मुंबई। यह वो समय था जब छोटी सी तेजस्विनी सावंत को बहुत कम लोग जानते थे और जर्मनी में विश्व शूटिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए उन्हें तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत थी, ऐसे वक्त में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर आएं थे।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर से आने वाली शूटर तेजस्विनी सावंत ने कहा कि इस मदद से वह न सिर्फ 2005 की प्रतियोगिता में हिस्सा ले पाई बल्कि यह मौका उनके करियर में निर्णायक मोड़ बना क्योंकि इसके बाद तो उन्होंने नई-नई ऊंचाइयां छुईं।
उन्हें सिर्फ इस बात का अफसोस है कि मुख्यमंत्री की इस सज्जनता के लिए वह उनका ठीक तरीके से धन्यवाद नहीं कर सकीं, जिसका उनकी जिंदगी और शूटिंग कॅरियर में बड़ा योगदान है।
पीटीआई-भाषा के साथ फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने कहा, पर्रिकर के साथ मुलाकात बहुत कम समय की रही। इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्रकांत पाटिल भी मौजूद थे। उन्होंने सिर्फ मेरे प्रदर्शन के बारे में सुना और अनुमानित खर्च के बारे में पूछा।
जानी मानी शूटर ने बातचीत के दौरान उस वाकये को याद करते हुए कहा, उन्होंने तुरंत मेरे लिए एक चेक पर दस्तखत किया। उन्होंने बताया, यह रकम करीब एक लाख रुपए थी और यह मेरे लिए सबसे जरूरी मदद थी, जिसने मेरे पूरे करियर का रुख पलट दिया।
इससे तेजस्विनी को आगे बढ़ने में मदद मिली। प्रतियोगिता में तेजस्विनी ने दो राउंड में 400 में से 397 और 396 अंक हासिल किए और वह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली मुख्यधारा की शूटरों में सहजता से शुमार हो गईं।
इस मदद से उन्हें अपने खेल को सुधारने में मदद मिली और इसके बाद वह किसी विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला शूटर बनीं। उन्होंने कहा, मैं ऐसा सिर्फ दो लोगों की वजह से कर सकी। पहले मनोहर पर्रिकर जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया और आर्थिक मदद की और दूसरे चंद्रकांत पाटिल जो मेरा मामला पर्रिकर तक लेकर गए।
2006 के बाद से तेजस्विनी ने अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप में कई स्वर्ण पदक और अन्य पदक जीते। शूटर ने मुख्यमंत्री के निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा, मुझे अफसोस है कि अपने जीवन और करियर में पर्रिकर के योगदान के लिये मैं कभी उनका उचित तरीके से धन्यवाद नहीं कर सकी।
संपर्क किए जाने पर पाटिल ने कहा कि पर्रिकर के साथ उनके करीबी संबंध थे। पाटिल अभी महाराष्ट्र में राजस्व मंत्री हैं। उन्होंने बताया कि जब तेजस्विनी ने उनसे संपर्क किया तब उनके दिमाग में पर्रिकर का नाम कौंधा और उन्होंने मदद के लिए उन्हें फोन लगा दिया।
उन्होंने कहा, वह ऐसे ही (दयालु) थे। तेजस्विनी के मामले में पर्रिकर ने अपनी हैसियत से मदद की। उन्होंने सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने अपनी जेब से पैसे दिए और बाद की हमारी आपसी बातचीत में उन्होंने कभी इस मुद्दे का जिक्र नहीं किया।