ग़ज़लें : डॉ. शफ़ी बुरहानपुरी
1.
मोहब्बतों के हसीन साए को रोशनी पर सवार कर लो ज़मीन वालों से बात कर लो, बलन्दियों से क़रार कर लो मैं फिर से इक बार कह रहा हूँ, यक़ीं करो ऎतबार कर लो है तेज़ तूफ़ान आने वाला, उठो समन्दर को पार कर लोचमन का हर फूल रो रहा है, 'शजर-शजर' आह भर रहा है----------प्रत्येक पेड़ '
खिज़ाँ' ने ये मशवरा दिया है, कि इन्तिज़ार-ए-बहार करलो----------पतझड़ मुझे समझ कर 'रक़ीब' अपना, तलाश करते रहे हो अक्सर--------दुश्मन खड़ा हूँ मैं आज सर झुकाए, जो चाहते हो तो वार कर लोये सच है तुमने हसीन लम्हे तड़प तड़प कर बिता दिए हैं जो रख सको ऎतबार हम पर, ज़रा सा और इंतिज़ार कर लोवो जितनी नफ़रत करेंगे हम से, हम उनको उतना ही प्यार देंगेहमारे दिल ने उन्हें तो चाहा है, चाहे बातें हज़ार कर लो नक़ाब रुख से उतार डालो, दिखावटी 'पैरहन' भी बदलो---------वस्त्र, लिबास ये तन'तअस्सुब'से पाक करलो,दिलों को आईनादार कर लो-------भेदभाव शफ़ीअ'सहरा'की वादियों मे,अकेले कब से भटक रहा है---------मरुस्थल है खूबसूरत ये ज़िन्दगी भी, ज़रा निगाहों को चार कर लो2.
देखिए-देखिए हवा का रुख + जाइए मोड़िए हवा का रुखखुद ब्खुद मंज़्लों पे पहुंचेगी+ नाव से जोड़िए हवा का रुख तेज़ धारों को मोड़ देती है + कम भी मत जानिए हवा का रुखपहले माहौल कीजिए हक़ में+फिर बहा लाइए हवा का रुखबादलों के हसीन कंधों पर + र्ख गया है दिए हवा का रुख झील की इन हसीन लहरों पर + जैसे चादर सिए हवा का रुख आजकल उस तरफ़ ज़माना है + जिस तरफ़ हो चले हवा का रुख ऎ शफ़ी इस सुहाने मौसम सा + फिर कहाँ पाइए हवा का रुख 3.
अब के बादल कुछ ऎसे छाए हैं +'मैकशों'को पसीने आए हैं----शराब पीने वालेमेरे दिल में वही समाए हैं + जिन से अक्सर'फ़रेब'खाए हैं--- धोके धूप हर'ज़ाविए'से आती है + इन दरख्तों के कैसे साए हैं----कोण किस क़दर'बेह्र में है तुग़यानी' + लोग काग़ज़ की नाव लाए हैं----समन्दर में तूफ़ान आँखों-आँखों में'शब'गुज़ारी है + तब हैंकहीं सुबहा देख पाए-------रात बैरादा क़दम फिर उठने लगे + याद शायद उन्हें हम आए हैं बीच मझदार में ये राज़ खुला+ आप अपने नहीं पराए हैं जितने बाक़ी'सितम'हों क लेना+ हम ने आंसू अभी बचाए हैं- -----अत्याचार ऎ शफ़ी उनका'एहतेराम'करो + एक मुद्दत के बाद आए हैं--------आदर 4.
वक़्त पड़े तो काम आ जाएँ, अंजाने बेगाने लोग लेकिन धोका दे जाते हैं, ये जाने पहचाने लोग तब समझोगे क्या होते हैं दीवाने मस्ताने लोग जब तुम पर पत्थर फेंकेंगे, खुद अपने पहचाने लोग मेरे चमन का हाल है'अबतर'हर जानिब बस एक ही मंज़र----खराब अपना-अपना जाल बिछाए, बिखराए हैं दाने लोग '
शीशा-ए-दिल'ही साफ़ नहीं तो जलवा कैसे आए नज़र-----मन का दर्पण '
बज़्म-ए-हरम'में बैठें जाकर, या जाएं 'बुतखाने' लोग ----मस्जिद, --मन्दिर मखमल के बिस्तर वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ लेकिन टाट पे सो जाते हैं'सब्र'की चादर ताने लोग------मन की शांति शहरों-शहरों आग लगी है, गलियों-गलियों लूट मचीलेकिन फिर भी लिख लेते हैं, प्यार भरे अफ़साने लोग अन्दर बाहर आग लगा कर,'गोशा-गोशा'खाक बनाकर-------कोना-कोना हम पर बीती के कहते हैं, खुद हम से अफ़साने लोग हाल हमारा आज न पूछो, इतना कहना काफ़ी है खुद ही रोने बैठ गए जो, आए थे समझाने लोग उम्र शफ़ी की सारी गुज़री, नफ़रत के अंगारों बीच आखिर वक़्त में ले कर आए, प्यार भरे नज़राने लोग
5.
ज़िन्दगी ने कराया एसा रक़्स + आखरी पल का भूल बैठा 'रक़्स'----नाच ज़िन्दगी की अजब जुगलबन्दी+ जितना बाजा बजाया उतना रक़्स इन शरारों ने खुद फ़ना होकर + आखरी वक़्त तक द्खाया रक़्स याद आती है इस तरह तेरी + बादलों में हो बिजलियों का रक़्स कर रहा आप के इशारों पर + सिर्फ़ मैं ही नहीं ज़माना रक़्स क्या भुला पाएगी कभी दुनिया+ हाय! गुजरात का वो नंगा रक़्सक्या तमाशा बना सरे महफ़िल+ उन के घुंगरू थे और हमारा रक़्स ऎशफ़ी सारी कायनात के लोग+ करते रहते हैं अपना अपना रक़्स 6.
हर वक़्त साथ साथ मगर बोलता न थासाया हमारा खुद था कोई दूसरा न थावो तो 'फ़रेब' देना लबों का था 'मशग़ला' -------धोका----काम वरना उन्हें हंसी से कोई 'वास्ता' न था-------सम्बंध आए थे लोग भेस बदल कर नए नए लेकिन हमारे चेहरे पे,चेहरा नया न थाउनकी इनायतों से ये आया है 'इंक़िलाब'-------बदलाव वरना हमारा 'अक्स' कभी बोलता न था-------सायारखता था मोज मोज में वो 'ख्वाहिश-ए-गोहर'----मोती पाने की इच्छाजो 'बेह्र' की 'तहों' में कभी डूबता न था--------समन्दर --- गहराईहंसते थे खिड़कियों से मेरी बेबसी पे लोगलेकिन किवाड़ अपने कोई खोलता न था यूं तो शफ़ी से सारा ज़माना था ' आशना'------जान पहचान का जब वक़्त पड़ गया तो कोई जानता न था7.
अपना जलवा दिखा दिया शायद + रुख से परदा हटा दिया शायद उसने चुन चुन के बाण छोड़े थे + दिल कोई तीर खा गया शायद याद आते ही भूल जाता हूँ--- + रोग अपना लगा गया शायद खून के एक एक क़तरे में ---+ दर्द बन कर समा गया शायद थपकियाँ देके उसने बच्चों को + आज भूका सुला दिया शायद हरकतें देख के शफ़ी को लगा + पाठ उलटा पढ़ा दिया शायद