दंगल में जीते पैसों से पिता मास्टर चंदगीराम ने अन्य लड़कियों की डाइट पूरी की : सोनिका कालीरमण
भारत में शायद कोई ऐसा खेलप्रेमी होगा, जिसने कुश्ती के खलीफा मास्टर चंदगीराम का नाम नहीं सुना होगा। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि आज जहां महिला कुश्ती में भारतीय पहलवान देश का परचम लहरा रही हैं, उसकी नींव खुद गुरु चंदगीराम ने ही रखी थी। उन्होंने अपने घर से ही इसकी शुरुआत की और देश को सोनिका कालीरमण मलिक जैसी पहलवान दी।
सोनिका कालीरमण मलिक ने बताया कि मेरे पिता और गुरु चंदगीराम ने कुश्ती में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए घर से शुरुआत की था ताकि दूसरे परिवार भी इससे प्रेरित हों सके। वे अपनी बेटियों को घर से बाहर निकालें और खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें। जब मैंने शुरुआत की थी, तब लड़कियां कुश्ती नहीं लड़ती थी लेकिन उसके बाद माहौल ही बदल गया।
भारत केसरी खिताब जीतने वाली देश की पहली महिला पहलवान सोनिका के मुताबिक मेरे पिता ने मुझे कुश्ती के गुर सिखाए और फिर मैंने न केवल हरियाणा में बल्कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बंगाल में भी जाकर दंगल लड़े।
सोनिका के अनुसार बुआना में हर साल एक बड़ा दंगल हुआ करता था, जिसमें मैं हिस्सा लेती थी। जब मैं कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने लगी और इनाम भी जीतने लगी तो पिताजी खुश होते थे। यही नहीं वे मेरी कमाई से भी अन्य लड़कियों की डाइट पूरी करते रहे। उन्होंने वर्तमान में कुश्ती में प्रदेश और देश का नाम कर रही महिला पहलवानों के लिए प्लेटफार्म तैयार किया।
सोनिका ने यह भी बताया कि 1997 में कुश्ती की शुरुआत करने के बाद 1998 में पलवल के एक गांव में दंगल खेलने गई। कुछ ही समय में अपनी प्रतिद्वंदी को हरा दिया। इसके बाद भी लोगों ने उनपर पत्थर बरसाए। लोग महिलाओं की कुश्ती को लेकर गुस्सा थे।
ऐसा ही एक हादसा बरेली में कुश्ती के दौरान जाते हुए हुआ। वहां दो समुदायों में झगड़ा चल रहा था। एक समुदाय को जैसे पता लगा कि महिलाएं कुश्ती के लिए आ रही हैं तो एक समुदाय के लोगों ने उन्हें मारने की योजना बनाई। मुश्किल से जान बच पाई।
मास्टर चंदगीराम की बेटी सोनिका ने कहा कि जैसे जैसे समय बीता, लोगों की मानसिकता भी बदली। शुरुआत में लोग लड़कियों के दंगल के स्थान पर उनके कपड़े देखने आते थे। तब कुश्ती के समय कपड़ों को लेकर बड़ी परेशानी थी। इसके लिए विशेष कपड़े डिजाइन कराने पड़े।
सोनिका ने कहा कि वह जाति आधारित आरक्षण के पक्ष में नहीं हैं। मेहनत से बड़े से बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए। शिक्षा जरूरी है। उन्हें स्पोर्ट्स कोटे से दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण मिला था, लेकिन उन्होंने एडमिशन नहीं लिया।
सोनिका के मुताबिक भारतीय महिला कुश्ती का भविष्य बहुत उज्जवल है। देश में कई नामी कोच हैं, जो पूरी ईमानदारी से महिला पहलवानों को तैयार करने में जुटे हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि भारत अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में एक खास मुकाम हासिल कर सका है।