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Written By वार्ता

खेल से कभी संतुष्ट नहीं होता:विजेन्दर

खेल से कभी संतुष्ट नहीं होता:विजेन्दर -
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ओलिम्पिक काँस्य पदक विजेता और दुनिया के नंबर एक मुक्केबाज विजेन्दरसिंह ने पाँचवीं राष्ट्रमंडल मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा कि वह अपने खेल से कभी संतुष्ट नहीं होते हैं और इसी से उन्हें हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलती है।

विजेन्दर ने मुकाबले में बाद संवाददाताओं से कहा कि मेरा आदर्श वाक्य है 'डोंट बी संतुष्ट।' मैं कभी अपने खेल से संतुष्ट नहीं होता, जिससे मुझे हरदिन अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलती है1 जिस दिन मैं संतुष्ट हो जाऊँगा उस दिन मैं हाशिए पर चला जाऊँगा।

विजेन्दर ने फाइनल में इंग्लैंड के फ्रैंक बुगलियोनी को 13-3 से हराकर स्वर्ण पदक पर कब्जा किया। हालाँकि पहले राउंड में विपक्षी मुक्केबाज के प्रहार से उनकी नाक से खून बहने लगा लेकिन उन्होंने इस दर्द पर काबू पाते हुए इंग्लिश खिलाड़ी को चारों खाने चित कर दिया।

फाइनल मुकाबले के बारे में विजेन्दर ने कहा ‍कि पहले राउंड में नाक से खून देखकर मैं थोडा विचलित हो गया था। मुझे यह डर सता रहा था कि अगर खून लगातार बहता रहा तो रेफरी मुकाबला रोक देगा, लेकिन दर्शकों के समर्थन से मेरा हौसला बढ़ा और खून बहने के बावजूद मैं तीन राउंड खेलकर जीतने में सफल रहा।

उन्होंने अपने पदक को अपने परिजनों, कोचों और राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला के कर्मचारियों और सपोर्ट स्टाफ को समर्पित करता हूँ। तालकटोरा स्टेडियम में दर्शकों की कमी की शिकायत करने वाले विजेन्दर और राष्ट्रीय मुक्केबाजी कोच गुरबक्ष सिंह संधू ने कहा कि आज उनकी शिकायत दूर हो गई है।

विजेन्दर ने कहा कि अपने दर्शकों के बीच खेलने का मजा की कुछ और है विदेशों में यह बात नहीं होती। आज यहाँ हमारे गाँव के भी कई लोग आए थे, लेकिन उनके सामने आप पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव भी होता है। दर्शकों की हौसलाअफजाई के कारण मैं घायल होने के बावजूद जीत दर्ज करने में सफल रहा।

संधू ने कहा कि आज भगवान भी हमारी मदद के लिए रिंग में उतरे थे। जब विजेन्दर की नाक से खून बह रहा था तो हम डर गए थे कि कहीं रेफरी मुकाबला रोक न दे, लेकिन भगवान ने हमारा साथ दिया और विजेन्दर मुकाबला जीतने में सफल रहे।

उन्होंने कहा ‍कि चैंपियनशिप में हमारा प्रदर्शन बेहतरीन रहा। यह राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में हमारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। पिछली बार हम चार स्वर्ण जीतने में सफल रहे थे इस बार दो पदक बढ़ गए हैं, लेकिन इसके साथ ही हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गई हैं और अब हमसे इससे अच्छे प्रदर्शन की आशा रहेगी।

91 किलोग्राम सुपर हैवीवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले परमजीत समोटा ने जीत के कहा कि दिल से खेलो तो जीत पक्की है। उन्होंने कहा कि पहले राउंड में वह अच्छी तरह सेट नहीं हुए थे, इसलिए 0-1 से पिछड़ गए लेकिन इसके बाद कोच ने कहा कि एक पंच से काम नहीं चलेगा लगातार पंच मारो और यह रणनीति कामयाब रही।

49 किलोग्राम लाइट फ्लाईवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले अमनदीप ने कहा कि उनकी रणनीति शुरु से ही आक्रामक होने की थी जो कारगर रही। उन्होंने कहा कि एशियाई खेलों में मध्य एशियाई देशों के मुक्केबाजों से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। (वार्ता)