शुक्रवार, 8 अगस्त 2025
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Written By वार्ता

समाज नहीं चाहता था कि मैं कुश्ती लडूं : अलका

अलका तोमर
WD
राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता पहलवान अलका तोमर ने खुलासा किया है कि जब उन्होंने कुश्ती के अखाड़े में कदम रखा तब समाज के विरोध के कारण उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था

अलका ने यहां द्विभाषी मासिक खेल समाचार पत्र 'स्पोर्ट्स.क्रीड़ा' का लोकार्पण करते हुए कहा शुरुआती दिनों में पापा ने तो पूरा साथ दिया लेकिन समाज मेरे फैसले के खिलाफ था। इस कारण मुझे काफी विरोध सहना पड़ा। आज मुझे खुशी है कि संघर्ष के बावजूद मैंने सफलता पाई और पापा के भरोसे को सही साबित किया।

राष्ट्रमंडल विजेता पहलवान ने साथ ही खुशी जताते हुए कहा यह अच्छी बात है कि मेरी कामयाबी के बाद माहौल बदल गया। गांव में तमाम लड़कियां कुश्ती में आ रही हैं और उनके माता पिता खुशी-खुशी उन्हें इस खेल में भेज रहे हैं। मैं छात्राओं से अपील करुंगी कि वे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी रुचि रखें।

इस मौके पर मौजूद अलका के कोच जबर सिंह ने कहा महिला कुश्ती के विकास से खेलों के क्षेत्र में महिला समानता के नए अवसर पैदा हुए हैं। अलका एक बेहद अनुशासित खिलाड़ी हैं और अनुशासन तथा पूरी लगन के दम पर इन्होंने कामयाबी हासिल की है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री गुरु तेगबहादुर खालसा कॉलेज के प्रधानाचार्य जसविंदर सिंह ने इस मौके पर अलका को शाल देकर सम्मानित किया। जसविंदर ने अलका के प्रदर्शन और महिलाओं के खेल के क्षेत्र में विकास को सकारात्मक संकेत बताते हुए कहा कि खेल के क्षेत्र महिलाएं जितना आगे आएंगी, समाज का सर्वांगीण विकास उतना ही तेज होगा।

'स्पोर्ट्स.क्रीड़ा' की संपादक और खेल कमेंटेटर तथा खालसा कॉलेज की प्राध्यापक स्मिता मिश्रा ने इस अवसर पर कहा खेल स्त्री सशक्तीकरण का बेहतरीन जरिया है। अब तक तीन भारतीय महिला खिलाड़ियों ने ओलिंपिक में पदक जीतकर यह मिथक तोड़ दिया है कि महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं। अलका ने कुश्ती जैसी शारीरिक क्षमता प्रधान खेल में सिक्का जमाकर स्त्री शक्ति का बेहतर परिचय दिया है। (वार्ता)