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ग़ज़लें : मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
1-
बेसबब रूठ के जाने के लिए आए थे आप तो हमको मनाने के लिए आए थे ये जो कुछ लोग खमीदा हैं कमानों की तरह आसमानों को झुकाने के लिए आए थेहमको मालूम था दरिया में नहीं है पानी सर को नेज़े पे चढ़ाने के लिए आए थे इखतिलाफ़ों को अक़ीदे का नया नाम न दो तुम ये दीवार गिराने के लिए आए थे है कोई सिम्त कि बरसाए न हम पर पत्थर हम यहाँ फूल खिलाने के लिए आए थे हाथ की बर्फ़ न पिघले तो मुज़फ़्फ़र क्या हो वो मेरी आग चुराने के लिए आए थे 2.
ये बात खबर में आ गई है ताक़त मेरे पर में आ गई है आवारा परिन्दों को मुबारक हरियाली शजर में आ गई हैइक मोहिनी शक्ल झिलमिलाती फिर दीदा ए तर में आ गई है शोहरत के लिए मुआफ़ करना कुछ धूल सफ़र में आ गई है हम और न कर सकेंगे बरदाश्त दीवानगी सर में आ गई हैरातों को सिसकने वाली शबनम सूरज की नज़र में आ गई है अब आग से कुछ नहीं है महफ़ूज़ हमसाए के घर में आ गई है 3.
पड़ोसी तुम्हारी नज़र में भी हैं यही मशविरे उनके घर में भी हैं मकीनों की फ़रियाद जाली सहीमगर ज़ख्म दीवार-व-दर में भी हैं बगूले की मसनद पे बैठे हैं हम सफ़र में नहीं हैं सफ़र में भी हैं तड़पने से कोई नहीं रोकता शिकंजे मेरे बाल-व-पर में भी हैंतेरे बीज बोने से क्या फ़ायदा समर क्या किसी इक शजर में भी हैंहमें क्या खबर थी कि शायर हैं वो मुज़फ़्फ़र मियाँ इस हुनर में भी हैं
4.
न रुक सकेगा ये पानी नदी को बहने दो कि ज़िन्दगी है रवानी नदी को बहने दो नहीं तो सारी नई बस्तियों की खैर नहीं उसी डगर पे पुरानी नदी को बहने दोमहीन बर्फ़, हरे पेड़, खुशनुमा पंछीसुनाए जाओ कहानी नदी को बहने दो उसे ज़ईफ़ किनारों के तजरुबात से क्याउबल पड़ेगी जवानी नदी को बहने दोबशर है वक़्त के धारे में बुलबुले की तरह हमारी ज़ात है फ़ानी नदी को बहने दो न जाने कब से समन्दर उसे बुलाता है नदी है प्रेम दिवानी नदी को बहने दो उमंड पड़ेगी मुज़फ़्फ़र के शे'र की मानिन्द सुनो कबीर की बानी नदी को बहने दो 5.
जब उम्र का अहसास दिलाने लगे जुगनू दामन से मेरी आँख में आने लगे जुगनूकितनी ही बुलन्दी पे हो रस्ता है पुरानातारों को नई राह दिखाने लगे जुगनू बस ये है कि यादों की घटा छाई हुई हैऎसा है कि सीने में समाने लगे जुगनू देकी जो मेरे हाथ में इखलाक़ की मशअल बच्चे मेरी तोपी में छुपाने लगे जुगनूबैसाख ने आँखों में बहुत धूल उड़ाई बरसात हुई है तो सताने लगे जुगनू जब गांव तरक़्क़ी के लिए शहर में आया नापैद हुए फूल, ठिकाने लगे जुगनू ज़ुलमत की मज़म्म्त में मुज़फ़्फ़र ने कहे शे'र फिर तीर अंधेरे पे चलाने लगे जुगनू