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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (19:17 IST)

उत्तर प्रदेश चुनाव में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी कितनी असरदार ?

उत्तर प्रदेश चुनाव में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी कितनी असरदार ? - How effective is the coming together of Akhilesh Yadav and Jayant Chaudhary in the Uttar Pradesh elections?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही अभी तारीखों का एलान नहीं हुआ है लेकिन चुनावी उद्घोष होने से पहले ही सियासी दल चुनावी रण में आमने-सामने आ डटे है। चुनावी रण को फतह करने के लिए मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी पूर्वांचल के गढ़ गोरखपुर में तो भाजपा को सीधी चुनौती दे रहे अखिलेश यादव अपने नए जोड़ीदार जयंत चौधरी के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र अमेठी से चुनावी हुंकार भरते नजर आए।

पूर्वांचल से प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी पर सीधा हमला बोलते हुए लाल टोपी वालों को यूपी के लिए रेड अलर्ट बता दिया तो मेरठ में साझा रैली के मंच से अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने किसानों के मुद्दें से लेकर महंगाई तक मोदी और योगी सरकार को जमकर घेरा।
 
मेरठ में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के एक साथ मंच पर आने को उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव में सबसे बड़ी सियासी जुगलबंदी के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल जंयत चौधरी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल पूरे किसान आंदोलन में काफी सक्रिय नजर आई और अब उसका समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाना भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। 
उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि जयंत चौधरी और अखिलेश को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जाट समुदाय एक बड़ी उम्मीदों के साथ देख रहा है। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़े वोट बैंक वाले मुस्लिम समुदाय को लेकर भी कहीं कोई कंफ्यूजन नजर नहीं आ रहा कि वह किधर जाएगा? मुस्लिम समुदाय को बिल्कुल तय है कि उसके कहां जाना है।
 
ऐसे में जब उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए कृषि कानूनों को वापस ले लिया तब क्या समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन कामयाब हो पाएगा इस सवाल पर नागेंद्र कहते हैं कि कृषि कानूनों की वापसी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को कोई लाभ नहीं मिलने जा रहा है। किसानों की लड़ाई अब काफी आगे जा चुकी है। किसान जो फैसला कर चुके थे वह अभी भी उसी पर कायम है। 
नागेंद्र महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि कृषि कानून वापस होने से भाजपा को पूर्वी उत्तरप्रदेश में भी फायदे के जगह नुकसान ही हुआ है। दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश का किसान कृषि कानूनों को लेकर बहुत अधिक चिंतित नहीं था लेकिन अब वह यह मान रहा है कि कहीं न कहीं कृषि कानूनों में कुछ गलत था जिससे सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा।
 
वह कहते हैं कि लोग अब मानने लगे हैं कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर सकती है और कृषि कानूनों की वापसी को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। अगर यह कानून छह महीने वापस होते तो भाजपा को बड़ा फायदा मिलता। 
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाली और किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाली राष्ट्रीय लोकदल के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन को चुनावी राजनीति के जानकार बड़े सियासी उलटफेर का संकेत मान रहे है।
 
राष्ट्रीय लोकदल की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में अच्छी पकड़ है और गठबंधन के सहारे समाजवादी पार्टी पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर वोटरों के बिखराव को रोकने की कोशिश की है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करने में सपा का उद्देश्य कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की नाराजगी का फायदा उठाकर वोटरों से साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुसलमानों और जाटों के वोटों में होने वाले बिखराव को रोकना है।
 
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ध्रुवीकरण कार्ड के चलते 100 सीटों में से 80 सीटों पर जीत हासिल की थी। जाट वोटर खुलकर भाजपा के साथ आए थे। वहीं जाट वोटर अब किसान आंदोलन के चलते भाजपा से नाराज है। 
ऐसे में अब 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन भाजपा को नुकसान पहुंचा पाएगा इस सवाल पर उत्तर प्रदेश की राजनीति को कई दशकों से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अखिलेश यादव एंटी इंकम्बेंसी वाले विरोधी वोटों का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे है। उनकी कोशिश है कि उनका जनाधार बढ़े और पार्टी जहां कम वोटों से हारी थी उस पर जीत सके।

वहीं वह आगे कहते हैं कि उत्तरप्रदेश के वर्तमान सियासी परिदृश्य में समाजवादी पार्टी अपने को योगी सरकार के विकल्प के तौर पर देख रही है। पहले किसान आंदोलन और अब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के एक साथ आने से पश्चिम उत्तरप्रदेश में सियासी समीकरण भाजपा के खिलाफ जाते हुए दिख रहे है और चुनाव में भाजपा को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।