में आई शिक्षक की भर्ती में आवेदन किया और उनका चयन हो गया।
 
2009 में मिली नियुक्ति : शिक्षक द्विवेदी ने बताया कि सफलता उनके हाथ लगी और 16 जुलाई 2009 को उनको उड़नवापुर प्राथमिक विद्यालय में नियुक्ति मिल गई। नियुक्ति तो मिल गई लेकिन विद्यालय कैसे जाएंगे? इसको लेकर वे सोच में पड़ गए। लेकिन इस दौरान उनके भाई ने उनकी हिम्मत बढ़ाई और तब से लेकर आज तक उन का छोटा भाई उन्हें विद्यालय छोड़ जाता है और शाम को विद्यालय से ले जाता है आकर।
 
बच्चों में ढूंढते हैं छोटी-छोटी खुशियां : द्विवेदी ने बताया कि मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपने आपको विद्यालय के बच्चों के साथ जोड़ लिया और उनकी हर एक छोटी खुशी उन्हीं में ढूंढने लगा और उनकी शिक्षा के स्तर को मजबूत करना ही मेरा संकल्प बन गया जिसके चलते मैंने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए पूरी लगन व मेहनत के साथ काम करना शुरू किया।
 
विद्यालय का प्रधानाध्यापक बनाया : उन्होंने बताया कि इसी दौरान विद्यालय के प्रधानाध्यापक सेवानिवृत्त हो गए और विद्यालय में प्रधानाध्यापक का स्थान रिक्त हो गया। अन्य शिक्षकों के साथ-साथ उनका भी प्रमोशन हुआ और नेत्रहीन होने की वजह से कहीं और न भेजकर उन्हें विद्यालय का प्रधानाध्यापक बना दिया गया। प्रधानाध्यापक बनने के बाद भी मैं बच्चों के बीच में ही रहा और उनकी शिक्षा के स्तर को मजबूत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
 
बच्चों की आंखों से देखते हैं दुनिया को : उन्होंने कहा कि मैंने शादी भी इसलिए नहीं की, क्योंकि अब इन्हीं बच्चों की आंखों से मैं दुनिया को देखना चाहता हूं और मेरा अब यही एक सपना है। मेरे पास जो भी समय है, वह मैं इन बच्चों के बीच ही गुजारना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि 'मैं नेत्रहीन हूं और मुझे इस बात का एहसास भी नहीं होता है।'
 
Edited by: Ravindra Gupta