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Last Modified: बुधवार, 15 नवंबर 2017 (23:25 IST)

हरियाणा के इतिहास के पहले द्रोणाचार्यी महावीर प्रसाद

हरियाणा के इतिहास के पहले द्रोणाचार्यी महावीर प्रसाद - Mahavir Prasad, Haryana Wrestling
इंदौर। महज 51 साल की उम्र में महावीर प्रसाद ने कई ऐसे चैंपियन शिष्य तैयार किए हैं, जिनकी वजह से उन्हें 2014 में राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कुश्ती में द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित किया। वे यह सम्मान पाने वाले हरियाणा कुश्ती इतिहास के पहले कोच हैं।
 
अभय प्रशाल में आयोजित 62वीं राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती प्रतियोगिता में वे केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल (सीआईएसएफ) टीम के चीफ कोच बनकर आए हैं। उन्होंने एक विशेष मुलाकात में 'वेबदुनिया' को बताया कि इस प्रतियोगिता में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता अनिल कुमार के अलावा सतीश और आनंद भी उतर रहे हैं। 
उन्होंने कहा कि सतीश और आनंद भी राष्ट्रमंडल के चैंपियन रहे हैं और यहां उनके विजेता बनने की पूरी संभावना है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हरियाणा से 80 प्रतिशत पहलवान आ रहे हैं और आने वाले वक्त में भारत का कुश्ती भविष्य काफी सुनहरा दिखाई दे रहा है।
 
हरियाणा जिले के शीशवाल गांव के रहने वाले महावीर प्रसाद ने बताया कि मैंने 1986 से 1996 तक राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में हिस्सा लिया और 7 बार सीनियर नेशनल चैंपियन रहा। 1987 में फ्रीस्टाइल में जूनियर विश्व विजेता रहा। 
86, 87, 88 में अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय में चैंपियन रहे महावीर ने 1993 में बेलारूस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2003 से 2013 तक महावीर प्रसाद भारतीय ग्रीको रोमन कुश्ती के कोच रहे। यही नहीं, उन्होंने 2014 और 15 में रियो ओलंपिक में भारत की ग्रीको रोमन कुश्ती टीम में बतौर चीफ कोच की भूमिका भी निभाई। 2016 से वे केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल (सीआईएसएफ) टीम के चीफ कोच हैं।
 
2014 में जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने द्रोणाचार्य सम्मान प्रदान किया, उसका भी रोचक किस्सा है। उन्होंने बताया कि तब सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, एमसी मैरीकॉम और विजेंदर सिंह को भी सम्मानित किया जाना था। 
 
वहां पर सम्मान पाने वालों की कतार में सबसे पहले नंबर पर खड़ा हुआ था, जबकि नियमानुसार नाम के पहले अक्षर से कतार बननी थी... चूंकि 2014 में कुश्ती से मैं अकेला द्रोणाचार्य पाने वाला कोच था, लिहाजा कतार में पहले नंबर पर मैं ही खड़ा था। इस तरह का सम्मान मैं आज तक अपनी यादों में संजोए हुए हूं...
(वेबदुनिया न्यूज)
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