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Written By WD Sports Desk
Last Modified: गुरुवार, 5 सितम्बर 2024 (11:27 IST)

गोल्ड जीतने वाले हरविंदर सिंह को 1.5 साल की उम्र में हुआ था डेंगू, किसान पिता ने खेत को बदला था तीरंदाजी रेंज में

Harvinder Singh
India at Paris Paralympics : हरविंदर सिंह ने पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला भारतीय तीरंदाज बनकर इतिहास रच दिया। विश्व चैंपियन शॉटपुट (गोला फेंक) खिलाड़ी सचिन सरजेराव खिलाड़ी (Sachin Sarjerao Khilari) ने एशियाई रिकॉर्ड के साथ रजत पदक जीता था जिससे पेरिस खेलों में भारत के एथलीटों का पदक जीतने का सिलसिला जारी रहा जो देश का पैरालंपिक में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
 
तोक्यो पैरालंपिक के कांस्य पदक विजेता नौवें वरीय हरविंदर ने दुनिया के 35वें नंबर के खिलाड़ी और छठे वरीय पोलैंड के लुकास सिजेक को एकतरफा खिताबी मुकाबले में 6-0 (28-24, 28-27, 29-25) से शिकस्त दी। पैरालंपिक में पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय तीरंदाज हरविंदर ने बुधवार को लगातार पांच जीत के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया और लगातार दूसरा पैरालंपिक पदक जीता।
 
सचिन ने एफ46 स्पर्धा में एशियाई रिकॉर्ड 16 . 32 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता। इस 34 वर्ष के खिलाड़ी ने दूसरे प्रयास में सर्वश्रेष्ठ थ्रो फेंका और मई में जापान में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के दौरान 16.30 मीटर के अपने ही एशियाई रिकॉर्ड को बेहतर किया ।
 
सचिन खिलाड़ी का यह व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रयास हालांकि उन्हें पहला स्थान दिलाने के लिए काफी नहीं था और कनाडा के ग्रेग स्टीवर्ट ने 16.38 मीटर के प्रयास से तोक्यो पैरालम्पिक में जीता स्वर्ण बरकरार रखा। क्रोएशिया के लुका बाकोविच ने 16.27 मीटर से कांस्य पदक जीता।
 
खिलाड़ी का रजत पेरिस पैरालम्पिक में एथलेटिक्स में भारत का 11वां पदक है। हरविंदर के स्वर्ण के साथ देश के कुल पदकों की संख्या 22 पहुंच गई। भारत चार स्वर्ण, आठ रजत और 10 कांस्य पदक के साथ 15वें स्थान पर है।
 
एफ46 श्रेणी में वे खिलाड़ी होते हैं जिनकी भुजाओं में कमजोरी है, मांसपेशियों की शक्ति क्षीण है या भुजाओं में निष्क्रिय गति की सीमा क्षीण है। ऐसे एथलीट खड़े होकर प्रतिस्पर्धा करते हैं।

भारत के एकमात्र पैरालंपिक पदक विजेता तीरंदाज हरविंदर ने पहले सेट में नौ अंक के साथ शुरुआत की जबकि लुकास ने भी इसका जवाब नौ अंक के साथ दिया। हरविंदर का अगला निशाना 10 अंक पर लगा जबकि पोलैंड का तीरंदाज सात अंक ही जुटा पाया। भारतीय तीरंदाज ने इसके बाद नौ अंक के साथ पहला सेट 28-24 से अपने नाम किया।
 
दूसरे सेट में सिजेक ने तीनों निशाने नौ अंक पर मारे जबकि हरविंदर ने दो नौ और फिर अंतिम प्रयास में 10 अंक के साथ 28-27 से सेट जीतकर 4-0 की बढ़त बनाई।
 
तीसरे सेट में भी हरविंदर हावी रहे। सिजेक के सात अंक के मुकाबले उन्होंने 10 अंक से शुरुआत की और फिर अगला निशाना भी 10 अंक पर लगाया। भारतीय तीरंदाज ने अंतिम प्रयास में नौ अंक के साथ 29-25 से सेट और स्वर्ण पदक जीत लिया।
 
हरविंदर इससे पहले सेमीफाइनल में ईरान के मोहम्मद रेजा अरब अमेरी को 7-3 से हराकर फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय तीरंदाज बने। भारतीय तीरंदाज ने पहले सेट में पिछड़ने के बाद वापसी करते हुए ईरान के प्रतिद्वंद्वी को 25-26, 27-27, 27-25, 26-24, 26-25 से मात दी।
 
उन्होंने क्वार्टरफाइनल में कोलंबिया के दुनिया के नौवें नंबर के खिलाड़ी हेक्टर जूलियो रमीरेज को 6-2 से शिकस्त दी।
 
हरविंदर ने चीनी ताइपे के सेंग लुंग हुई को 7-3 से पराजित करने के बाद प्री क्वार्टरफाइनल में इंडोनेशिया के सेतियावान सेतियावान को 6-2 से हराया।
हरियाणा में अजीत नगर के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरविंदर जब डेढ़ साल के थे तो उन्हें डेंगू हो गया था और इसके उपचार के लिए उन्हें इंजेक्शन लगाए गए थे। दुर्भाग्य से इन इंजेक्शन के कुप्रभावों से उनके पैरों की गतिशीलता चली गई।
 
शुरूआती चुनौतियों के बावजूद वह तीरंदाजी में आ गए और 2017 पैरा तीरंदाजी विश्व चैम्पियनशिप में पदार्पण में सातवें स्थान पर रहे।
 
फिर 2018 जकार्ता एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे और कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में उनके पिता ने अपने खेत को तीरंदाजी रेंज में बदल दिया ताकि वह ट्रेनिंग कर सकें।
 
मंगलवार को बीती रात विश्व चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता दीप्ति जीवनजी के एथलेटिक्स की महिला 400 मीटर टी20 स्पर्धा में 55.82 सेकेंड के समय के साथ कांस्य पदक जीतने के बाद भारत ने पुरुषों की ऊंची कूद टी63 और भाला फेंक एफ46 में क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीते।
 
शरद कुमार और मरियप्पन थांगवेलु ने पुरुषों की ऊंची कूद टी63 में क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीता जबकि अजीत सिंह और सुंदर सिंह गुर्जर ने भाला फेंक एफ46 फाइनल में दूसरा और तीसरा स्थान हासिल किया।
 
एफ46 वर्ग में वो खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं जिनकी भुजाओं में कमजोरी और मांसपेशियां कमजोर होती है जिससे वे खड़े होकर प्रतिस्पर्धा करते हैं।
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