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Written By WD
Last Updated : बुधवार, 9 जुलाई 2014 (19:56 IST)

नज्म : अहमद कलीम फैजपुरी

नज्म : अहमद कलीम फैजपुरी -
शफ़ीक़ माँ है!

मेरी निगाह
इतनी मोतबर कहाँ थी?
कि देखता मैं
तुझको तेरे अंदर
चेहरगी का वो आईना भी
कि शफ्फाक सा रहा है
अज़ल से अब तक

वो इक तक़द्दुस
कि लम्स जिसका
उँगलियों की
हर एक पोर में निहाँ था
गुमाँ को मेरे
आवाज दे रहा था

मैं अपने अंदर नहीं था कुछ भी
कहाँ था मैं
इसकी खबर नहीं थी

जगाया मुझको फिर सूरजों ने
दरीचे दिल के जो वा हुए हैं
तो मैंने जाना
कि तू मेरी शफी़क़ माँ है!