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Written By Author हिमा अग्रवाल
Last Updated : शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (18:40 IST)

‍प्रियंका के नारे- लड़की हूं लड़ सकती हूं पर क्या सोचती हैं यूपी की महिलाएं...

‍प्रियंका के नारे- लड़की हूं लड़ सकती हूं पर क्या सोचती हैं यूपी की महिलाएं... - What do the women of UP think about Priyanka's slogan
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले प्रियंका गांधी ने एक नैरेटिव सेट किया है। नारा दिया- लड़की हूं, लड़ सकती हूं। देखते ही देखते सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में हाशिए पर पड़ीं महिलाएं प्राथमिकता में आ गईं। अब हर दल महिलाओं की स्तुति में आगे दिखना चाहता है। हमने विभिन्न वर्ग की महिलाओं से यह जानने की कोशिश की कि प्रियंका के इस नैरेटिव से वे कितनी प्रभावित हैं या क्या सोचती हैं और क्या प्रियंका का यह मुद्दा कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सकेगा? जानिए आखिर इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं उत्तर प्रदेश की महिलाएं...

वरिष्ठ समाजसेवी ऋचा जोशी के मुताबिक 2022 चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण रहने वाली है। महिलाओं को धर्म के नाम पर भीरू बनाया गया है, लेकिन अब महिलाएं उस झांसे में आने वाली नहीं हैं। 'राम-राम जपना पराया माल अपना', वो इसे बखूबी समझ चुकी हैं। आज भी उनके लिए उनका प्रमुख धर्म उनका अपना परिवार है। परिवार के लिए मन, वचन, कर्म से संलिप्त रहने वाली हर महिला इस समय कठिनाई के दौर में है।
 
अपने परिवार के सदस्यों को सही से पौष्टिक भोजन न दे पाने, बच्चों की शिक्षा की कंटीली राहें, स्वास्थ्य के स्तर पर चरमराती व्यवस्था ने उसे भीतर तक तोड़ डाला है। मुनाफाखोरों को लूट की पूरी छूट मिली हुई है। वस्तुओं के दाम बढ़े हैं, वजन घटा है। कोई कुछ पूछने वाला नहीं है और जनता हाशिए पर है। टेलीकॉम संचार कंपनियों ने भी बेतहाशा दाम बढ़ाकर एक आम महिला के कदम पर प्रहार ही किया है। इन सबका जबाव महिलाएं चुनाव में देंगी।ऋचा प्रियंका के एजेंडे को सही ठहराते हुए कहती हैं कि महिलाओं को हाशिए पर रखकर राजनीति करना भविष्य में संभव नहीं होगा।
सुप्रसिद्ध त्वचा चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉक्टर अर्चना जैन प्रियंका गांधी के अभियान- लड़की हूं लड़ सकती हूं, से खासी उत्साहित हैं और वे इसे राजनीति की शुचिता के लिए महत्वपूर्ण पहल मानती हैं। उत्तर प्रदेश के वर्तमान हालातों पर चिंता जाहिर करते हुए वे कहती हैं कि प्रदेश इस समय अनुशासनहीनता के दौर से गुजर रहा है। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षण संस्थान एवं अन्य संस्थाएं अपने पतन के निम्न स्तर पर हैं।

बुनियादी सुविधाओं और सवालों का सरकार से कोई सरोकार नहीं हैं क्योंकि वे मूल्यों की जगह वैमनस्य की राजनीति के सहारे या सही-गलत हथकंडे अपनाकर सत्ता में आते हैं। कुत्सित हो चुकी राजनीति को देश की आधी आबादी सही दिशा दे सकती है। धर्म और जाति से उठकर प्रियंका ने यह ऐतिहासिक पहल की है और हम सब यह दुआएं करते हैं कि सभी दल वैमनस्य की राजनीति को त्यागने के लिए बाध्य हो जाएं।

लखनऊ की स्वाति शर्मा सोशल इनफ्लुएंसर भी हैं, स्थापित यूट्यूबर भी और इन सबसे ऊपर वह एक डेडीकेटेड होम मेकर भी हैं। प्रियंका के नैरेटिव को वे सिरे से खारिज करते हुए पूछती हैं कि पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह नारा- लड़की हूं लड़ सकती हूं, क्यों नहीं गूंजा। इन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, लेकिन वहां महिलाओं का कितना उत्थान हुआ? इसके अलावा मनमोहन सिंह के 10 साल लंबे शासनकाल में महिलाओं के समग्र विकास के लिए क्या हुआ?
 
स्वाति इस नैरेटिव को चुनावी स्टंट कहकर सिरे से खारिज करते हुए कहती हैं कि पिछले दिनों प्रियंका की सभा में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार पर दोषी कार्यकर्ताओं के खिलाफ क्या एक्शन लिया? रायबरेली और अमेठी की कितनी महिलाएं शीर्ष पर पहुंचीं? स्वाति कहती हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि ये सिर्फ़ सत्ता पर क़ाबिज़ होना या कुछ सीटें जीतने के लिए एक तरह का हथकंडा मात्र है।

शिक्षिका स्वाति शर्मा मानती हैं कि पिछली सरकारों ने महिलाओं के उन्नयन और सुरक्षा के लिए अनेक कदम उठाए। नीतियां भी बनीं और उनका अनुपालन कराने का भी प्रयास किया। वह कहती हैं कि आमतौर पर महिलाएं किसी न किसी रूप में असुरक्षित हैं और उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है चाहे वह घर परिवार में हो या घर के बाहर। कार्यक्षेत्र भी उनके लिए एक चुनौती है जहां वे हैरेसमेंट के कई रूपों से जूझती हैं।
 
वह कहती हैं कि जब हम आधी आबादी हैं तो हमारे लिए प्रिविलेज क्यों पुरुषों के मुकाबले कम है। प्रियंका गांधी का महिलाओं के उन्नयन को लेकर तैयार प्रारूप और बातें निश्चय ही हर महिला के दिल की बात है, लेकिन अभी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस मुकाबले में नहीं दिखती। ऐसे में मतदान उनके पक्ष में करूंगी जो स्त्री हितों के लिए गंभीर दिखेगा। मेरे वोट के लिए आधार बिंदु यही रहेगा।