फसलों का एमएसपी और वित्त मंत्री का दावा
यह सभी जानते हैं कि देश में गेंहूं की खरीद सरकारी एजेंसी, फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) करती है। इसकी साइट पर लिखा है कि 2014-15 में एक क्विंटल गेहूं की लागत 2015 रुपए तय थी, 2015-16 में 2127 रुपए और 2017-18 में 2408 रुपए तय की गई थी। इस बार सरकार का दावा है कि उसने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को देखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) तय किया। लेकिन क्या किसानों को एमएसपी मिला या वित्त मंत्री का ऐसा कहना सही नहीं है।
कृषि मंत्रालय की कृषि लागत व मूल्य आयोग की वेबसाइट पर प्रतिवर्ष फसलों की लागत और उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आंकड़े दिए जाते हैं। यही संस्थान तय करती है कि गेंहूं की उत्पादन लागत तय करने के कितने पैमाने हैं? इसके निर्धारण के लिए दो पैमाने- उत्पादन लागत और आर्थिक लागत- प्रचलित हैं। गेहूं की आर्थिक लागत को तय करने में मंडी शुल्क, टैक्स, सूद, कमीशन आदि शामिल किया जाता है।
इस संस्थान ने वर्ष 2018-19 के लिए एक क्विंटल गेहूं का भाव 1735 रुपए तय किया है। जबकि गेहूं की उत्पादन लागत 1256 रुपए और आर्थिक लागत 2345 रुपए है। दोनों भावों के अनुसार 1735 रुपया क्या कहीं से भी लागत का डेढ़ गुना कहा जा सकता है? अगर डेढ़ गुना होता तो उत्पादन लागत के अनुसार एक क्विंटल गेंहू का भाव 1884 रुपया और आर्थिक लागत के अनुसार भाव 3517 रुपए होता।
इसी तरह से 2017-18 के लिए एक क्विंटल गेहूं की लागत का 2408 रुपए तय की गई थी लेकिन क्या इस हिसाब से 1735 रुपए का भाव डेढ़ गुना है? पर वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा है कि रबी की अधिकांश फसलों का मूल्य लागत से डेढ़ गुना तय किया जा चुका है। इस लिहाज से क्या वित्त मंत्री का गणित गड़बड़ नहीं है?
सरकार ने 2014-15 में एक क्विंटल गेहूं की लागत 2015 रुपए तय की थी। इसी तरह 2015-16 में 2127 और 2017-18 में 2408 रुपए की राशि तय की गई। कभी भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य ज़्यादा नहीं मिला। डेढ़ और दो गुना तो सपने में भी नहीं। न्यूतनम समर्थन मूल्य भी सिर्फ 6-7 फीसदी किसानों को ही मिलता है, सबको नहीं मिलता है।
सरकार का कहना है कि नीति आयोग, राज्य सरकारें मिलकर एक तंत्र बनाएंगी, उसका स्वरूप क्या होगा, यह देखना होगा क्योंकि सरकारी फैसलों और उनके अमल में कभी कभी जमीन आसमान का अंतर आ जाता है। इसी तरह से सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दो गुना करने का लक्ष्य रखा है। यह तभी संभव है जबकि कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 12 प्रतिशत हो। यह कब तक संभव होगा यह तो केन्द्र सरकार ही जाने लेकिन हमें यह पता है कि फिलहाल कृषि की वृद्धि दर मात्र 1.9 प्रतिशत है।