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Last Modified: सोमवार, 29 अगस्त 2022 (13:47 IST)

मेजर ध्यानचंद का खेल देखकर तानाशाह हिटलर भी बन गया था उनका मुरीद

मेजर ध्यानचंद का खेल देखकर तानाशाह हिटलर भी बन गया था उनका मुरीद - Adolf Hitler was in awe of Major Dhyanchand's hockey stick
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म आज ही के दिन यानी 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत के राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं।
 
मेजर ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाया। मेजर ध्यानंचन ने अपने हॉकी कैरियर में अंग्रेजों के खिलाफ 1000 से अधिक गोल दागे। बर्लिन आलंपिक के हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था, लेकिन उस दिन लगातार बारिश की वजह से मैच अगले दिन 15 अगस्त को खेला गया।
 
40 हजार दर्शकों के बीच उस दिन जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था। हाफ टाइम तक भारत 1 गोल से आगे था। इसके बाद मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते उतारे और नंगे पैर हॉकी खेलने लगे। हिटलर के सामने उन्होंने कई गोल दागकर ओलिंपिक में जर्मनी को धूल चटाई जिसके बाद हिटलर जैसा तानाशाह भी उनका मुरीद बना गया।
 
कहते हैं तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को जर्मनी की ओर से खेलने और बदले में अपनी सेना में उच्च पद पर आसीन होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। हिटलर ने ही मेजर ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर की उपाधि दी थी।
मेजर ध्यानचंद के हॉकी स्टिक से गेंद इस कदर चिपकी रहती कि विरोधी खिलाड़ी को अक्सर लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। हॉलैंड में एक बार तो उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में तोड़ कर देखी गई थी।
 
1932 में भारत ने 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए थे। 1928 में एम्सटर्डम में खेले गए ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद ने भारत की ओर से सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे। एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था- यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था। 
 
मेजर ध्यानचंद रात को प्रैक्टिस किया करते थे। उनके प्रैक्टिस का समय चांद निकलने के साथ शुरू होता था। इस कारण उनके साथी उन्हें चांद कहने लगे।
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