रविवार, 22 दिसंबर 2024
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Written By WD

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता -
हर एक रास्ता मंज़िल है चल सको तो चलो
बने बनाए हैं सांचे जो ढल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो ---निदा फ़ाज़ली

मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफ़सोस
यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए

मौत हर शाह-ओ-गदा के ख़्वाब की ताबीर है
इस सितमगर का सितम इंसाफ़ की तस्वीर है

पूछ लो बेशक परिन्दों की हसीं चेहकार से
तुम शफ़क़ की झील हो और शाम का मंज़र हूँ मैं

प्रेम लेजाओ अजाइब घर में रख देना इसे
इस मज़ारे-शाएरी का आख़िरी पत्थर हूँ मैं

ग़ुरूबे-शाम ही से ख़ुद को यूँ मेहसूस करता हूँ
के जैसे इक दिया हूँ और हवा की ज़द पे रक्खा हूँ ---ज़ुबेर रिज़वी

चमकती धूप तुम अपने ही दामन में न भर लेना
मैं सारी रात पेड़ों की तरह बारिश में भीगा हूँ

महरबाँ होके बुलालो मुझे चाहो जिसदम
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ -----ग़ालिब

मुझको हैरत है के 'फ़ाज़िल' फूल के होते हुए
लोग पत्थर ही से क्यों देते हैं पत्थर का जवाब ----फ़ाज़िल अंसारी

ज़मीनो-आसमाँ,सूरज सितारे
ख़ुदा की शान के मज़हर हैं सारे --याक़ूब तसव्वुर

लोग जाते हैं अगर चाँद नगर तक जाएं
हम तड़पते हैं के बस आपके दर तक जाएं---याक़ूब तसव्वुर

तुन्दिए बादे-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऎ इक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊंचा ऊड़ाने के लिए------

हुरमते-दिल का जो न हो क़ाइल
उसके घर में क़याम मत करना-----फ़रज़ाना खान नैना

लोग सोरज की तमाज़त से पनाह मांगते हैं
और हमें साया-ए-दीवार से डर लगता है ------इसहाक़ साजिद

मुक़ाबिल मेहजबीं होने लगा है
अंधेरा भी हसीं होने लगा है ------------इसहाक़ साजिद

इक दूसरे से टूटके मिलते हैं सब मगर
मसरूफ़ सारे लोग हैं इक सर्द जंग में-----आलम ख़ुर्शीद

कोई निशान लगाते चलो दरख़्तों पर
के इस सफ़र में तुम्हें लोट कर भी आना है ----रऊफ़ ख़ैर

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है ---------मुनव्वर राना

झूट आजाए तो सच्चाई चली जाती है
बात से बात की गहराई चली जाती है ------मुनव्वर राना

इतवार की इक शाम तो बच्चों में रहूँ मैं
वरना किसे हंसने का यहाँ वक़्त मिला है -----सैफ़ी