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ग़ज़ल : निदा फ़ाज़ली
1.
बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाए रहिए अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाए रहिएदुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्तादिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए ये तो चेहरे की शबाहत हुई तक़दीर नहीं इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाए रहिए ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है जिस जगह रहिए वहाँ मिलते मिलाते रहिएकोई आवाज़ तो जंगल में दिखाए रस्ताअपने घर के दर-ओ-दीवार सजाए रहिए2.
कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैंयूँ, हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनोंरोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं